क्या देश भर में छठ पूजा के लिए तैयारियां जोरों पर हैं? 38000 करोड़ का व्यापार होने की उम्मीद: कैट
सारांश
Key Takeaways
- छठ पूजा का पर्व २५ अक्टूबर से शुरू होगा।
- इस वर्ष व्यापार का आंकड़ा ३८,००० करोड़ रुपए तक पहुंचने की संभावना है।
- पारंपरिक सामानों की बिक्री बढ़ रही है।
- छठ पूजा सामाजिक सद्भाव का प्रतीक है।
- स्थानीय उत्पादकों को फायदा हो रहा है।
नई दिल्ली, २४ अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। भारत में सूर्य देव को समर्पित चार दिवसीय छठ पूजा का भव्य त्योहार धूमधाम से मनाने की तैयारी चल रही है। ये पर्व २५ अक्टूबर से शुरू होगा और इसमें लगभग १५० मिलियन भक्त शामिल होने की संभावना है।
कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के अनुसार, इस वर्ष छठ पूजा से भारत में लगभग ३८,००० करोड़ रुपए का व्यापार होने की उम्मीद है। पिछले वर्ष ये आंकड़ा ३१,००० करोड़ था, जो कि ७,००० करोड़ की वृद्धि को दर्शाता है। २०२३ में यह आंकड़ा २७,००० करोड़ था, जो कि छठ से जुड़े व्यापार में समय के साथ हो रही बढ़ोतरी को दिखाता है।
कैट ने बताया कि दिल्ली में बिक्री इस वर्ष ६,००० करोड़ रुपए के आंकड़े को पार कर जाने की उम्मीद है।
यह त्योहार मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, दिल्ली, उत्तराखंड, हरियाणा, महाराष्ट्र, विदर्भ और मध्य प्रदेश में मनाया जाता है। इसके अलावा, देश के विभिन्न राज्यों में रहने वाले लाखों पूर्वांचली लोग भी इस पर्व को मनाते हैं।
कैट के सेक्रेटरी जनरल प्रवीण खंडेलवाल ने कहा कि छठ पूजा के मुख्य सामानों में सूप, दौरा, बांस की टोकरियां, मिट्टी के दीये, गन्ना, केला, नारियल, सेब, नींबू, गेहूं और चावल का आटा, ठेकुआ जैसी मिठाइयां, खजूर, पूजा का सामान, साड़ियां, पारंपरिक कपड़े, सजावट का सामान, दूध, घी, बर्तन, टेंट और मेहमाननवाजी की सेवाएं शामिल हैं।
उन्होंने आगे कहा कि साड़ियां, लहंगा-चुनरी, महिलाओं के लिए सलवार-कुर्ता और पुरुषों के लिए धोती जैसे पारंपरिक कपड़े अधिक मात्रा में खरीदे जा रहे हैं, जिससे स्थानीय व्यापारियों और छोटे उद्योगों को लाभ हो रहा है। इसके अलावा, हाथ से बनी स्वदेशी वस्तुओं की बिक्री में भी उछाल देखा जा रहा है।
खंडेलवाल ने कहा, "छठ पूजा केवल एक धार्मिक त्योहार नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति का एक अहम हिस्सा है। यह पर्व सामाजिक सद्भाव और समर्पण का प्रतीक है। यह व्यापार को भी बढ़ावा देता है और सीधे स्थानीय उत्पादकों को फायदा पहुंचाता है, जिससे पीएम मोदी के ‘वोकल फॉर लोकल’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ विजन को मजबूती मिलती है।"