क्या है श्री वीरभद्र स्वामी मंदिर के हवा में झूलते खंभों का रहस्य?
सारांश
Key Takeaways
- लेपाक्षी मंदिर का निर्माण 6वीं शताब्दी में हुआ।
- मंदिर में कुल 70 खंभे हैं, जो हवा में झूलते हैं।
- यह मंदिर भगवान शिव के रौद्र रूप की पूजा के लिए प्रसिद्ध है।
- मंदिर की वास्तुकला अद्वितीय और ऐतिहासिक है।
- यहाँ की किंवदंतियां और पौराणिक कहानियाँ इसे और भी रोचक बनाती हैं।
नई दिल्ली, 29 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। सनातन धर्म में भगवान शिव की महिमा का वर्णन सदियों से किया जा रहा है। भगवान शिव का आदि और अंत किसी को ज्ञात नहीं है, इसलिए उन्हें सृष्टि के सृजनकर्ता और विनाशक दोनों रूपों में पूजा जाता है। समय के साथ उन्होंने अपने कई अंश विकसित किए, जिनमें से एक हैं वीरभद्र भगवान।
आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले के पास स्थित लेपाक्षी गांव में भगवान वीरभद्र का एक ऐसा मंदिर है, जहां खंभे हवा में झूलते रहते हैं।
यह मंदिर शक्ति का प्रतीक है और इसकी भारतीय वास्तुकला देखने लायक है। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 6वीं शताब्दी में विजयनगर साम्राज्य के राजाओं द्वारा कराया गया था। मंदिर का निर्माण ग्रेनाइट चट्टानों से हुआ है, और पत्थर पर बारीक नक्काशी की गई है जिसमें देवी-देवताओं की प्रतिमाएं महाभारत और रामायण की कहानियों को दर्शाती हैं। इस मंदिर को लेपाक्षी मंदिर और हैंगिंग टेम्पल के नाम से भी जाना जाता है।
मंदिर में भगवान शिव के रौद्र रूप भगवान वीरभद्र की पूजा की जाती है, और उनकी प्रतिमा गर्भगृह में स्थापित है। मंदिर के इतिहास के बारे में कई किंवदंतियां प्रचलित हैं।
इस मंदिर के इतिहास को रामायण से भी जोड़ा गया है। कहा जाता है कि जब रावण ने मां सीता का हरण किया, तो जटायु ने उन्हें बचाने के लिए अपनी जान जोखिम में डाल दी थी और वह इसी स्थान पर गिरे थे। भगवान राम ने उनकी पीड़ा को समझते हुए उन्हें 'ले पाक्षी' कहा, जिसका तेलुगू में अर्थ है 'उठो, पक्षी'। इसी कारण से मंदिर को लेपाक्षी मंदिर कहा जाता है।
श्री वीरभद्र स्वामी मंदिर एक रहस्यमय स्थान है। इस मंदिर में कुल 70 खंभे हैं और ये सभी हवा में तैरते हैं। खंभों का निचला सिरा जमीन को नहीं छूता, बल्कि इनके बीच एक गैप होता है, जिसके नीचे से कपड़े को आर-पार देखा जा सकता है। यही कारण है कि यह मंदिर पर्यटन का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया है। खंभों और जमीन के गैप को आंखों से साफ देखा जा सकता है।