क्या अमेरिका घरेलू इंडस्ट्री की सुरक्षा के लिए 350 प्रतिशत तक का टैरिफ लगाता है?

सारांश
Key Takeaways
- अमेरिका ने घरेलू उद्योग की सुरक्षा के लिए 350 प्रतिशत का टैरिफ लगाया है।
- भारत के टैरिफ दरें कई उत्पादों पर उच्च हैं।
- व्यापार संतुलन को बनाए रखने के लिए भारत को रणनीति बनाने की आवश्यकता है।
- अमेरिका के टैरिफ से भारतीय निर्यात प्रभावित हो सकते हैं।
- विभिन्न देशों के टैरिफ दरों का विश्लेषण महत्वपूर्ण है।
नई दिल्ली, 31 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने आरोप लगाया है कि भारत द्वारा विदेशी वस्तुओं पर लगाए गए टैरिफ अन्य देशों की तुलना में बहुत अधिक हैं। लेकिन अमेरिका अपने घरेलू उद्योग की रक्षा के लिए उत्पादों पर 350 प्रतिशत तक का टैरिफ लागू करता है।
विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के आंकड़ों के अनुसार, अमेरिका बेवरेज और तंबाकू उत्पादों पर 350 प्रतिशत का टैरिफ लगाता है। इसके अलावा, फल और सब्जियों पर 132 प्रतिशत, अनाज पर 196 प्रतिशत, तिलहन और तेल पर 164 प्रतिशत, डेयरी उत्पादों पर 200 प्रतिशत, मछली और मछली उत्पादों पर 35 प्रतिशत तथा खनिजों और धातुओं पर 38 प्रतिशत का टैरिफ लागू किया जाता है।
दूसरी तरफ, भारत व्हिस्की और वाइन पर 150 प्रतिशत और ऑटोमोबाइल पर 100-125 प्रतिशत शुल्क लगाता है।
जापान चावल पर लगभग 400 प्रतिशत और दक्षिण कोरिया फल और सब्जियों पर 887 प्रतिशत का शुल्क लगाता है।
भारत की औसत टैरिफ दर 17 प्रतिशत है, जबकि अमेरिका के प्रमुख आयातों पर वास्तविक शुल्क इससे काफी कम है। भारत को अमेरिका के निर्यात पर भारित औसत टैरिफ 5 प्रतिशत से कम है। भारत ने अमेरिकी व्यापार अधिशेष को कम करने के लिए पहले ही अधिक तेल और गैस खरीदने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।
ट्रंप प्रशासन के द्वारा घोषित किए गए रेसिप्रोकल टैरिफ से छूट के बदले में भारत ने अमेरिका के लिए अपने बाजार को खोलने की पेशकश की है, जिससे औसत शुल्क 13 प्रतिशत से घटकर 4 प्रतिशत हो सकता है।
एमपी फाइनेंशियल एडवाइजरी सर्विसेज एलएलपी के संस्थापक और प्रबंध साझेदार महेंद्र पाटिल के अनुसार, भारतीय निर्यात पर 25 प्रतिशत अमेरिकी टैरिफ लगाना कपड़ा, रत्न और आभूषण, ऑटो कंपोनेंट और फार्मास्यूटिकल्स जैसे क्षेत्रों के लिए एक महत्वपूर्ण बदलाव का प्रतीक है।
उन्होंने कहा, "भारतीय उद्योग को तत्काल प्राथमिक बाजारों में विविधता लाने, मूल्यवर्धन में तेजी लाने और वैश्विक व्यापार की अनिश्चितता का बेहतर ढंग से सामना करने के लिए एक घरेलू बफर की आवश्यकता होगी।"
भारत एक घरेलू उपभोग केंद्रित अर्थव्यवस्था बना हुआ है, जिसका उपभोग कुल सकल घरेलू उत्पाद का 60 प्रतिशत है। जबकि वित्त वर्ष 2024 में व्यापारिक निर्यात का सकल घरेलू उत्पाद में हिस्सा मात्र 12 प्रतिशत था।