क्या बादल सरकार ने रंगमंच को आम लोगों के बीच लाने का अद्भुत कार्य किया?

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क्या बादल सरकार ने रंगमंच को आम लोगों के बीच लाने का अद्भुत कार्य किया?

सारांश

बादल सरकार, एक अद्वितीय रंगकर्मी, ने रंगमंच को बिना मंच और टिकट के आम जनता के बीच लाकर एक नई परिभाषा दी। उनकी कहानी न केवल एक कलाकार की है, बल्कि सामाजिक परिवर्तन के प्रति उनकी प्रेरणा की भी है। जानिए कैसे उन्होंने अपने जीवन को रंगमंच के प्रति समर्पित किया।

Key Takeaways

  • बादल सरकार ने रंगमंच को आम जनता के बीच लाने का प्रयास किया।
  • उन्होंने 'थर्ड थिएटर' की अवधारणा को विकसित किया।
  • उनके नाटकों ने समाज के गहरे मुद्दों पर ध्यान खींचा।
  • उन्हें कई पुरस्कारों से नवाजा गया, जो उनके काम की मान्यता है।
  • उनका जीवन रंगमंच के प्रति समर्पित रहा।

मुंबई, 14 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। हर कलाकार का एक सपना होता है कि उसकी कला लोगों तक पहुंचे, लोग उससे जुड़ें और कुछ नया सोचें। लेकिन कुछ कलाकार ऐसे भी होते हैं जो सिर्फ़ मंच पर अभिनय नहीं करते, बल्कि समाज की सोच बदलते हैं। बादल सरकार ऐसे ही एक कलाकार थे। उन्होंने रंगमंच को आम लोगों के बीच ले जाकर यह दिखा दिया कि नाटक सिर्फ़ किसी हॉल या टिकट तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक जरिया है— लोगों से जुड़ने का, उन्हें सोचने पर मजबूर करने का और बदलाव लाने का।

बादल सरकार का जन्म 15 जुलाई 1925 को कोलकाता में हुआ था। उनका असली नाम सुधींद्र सरकार था। वह एक साधारण बंगाली परिवार से थे, लेकिन उनकी सोच हमेशा असाधारण रही। पढ़ाई में तेज होने के कारण उन्होंने बंगाल इंजीनियरिंग कॉलेज से सिविल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की और बाद में नगर योजनाकार के रूप में भारत, इंग्लैंड और नाइजीरिया में काम किया।

सरकारी नौकरी और विदेशों में काम करने के बाद भी उनका मन हमेशा उन्हें थिएटर की ओर खींचता रहता था। उन्होंने अपनी खुशी और सुकून उस कला में पाई जो उनके अंदर नैसर्गिक थी। कला के प्रति इस लगाव और पैशन के चलते उन्होंने नौकरी छोड़ दी और पूरी तरह से रंगमंच को अपना जीवन बना लिया।

उनका रंगमंच अलग था। वह नाटक को सिर्फ मंच, पर्दा और लाइट से जुड़ा हुआ नहीं मानते थे। उन्होंने ऐसे नाटक लिखे और किए, जिन्हें बिना मंच, बिना वेशभूषा, बिना टिकट के गांवों और नुक्कड़ों पर दिखाया गया। लोग जमीन पर बैठते, कलाकारों के साथ जुड़ते और नाटक को महसूस करते। दर्शकों के साथ इस सीधे संवाद को उन्होंने 'थर्ड थिएटर' का नाम दिया।

यह थिएटर किसी हॉल की दीवारों में नहीं, बल्कि खुले मैदान में, आम जनता के बीच होता था। इसका मकसद सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि सवाल उठाना, सोच जगाना और संवाद बनाना था। इसमें दर्शक सिर्फ देखने वाला नहीं, बल्कि हिस्सा लेने वाला भी होता था।

1967 में उन्होंने 'शताब्दी' नाम से अपना नाट्य समूह शुरू किया। उनके लिखे कई नाटक आज भी भारतीय रंगमंच की धरोहर माने जाते हैं। इनमें 'एवं इंद्रजीत', 'बासी खबर', 'पगला घोड़ा', 'सगीना महतो', 'भोमा', और 'मिछिल' जैसे नाटकों ने न केवल दर्शकों को प्रभावित किया, बल्कि समाज के गहरे मुद्दों पर भी ध्यान खींचा।

बादल सरकार को कई पुरस्कारों से नवाजा गया, जिनमें 1968 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, 1971 में जवाहरलाल नेहरू फैलोशिप, 1972 में पद्म श्री और 1997 में प्रदर्शन कला का सबसे बड़ा सम्मान, संगीत नाटक अकादमी फेलोशिप शामिल हैं।

13 मई 2011 को कोलकाता में उनका निधन हो गया। उनका पूरा जीवन रंगमंच के लिए समर्पित रहा।

Point of View

बल्कि यह दर्शाता है कि कला का वास्तविक उद्देश्य समाज में संवाद और परिवर्तन लाना है। उनकी विधियों ने भारतीय रंगमंच को गहराई से प्रभावित किया और हमें यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि कला का उपयोग केवल मनोरंजन के लिए नहीं, बल्कि समाज के विकास के लिए भी किया जा सकता है।
NationPress
21/07/2025

Frequently Asked Questions

बादल सरकार का जन्म कब हुआ?
बादल सरकार का जन्म 15 जुलाई 1925 को कोलकाता में हुआ था।
बादल सरकार ने किस प्रकार का रंगमंच प्रस्तुत किया?
उन्होंने 'थर्ड थिएटर' का विकास किया, जो बिना मंच, टिकट और वेशभूषा के आम जनता के बीच नाटक प्रस्तुत करता था।
बादल सरकार को कौन-कौन से पुरस्कार मिले?
उन्हें 1968 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, 1971 में जवाहरलाल नेहरू फैलोशिप, 1972 में पद्म श्री और 1997 में संगीत नाटक अकादमी फेलोशिप से नवाजा गया।