क्या कल्याणजी भाई का करियर का सबसे चुनौतीपूर्ण गाना था 'मेरे देश की धरती'?

सारांश
Key Takeaways
- कल्याणजी वीरजी शाह ने भारतीय सिनेमा में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
- उनका प्रसिद्ध गाना 'मेरे देश की धरती' आज भी गूंजता है।
- 19 घंटे तक चली रिकॉर्डिंग ने संगीत में नई मिसाल रखी।
- उन्होंने 250 से अधिक फिल्मों में संगीत दिया है।
- उन्हें 'पद्मश्री' से सम्मानित किया गया।
मुंबई, 23 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। कल्याणजी वीरजी शाह हिंदी सिनेमा के उन महान संगीतकारों में से एक माने जाते हैं, जिन्होंने अनेक अद्भुत और यादगार गीतों की रचना की। इनमें से एक प्रसिद्ध गीत 'मेरे देश की धरती सोना उगले' आज भी लोगों की जुबां पर चढ़ा हुआ है। कल्याणजी ने इस गाने की रिकॉर्डिंग को अपने करियर की सबसे चुनौतीपूर्ण और गर्व भरी उपलब्धियों में से एक माना।
उनका जन्म 30 जून 1928 को गुजरात के कच्छ में हुआ था। कुछ वर्षों बाद उनका परिवार गुजरात से मुंबई आया, जहां उनके पिता वीरजी शाह ने एक छोटी सी किराने की दुकान खोली। एक ग्राहक ने उधारी न चुका पाने के बदले में उन्हें और उनके भाई आनंदजी को संगीत की शिक्षा दी। इस उधारी के जरिए मिले संगीत का ज्ञान समय के साथ और निखरता गया, और दोनों भाई अपनी मेहनत से हिंदी सिनेमा की पहचान बन गए। यह किस्सा कल्याणजी आनंदजी की आधिकारिक वेबसाइट पर मौजूद है।
एक इंटरव्यू में आनंदजी ने 'मेरे देश की धरती सोना उगले' के रिकॉर्डिंग के बारे में जानकारी दी थी। उन्होंने बताया कि इस गाने की रिकॉर्डिंग सुबह 9 बजे शुरू हुई और यह लगभग 19 घंटे तक चली। उस समय लाइव रिकॉर्डिंग का चलन था, इसलिए उन्होंने और कल्याणजी ने पंछियों की चहचहाहट, पानी की बूंदों की आवाज और अन्य प्राकृतिक ध्वनियों को उसी समय रिकॉर्ड करने पर ध्यान दिया।
उन्होंने कहा, ''यह सिर्फ संगीत की रिकॉर्डिंग नहीं थी, बल्कि प्रकृति और इंसान के मेल की एक मिसाल थी। इस गाने में हर आवाज का सही समय पर आना और मेल बैठाना कितना चुनौतीपूर्ण था, लेकिन यही चुनौतियाँ हमें प्रेरित करती थीं। रात 4 बजे तक मेहनत करने के बावजूद हमें कभी थकान महसूस नहीं हुई, क्योंकि यह गीत हमारे दिल के बहुत करीब था। यह गाना न सिर्फ मेरे लिए बल्कि कल्याणजी के लिए भी चुनौतीपूर्ण था।''
कल्याणजी के फिल्मी करियर की बात करें तो, उन्होंने अपने भाई आनंदजी के साथ मिलकर 'कल्याणजी वीरजी एंड पार्टी' के नाम से एक आर्केस्ट्रा कंपनी बनाई, जो विभिन्न शहरों में प्रदर्शन करती थी।
उन्होंने 1959 में 'सम्राट चंद्रगुप्त' के लिए पहली बार संगीत दिया। उस समय आनंदजी आधिकारिक रूप से उनके साथ नहीं जुड़े थे, लेकिन उन्होंने भरपूर साथ दिया। बाद में आनंदजी ने आधिकारिक तौर पर कल्याणजी के साथ काम करना शुरू किया और उसी वर्ष 1959 में रिलीज हुई फिल्मों 'सट्टा बाजार' और 'मदारी' के लिए संगीत तैयार किया। उनकी पहली बड़ी हिट 1960 में आई 'छलिया' थी। 1965 में आए 'हिमालय की गोद में' और 'जब जब फूल खिले' जैसी फिल्मों ने उन्हें बॉलीवुड के सफल संगीतकारों की श्रेणी में ला खड़ा किया।
कल्याणजी-आनंदजी ने 250 से अधिक फिल्मों में संगीत दिया, जिनमें से 17 फिल्में गोल्डन जुबली और 39 सिल्वर जुबली रहीं। उन्होंने अपने समय के महान गायकों जैसे मोहम्मद रफी, लता मंगेशकर, आशा भोसले, मन्ना डे, मुकेश और महेंद्र कपूर के साथ काम किया। फिल्म 'कोरा कागज' के गाने 'मेरा जीवन कोरा कागज' के लिए उन्हें 'सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक' का पहला फिल्मफेयर पुरस्कार मिला।
1992 में भारत सरकार ने संगीत क्षेत्र में असाधारण योगदान के लिए चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'पद्मश्री' से सम्मानित किया। उनकी जोड़ी ने लता मंगेशकर के लिए 326 गीत तैयार किए, जिनमें से 24 गीत उन्होंने अपने पहले नाम 'कल्याणजी वीरजी शाह' के तहत और बाकी 302 गीत 'कल्याणजी-आनंदजी' के नाम से दिए।
मन्ना डे की आवाज से सजी प्रसिद्ध कव्वाली 'यारी है ईमान मेरा, यार मेरी जिंदगी...' आज भी लोगों के दिलों में बसी हुई है।
कल्याणजी वीरजी शाह का निधन 24 अगस्त 2000 को हुआ, लेकिन उनका संगीत आज भी लोगों के दिलों में बसा हुआ है। राष्ट्रीय पर्व पर अब भी बच्चे 'मेरे देश की धरती' को गर्व के साथ गुनगुनाते हैं।