क्या आधी रात अचानक दिलीप कुमार के घर पहुंचे थे धर्मेंद्र?
सारांश
Key Takeaways
- धर्मेंद्र और दिलीप कुमार के बीच गहरी दोस्ती का रिश्ता।
- आधी रात को दिलीप कुमार के घर पहुँचने की साहसिक कहानी।
- सायरा बानो का इस किस्से में महत्वपूर्ण योगदान।
- दोनों सितारों के बीच का अनोखा बंधन।
- सच्चे रिश्ते समय और स्थिति से परे होते हैं।
मुंबई, 24 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। बॉलीवुड के ही-मैन धर्मेंद्र अब हमारे बीच नहीं रहे। उनके जाने से सैकड़ों फिल्में, अनगिनत यादें और कुछ ऐसे किस्से रह गए हैं, जिन्हें आने वाली पीढ़ियाँ भी मुस्कुराते हुए सुनाएंगी। इनमें से एक किस्सा है एक रात का।
यह उस समय की बात है जब आधी रात को, बिना किसी सूचना के, धर्मेंद्र अपने आइडल यूसुफ साहब यानी दिलीप कुमार के घर जा पहुंचे थे।
बॉलीवुड के दोनों सितारों के बीच एक विशेष रिश्ता था। बीते जमाने की अभिनेत्री सायरा बानो ने इस दिलचस्प किस्से का जिक्र एक सोशल मीडिया पोस्ट में किया था।
सायरा बानो ने बताया कि वर्ष 1952 में, जब पंजाब के युवा धर्मेंद्र ने दिलीप कुमार की फिल्म ‘शहीद’ देखी थी, तब वह उनके दीवाने हो गए थे। उन्होंने ट्रेन पकड़ी और सीधे बॉम्बे आ पहुंचे। बांद्रा के पाली माला में दिलीप साहब का घर खोज निकाला। गेट खोला, सीढ़ियाँ चढ़ी, और एक कमरे के दरवाजे पर रुके, जहां उनके यूसुफ साहब सो रहे थे! धर्मेंद्र बस खड़े-खड़े उन्हें निहारते रहे। अचानक दिलीप साहब की आँख खुल गई, और उन्होंने स्टाफ को आवाज दी। धर्मेंद्र घबराकर नीचे भाग गए। यह उनकी पहली मुलाकात थी, लेकिन यह प्यार जीवन भर का था।
छह साल बाद, जब फिल्मफेयर टैलेंट कॉन्टेस्ट के लिए दुबारा बॉम्बे आए, तो बहन की मदद से अपॉइंटमेंट लिया। दिलीप साहब ने बड़े भाई की तरह गले लगाया। ठंड थी, धर्मेंद्र कॉटन शर्ट में कांप रहे थे। दिलीप साहब ने तुरंत अपना स्वेटर निकालकर कहा, “लो, घर जाते वक्त पहन लेना।” उस दिन से धर्मेंद्र के लिए दिलीप साहब का घर अपना घर बन गया। न कोई रस्म, न अपॉइंटमेंट, दिन हो या आधी रात, दरवाजा हमेशा खुला रहता था।
उन्होंने एक और किस्सा सुनाया, जब सनी देओल की पहली फिल्म ‘बेताब’ का मुहूर्त था और आधी रात को धर्मेंद्र दिलीप साहब के घर पहुंच गए। ऊपर गए, सनी की बड़ी-बड़ी तस्वीरें फैलाकर शर्माते हुए बोले, 'हीरोइन अमृता सिंह है… नासिर भाई की रिश्तेदार।' दिलीप साहब ने उनका हौसला बढ़ाया और घर जैसा एहसास कराया।
धर्मेंद्र हमेशा कहते थे, “मेरे घर में माता-पिता और बच्चों की तस्वीरों के अलावा सिर्फ यूसुफ साहब की एक तस्वीर है, जिसे मैं रोज देखता हूं। दोनों ने कभी साथ में किसी मुख्य भूमिका में काम नहीं किया, लेकिन दोस्ती और मोहब्बत में कभी कोई कमी नहीं रही।”