क्या हेमंत कुमार की आवाज ने देवानंद को 'रोमांस किंग' बनाया?

सारांश
Key Takeaways
- हेमंत कुमार की आवाज ने भारतीय सिनेमा में अमिट छाप छोड़ी।
- उन्होंने देवानंद को 'रोमांस किंग' बना दिया।
- उनकी मखमली आवाज आज भी लोगों के दिलों में बसती है।
- उन्होंने बांग्ला सिनेमा में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।
- हेमंत कुमार पहले भारतीय प्लेबैक सिंगर थे, जिन्होंने हॉलीवुड के लिए गाया।
मुंबई, १५ जून (राष्ट्र प्रेस)। हिंदी और बांग्ला सिनेमा की दुनिया में एक ऐसी खास आवाज गूंजी, जिसने न केवल लाखों दिलों को छुआ, बल्कि देवानंद जैसे सितारे को 'रोमांस किंग' का खिताब दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह आवाज थी हेमंत कुमार की, जिन्हें स्नेहपूर्वक 'हेमंत दा' कहा जाता है। गायक, संगीतकार और फिल्म निर्माता के रूप में उनकी बहुमुखी प्रतिभा ने भारतीय सिनेमा में एक अमिट छाप छोड़ी।
‘सुरों के सरताज’ की १६ जून को १०५वीं जयंती है। उनकी मखमली आवाज आज भी म्यूजिक प्लेटफॉर्म पर सुनी जाती है और लोग अक्सर उनके गाने गुनगुनाते रहते हैं। उन्होंने कई ऐसे एवरग्रीन गाने दिए हैं, जो सुनते ही मन को ताजगी और खुशी का अनुभव कराते हैं।
हेमंत कुमार का असली नाम हेमंत मुखोपाध्याय था। उनका जन्म १६ जून १९२० को वाराणसी में हुआ। उनके परिवार की जड़ें बंगाल में थीं और उन्होंने कोलकाता में अपनी परवरिश की। १३ साल की उम्र में, १९३३ में, हेमंत ने ऑल इंडिया रेडियो पर अपना पहला गाना 'अमर गनेते एले नबरुपी चिरंतनी' गाया, यह मौका उनके मित्र और प्रसिद्ध बांग्ला कवि सुभाष मुखोपाध्याय ने दिलाया था।
शिक्षा के दौरान उन्होंने शैलेश दत्तगुप्ता से रवींद्र संगीत और उस्ताद फैयाज खां से शास्त्रीय संगीत की विधिवत शिक्षा ली। उनके पिता चाहते थे कि वह इंजीनियर बनें, लेकिन उन्होंने संगीत को अपने जीवन का मार्ग चुना और बंगाल टेक्निकल इंस्टिट्यूट छोड़कर 'देश' पत्रिका के लिए कहानियां लिखने के साथ-साथ संगीत साधना शुरू कर दी।
१९५० और १९६० के दशक में हेमंत कुमार की आवाज ने धूम मचा दी। उनकी आवाज देवानंद के लिए एक विशिष्ट पहचान बन गई। उनकी गहरी, मखमली आवाज ने देवानंद के किरदारों को और आकर्षक बना दिया। संगीतकार सचिन देव बर्मन (एस.डी. बर्मन) के साथ उन्होंने कई यादगार गीत दिए, जिनमें १९५२ में आई ‘जाल’ का ‘ये रात ये चांदनी फिर कहां, सुन जा दिल की दास्तां’ शामिल है। यह गाना, जिसमें देवानंद और गीता बाली की जोड़ी थी, आज भी रोमांस का पर्याय बना हुआ है। १९५५ में आई फिल्म ‘हाउस नं. ४४’ में उन्होंने ‘तेरी दुनिया में जीने से तो बेहतर है कि मर जाएं’ और ‘चुप है धरती’ जैसे गाने गाए, जो देवानंद की भावनाओं को गहराई से व्यक्त करते हैं।
‘सोलहवां साल’ का ‘है अपना दिल तो आवारा, न जाने किस पे आएगा’ एक ऐसा गाना था, जिसमें हेमंत की आवाज और देवानंद के अंदाज ने जादू बिखेरा। इस गाने में आर.डी. बर्मन ने भी खास रंग जोड़ा।
१९६२ में आई फिल्म ‘न तुम हमें जानो, न हम तुम्हें जानें’ भी हेमंत की मधुर आवाज का एक अनूठा उदाहरण है, जिसमें गायिका सुमन कल्याणपुर के साथ उनकी जुगलबंदी थी।
१९५७ की फिल्म ‘प्यासा’ में ‘जाने वो कैसे लोग थे जिनके, प्यार को प्यार मिला’ गुरु दत्त पर फिल्माया गया। इस गाने में साहिर लुधियानवी के बोल और हेमंत की आवाज ने एक निराश कवि की भावनाओं को जीवंत कर दिया।
हेमंत ने न केवल गायन में बल्कि संगीत निर्देशन में भी अपनी प्रतिभा दिखाई। ‘नागिन’ (१९५४) में उनके संगीत ने उन्हें फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक का पुरस्कार दिलाया। ‘मन डोले मेरा तन डोले’ जैसे गाने आज भी लोकप्रिय हैं। ‘बीस साल बाद’ में ‘बेकरार करके हमें यूं न जाइए’ और ‘कहीं दीप जले कहीं दिल’ जैसे गाने उनकी संगीत रचना और गायन दोनों की मिसाल हैं।
अपनी शानदार प्रतिभा को उन्होंने ‘खामोशी’ के साथ बरकरार रखा और १९६९ की ‘तुम पुकार लो, तुम्हारा इंतजार है’ और ‘कोहरा’ के ‘ये नयन डरे डरे’ के साथ आगे बढ़ाया।
हेमंत ने बांग्ला सिनेमा में भी अपनी छाप छोड़ी और उत्तम कुमार के लिए कई गाने गाए, जो बंगाल में बेहद लोकप्रिय थे।
यही नहीं, वह हॉलीवुड के लिए गाना गाने वाले पहले प्लेबैक सिंगर थे। वह बाल्टीमोर, मैरीलैंड की नागरिकता पाने वाले पहले भारतीय गायक थे।
१९८० में दिल का दौरा पड़ने के बाद उनकी आवाज प्रभावित हुई, लेकिन उन्होंने गाना जारी रखा। १९८४ में ‘ग्रामोफोन कंपनी ऑफ इंडिया’ ने उन्हें ५० साल के संगीतमय योगदान के लिए सम्मानित किया।
२६ सितंबर १९८९ को हेमंत दा का निधन हुआ, लेकिन उनकी आवाज आज भी संगीत प्रेमियों के दिलों में जीवित है।