क्या सिनेमा के पहले 'सुपरस्टार' अशोक कुमार की एंट्री कुछ इस तरह हुई?

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क्या सिनेमा के पहले 'सुपरस्टार' अशोक कुमार की एंट्री कुछ इस तरह हुई?

सारांश

इस लेख में हम जानते हैं कैसे अशोक कुमार, जिन्हें प्यार से 'दादा मुनि' कहा जाता है, हिंदी सिनेमा के पहले सुपरस्टार बने। उनकी सहजता और अदाकारी ने सिनेमा के इतिहास को बदल दिया। आइए जानें उनके जीवन की अनकही कहानियाँ।

Key Takeaways

  • अशोक कुमार ने सिनेमा में अपनी अदाकारी से एक नई पहचान बनाई।
  • उनका असली नाम कुमुदलाल गांगुली था।
  • वे दादा साहब फाल्के पुरस्कार विजेता हैं।
  • उन्होंने 100 से अधिक फिल्मों में काम किया।
  • उनकी सहजता और अभिनय शैली आज भी याद की जाती है।

नई दिल्ली, 9 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। हिंदी सिनेमा की बुनियाद पर अगर किसी ने सहजता, स्टाइल और संजीदा अभिनय का जादू बिखेरा, जिसकी चमक आज भी बरकरार है, तो वो हैं अशोक कुमार, जिन्हें प्यार से ‘दादा मुनि’ कहा जाता है। नायक हो या खलनायक, जज या पुलिस इंस्पेक्टर, पिता हो या दोस्त, हर किरदार में वो इतनी सहजता से ढल जाते थे कि दर्शक भूल जाते थे कि ये कोई एक्टर हैं।

10 दिसंबर को हिंदी सिनेमा के पहले सुपरस्टार अशोक कुमार की पुण्यतिथि होती है।

अशोक कुमार का असली नाम कुमुदलाल गांगुली था। भागलपुर (बिहार) के एक बंगाली परिवार में जन्मे अशोक कुमार का कानून की पढ़ाई के बाद वकालत करने का इरादा था, पर किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान उनकी दोस्ती शशधर मुखर्जी से हुई। दोस्ती इतनी गहरी हुई कि अशोक ने अपनी इकलौती बहन सती रानी का विवाह शशधर से कर दिया।

शशधर उस समय बॉम्बे टॉकीज में काम कर रहे थे। यहीं से कहानी ने एक नया मोड़ लिया। साल 1934 में शशधर ने अशोक को मुंबई बुलाया। उन्होंने पहले लेबोरेटरी में छोटा-मोटा काम किया। फिर साल 1936 में आया वो पल, जिसने हिंदी सिनेमा के पहले सुपरस्टार को पर्दे के सामने लाकर खड़ा कर दिया। बॉम्बे टॉकीज की फिल्म ‘जीवन नैया’ के लिए हीरो नजम-उल-हसन चुने गए थे, लेकिन आखिरी मौके पर उन्होंने काम करने से मना कर दिया।

एक इंटरव्यू में अशोक कुमार ने खुद इस घटना का जिक्र करते हुए बताया कि उनकी सिनेमा जगत में एंट्री कैसे हुई। लीड एक्टर के न कहने पर प्रोड्यूसर हिमांशु राय परेशान थे। तभी उनकी नजर दादा मुनि पर पड़ी। हिमांशु राय ने उन्हें बुलाया और सीधा ऑफर देते हुए कहा, “हीरो बनोगे? तुम्हें एक्टिंग करने का और फिल्म में हीरो बनने का मौका मिल रहा है।”

अशोक कुमार घबराते हुए बोले, “मैं एक्टिंग नहीं कर सकता, मां-बाप भी नहीं चाहते।” हिमांशु राय ने मुस्कुराते हुए कहा, “अरे, दो-चार फिल्में करके देख लो। मन न लगे तो छोड़ देना एक्टिंग।” यही वो वाक्य था जिसने भारतीय सिनेमा को उसका पहला सुपरस्टार दे दिया। ‘जीवन नैया’ रिलीज हुई और सुपरहिट रही।

इसके बाद ‘अछूत कन्या’ साल 1936 में आई और उन्हें रातोंरात स्टार बना दिया। देविका रानी के साथ उनकी जोड़ी ने धूम मचा दी थी। सहज अभिनय और डायलॉग डिलीवरी इतनी नेचुरल थी कि लगता था जैसे वो कोई किरदार नहीं, असल जिंदगी जी रहे हैं। एक इंटरव्यू में उन्होंने अपनी बेहतरीन एक्टिंग के पीछे का राज भी बताया था।

उन्होंने बताया था, “मैं शूटिंग से पहले घर पर ही डायलॉग प्रैक्टिस करता हूं ताकि सेट पर दिक्कत न हो। जब भी प्रैक्टिस करके सेट पर गया हूं, कभी दिक्कत नहीं हुई और आराम से काम करता हूं।”

इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने ‘किस्मत’, ‘अछूत कन्या’, ‘हावड़ा ब्रिज’, ‘कंगन’, ‘चलती का नाम गाड़ी’, ‘बंधन’, ‘झूला’, ‘बंदिनी’ जैसी कई यादगार फिल्मों में काम किया। अशोक कुमार ने 100 से ज्यादा फिल्मों में अभिनय किया।

अशोक कुमार के भारतीय सिनेमा में शानदार योगदान के लिए साल 1988 में भारत सरकार ने उन्हें सिनेमा के सबसे बड़े सम्मान, दादा साहब फाल्के पुरस्कार, से नवाजा था। साल 1962 में उन्हें पद्म श्री और साल 1999 में पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया।

Point of View

बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक मानक स्थापित किया। उनकी कहानी प्रेरणा का स्रोत है और हमें सिखाती है कि कैसे कठिनाइयों के बावजूद अपने सपनों को पूरा किया जा सकता है।
NationPress
09/12/2025

Frequently Asked Questions

अशोक कुमार का असली नाम क्या था?
अशोक कुमार का असली नाम कुमुदलाल गांगुली था।
अशोक कुमार ने कितनी फिल्मों में काम किया?
अशोक कुमार ने 100 से ज्यादा फिल्मों में काम किया।
अशोक कुमार को कौन सा पुरस्कार मिला?
उन्हें दादा साहब फाल्के पुरस्कार, पद्म श्री, और पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।
अशोक कुमार को 'दादा मुनि' क्यों कहा जाता है?
उन्हें 'दादा मुनि' कहा जाता है क्योंकि उन्होंने सिनेमा में अपनी अदाकारी और सहजता से एक नई पहचान बनाई।
अशोक कुमार की पहली प्रमुख फिल्म कौन सी थी?
उनकी पहली प्रमुख फिल्म 'जीवन नैया' थी।
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