क्या जेआरडी टाटा ने टाटा ग्रुप को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई?
सारांश
Key Takeaways
- जेआरडी टाटा ने भारतीय उद्योग को नई दिशा दी।
- उन्होंने एयर इंडिया की स्थापना की।
- उनका नेतृत्व टाटा ग्रुप को 14 से 95 उद्योगों में विस्तारित किया।
- उन्हें पद्म विभूषण और भारत रत्न जैसे सम्मानों से नवाजा गया।
- उनकी नीतियां आज भी कर्मचारियों के कल्याण के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं।
नई दिल्ली, 28 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। जेआरडी टाटा, जिनका पूरा नाम जहांगीर रतनजी दादाभाई टाटा है, को भारत के औद्योगिक क्षेत्र में उनके अद्वितीय योगदान के लिए जाना जाता है। उन्होंने न केवल भारत की पहली वाणिज्यिक एयरलाइन 'एयर इंडिया' की स्थापना की, बल्कि वे भारत के पहले वाणिज्यिक पायलट भी थे। टाटा ग्रुप को उन्होंने विभिन्न महत्वपूर्ण क्षेत्रों जैसे एविएशन, होटल और स्टील में विस्तार करने में सहायता की।
जेआरडी टाटा का जन्म 29 जुलाई, 1904 को पेरिस में हुआ था। वे अपने पिता रतनजी दादाभाई टाटा और माता सुजैने ब्रियरे की दूसरी संतान थे। उनके पिता, जमशेदजी टाटा के चचेरे भाई थे, जो देश के प्रमुख उद्योगपति माने जाते हैं।
उनकी माता की फ्रांसीसी पृष्ठभूमि के कारण जेआरडी टाटा ने अपने बचपन का एक हिस्सा फ्रांस में बिताया और इस कारण उन्होंने कई भारतीय भाषाओं के साथ-साथ अंग्रेजी और फ्रेंच में भी दक्षता हासिल की।
उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कैथेडरल एंड जॉन कोनोन स्कूल, मुंबई से प्राप्त की और फिर कैंब्रिज विश्वविद्यालय से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की।
जेआरडी टाटा ने टाटा ग्रुप में 1925 में इंटर्न के रूप में कार्य करना शुरू किया, जिसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने टाटा एयरलाइन की स्थापना की, जो आगे चलकर एयर इंडिया बन गई और इसने 15 अक्टूबर 1932 को अपनी पहली उड़ान भरी।
रिपोर्टों के अनुसार, जब जेआरडी टाटा ने समूह की कमान संभाली, तब टाटा ग्रुप 14 उद्योगों में कार्य कर रहा था। 26 जुलाई 1988 को जब उन्होंने अध्यक्ष पद छोड़ा, तब यह संख्या बढ़कर 95 हो गई थी। उन्होंने दशकों तक स्टील, इंजीनियरिंग, ऊर्जा और रसायन के क्षेत्रों में टाटा समूह की कंपनियों का नेतृत्व किया।
जेआरडी टाटा को न केवल व्यावसायिक विकास के लिए, बल्कि कर्मचारियों के कल्याण की नीतियों के लिए भी जाना जाता है, जिनमें से कई आज भी टाटा ग्रुप में लागू हैं।
उद्योग जगत और भारत की अर्थव्यवस्था में उनके योगदान को देखते हुए, सरकार ने उन्हें 1957 में पद्म विभूषण और 1992 में भारत रत्न से सम्मानित किया।