स्नान से लेकर खानपान तक, रोगी की दिनचर्या कैसी हो?

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स्नान से लेकर खानपान तक, रोगी की दिनचर्या कैसी हो?

सारांश

क्या आप जानते हैं कि बीमारियों से सही तरीके से उबरने के लिए उचित दिनचर्या कितनी महत्वपूर्ण है? इस लेख में जानें आयुर्वेद से रोगी की दिनचर्या के बारे में, ताकि उपचार में तेजी आए और रोग की पुनरावृत्ति से बचा जा सके।

Key Takeaways

  • ब्रह्ममुहूर्त में जागने से स्वास्थ्य में सुधार होता है।
  • शौच क्रिया को न रोकना आवश्यक है।
  • रोजाना जीभ की सफाई से पाचन में लाभ होता है।
  • हल्का और सुपाच्य भोजन रोगी के लिए फायदेमंद है।
  • ध्यान और प्राणायाम मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाते हैं।

नई दिल्ली, १५ दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। बीमार व्यक्तियों के लिए सही औषधि की आवश्यकता उतनी ही है जितनी कि दिनचर्या की। गलत आदतें उपचार की प्रभावशीलता को कम कर देती हैं और रोग को बढ़ाने में सहायक होती हैं, वहीं सही दिनचर्या शरीर को रोगमुक्त बनाने की आंतरिक शक्ति प्रदान करती है।

आयुर्वेद विशेषज्ञों का कहना है कि यदि रोगी कुछ सरल नियमों का पालन करें तो रिकवरी तेज हो जाती है और पुनः रोग होने की संभावना कम होती है। सबसे पहला नियम है ब्रह्ममुहूर्त में जागना। इस समय वातावरण में शुद्ध ऑक्सीजन और प्राणवायु होती है, जो फेफड़ों, मस्तिष्क और हार्मोन संतुलन के लिए लाभकारी है। नियमित जागरण से पाचन तंत्र मजबूत होता है और नींद में सुधार आता है।

दूसरा महत्वपूर्ण नियम है शौच क्रिया को कभी न रोकना। मल-मूत्र या गैस को रोकने से वात दोष बढ़ता है, जो कई रोगों का कारण बनता है। रोगी को सुबह गुनगुना पानी पीना और त्रिफला या इसबगोल का सेवन करना चाहिए।

मुंह और जीभ की सफाई भी रोग मुक्ति की दिशा में बड़ा कदम है। जीभ पर जमी सफेद परत (आम) रोग का संकेत होती है। रोजाना नीम, बबूल या अन्य दातून से दांत साफ करना और जीभ की सफाई से पाचन क्रिया में सुधार होता है और दवाओं का प्रभाव बढ़ता है।

रोजाना तिल, नारियल या महाभृंगराज तेल से शरीर की मालिश कई रोगों से रक्षा करती है। यह जोड़ों के दर्द को कम करती है, नसों को पोषण देती है और नींद को गहरा बनाती है। विशेष रूप से सर्दियों में यह बेहद फायदेमंद है। स्नान का सही तरीका भी आवश्यक है। आयुर्वेद के अनुसार, भोजन के तुरंत बाद या देर रात स्नान नहीं करना चाहिए। गुनगुने पानी से स्नान करना सबसे सही होता है। सिर पर हल्का ठंडा और शरीर पर हल्का गर्म पानी डालने से रक्त संचार सुधार होता है और थकान और जकड़न दूर होती है।

आयुर्वेदाचार्य के अनुसार, रोगी को हल्का, गर्म, ताजा और सुपाच्य भोजन लेना चाहिए। खिचड़ी, मूंग दाल, दलिया, उबली सब्जियां और थोड़ा घी श्रेष्ठ हैं। बासी, ठंडा, तला-भुना या अधिक मसालेदार भोजन करना हानिकारक हो सकता है। भोजन का समय भी निश्चित होना चाहिए। रात का भोजन सूर्यास्त के कुछ घंटे बाद लेना चाहिए।

रोगी के लिए बेहतर नींद भी रिकवरी का आधार है। दिन में अधिक सोना और रात में देर तक जागना दोनों हानिकारक हैं। ६ से ७ घंटे की गहरी नींद शरीर की मरम्मत करती है।

शरीर का पूरा संबंध मन से होता है। इसलिए, तन को स्वस्थ रखने के लिए मन को भी स्वस्थ रखना जरूरी है। ध्यान, प्राणायाम, मंत्र जप और सकारात्मक सोच को दिनचर्या का हिस्सा बनाना चाहिए। चिंता और तनाव रोग को लंबे समय तक बनाए रखते हैं।

Point of View

रोगी की दिनचर्या को सुधारना एक महत्वपूर्ण कदम है जो न केवल चिकित्सा उपचार की सफलता को बढ़ाता है, बल्कि समाज में स्वस्थ जीवनशैली को भी प्रोत्साहित करता है।
NationPress
15/12/2025

Frequently Asked Questions

रोगी के लिए सुबह उठने का सही समय क्या है?
ब्रह्ममुहूर्त, यानी सुबह 4 से 6 बजे के बीच उठना सबसे अच्छा होता है।
शौच क्रिया को क्यों नहीं रोकना चाहिए?
शौच क्रिया को रोकने से वात दोष बढ़ता है, जो कई स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है।
रोगी को कौन सा भोजन लेना चाहिए?
हल्का, गर्म, ताजा और सुपाच्य भोजन जैसे खिचड़ी, मूंग दाल और उबली सब्जियां सर्वोत्तम हैं।
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