क्या बिमल रॉय की फिल्में भारतीय सिनेमा की धरोहर हैं?

सारांश
Key Takeaways
- बिमल रॉय का जन्म 12 जुलाई 1909 को हुआ था।
- उन्होंने भारतीय सिनेमा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
- उनकी फिल्में समाजवादी मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करती हैं।
- 'दो बीघा जमीन' ने उन्हें अमर बना दिया।
- उन्होंने कांस फिल्म समारोह में पुरस्कार जीते हैं।
नई दिल्ली, 12 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। बिमल रॉय भारतीय सिनेमा के एक अद्वितीय निर्माता हैं, जिनका जन्म 12 जुलाई 1909 को हुआ था। उनकी फिल्मों का योगदान, विशेषकर यथार्थवादी और समाजवादी दृष्टिकोण के कारण, उन्हें आज भी याद किया जाता है। 'दो बीघा जमीन' और 'बंदिनी' जैसी फिल्मों ने समाज के प्रति उनकी जागरूकता को प्रदर्शित किया है।
एक जमींदार परिवार से संबंधित बिमल रॉय के पिता की आकस्मिक मृत्यु ने उन्हें जमींदारी से बेदखल कर दिया। इसके बाद उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की और कोलकाता में फिल्म उद्योग में कदम रखा। उन्होंने बंगाली और हिंदी में कई सफल फिल्में बनाई, जिनमें 'देवदास', 'परिणीता', 'मधुमती', 'परख', 'सुजाता' और 'बंदिनी' शामिल हैं। बिमल रॉय को अपने कार्य के लिए अनेक पुरस्कार मिले हैं।
उनकी फिल्म 'दो बीघा जमीन' ने 1953 में किसानों की समस्याओं को उजागर किया और इसने उन्हें अमर बना दिया। इस फिल्म में बलराज साहनी और निरूपा रॉय ने मुख्य भूमिकाएं निभाईं, और इसे 1954 में पहला फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला। इस फिल्म को कांस फिल्म समारोह में अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला।
हिंदी सिनेमा के महानायक राजकपूर ने इस फिल्म को देखकर कहा था कि अगर भविष्य में भारत की 100 सर्वश्रेष्ठ फिल्मों की सूची बनाई गई, तो यह फिल्म अवश्य शामिल होगी।
बिमल रॉय को 1954 में कांस फिल्म महोत्सव में इंटरनेशनल अवॉर्ड के साथ 2 राष्ट्रीय और 11 फिल्मफेयर पुरस्कार मिले। मधुमती ने 1958 में 9 फिल्मफेयर अवॉर्ड जीते। कैंसर से पीड़ित बिमल रॉय ने 1965 में मात्र 55 वर्ष की आयु में इस दुनिया को अलविदा कहा।