क्या कोलकाता की गलियों से बॉलीवुड और राजनीति तक, आवाज से बनाई बाबुल सुप्रियो ने पहचान?
सारांश
Key Takeaways
- बाबुल सुप्रियो का जीवन संघर्ष और सफलता की प्रेरक कहानी है।
- कोलकाता की गलियों से लेकर बॉलीवुड और राजनीति तक का सफर।
- संगीत और राजनीति दोनों में अपनी पहचान बनाई।
- बचपन से ही संगीत के प्रति गहरा प्रेम।
- सफलता के लिए कठिनाइयों का सामना करना जरूरी है।
नई दिल्ली, 14 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। हिमालय की खूबसूरत पहाड़ियों और बंगाल की खाड़ी के बीच स्थित पश्चिम बंगाल के कोलकाता में 15 दिसंबर 1978 को जन्मे बाबुल सुप्रियो का बचपन संगीत के वातावरण में बीता। उनके परिवार में संगीत की गहरी जड़ें थीं। उनके पिता और माता संगीत प्रेमी थे, जबकि दादा बंगाली संगीत के प्रसिद्ध संगीतकार थे। यही कारण था कि बाबुल ने चार साल की उम्र से ही संगीत को अपना साथी बना लिया। किशोर कुमार और दादा की प्रेरणा ने उन्हें संगीत के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया।
बाबुल ने अपनी कला को पहचान दिलाने के लिए पहले कदम ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन के मंचों पर रखा। उन्हें गायकी के लिए 1983 में 'ऑल इंडिया डॉन बॉस्को म्यूजिक चैंपियन' और 1985 में 'सबसे प्रतिभाशाली प्रतिभा' पुरस्कार भी प्राप्त हुए। कॉलेज के दौरान, बॉलीवुड की आवाजों ने उनका ध्यान खींचा, खासकर कुमार सानू की आवाज। हालांकि उनके पिता चाहते थे कि वह किसी स्थिर नौकरी में रहें, इसलिए पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने बैंक में नौकरी भी की। लेकिन, संगीत का जुनून कभी खत्म नहीं हुआ।
एक दिन बाबुल ने सब कुछ छोड़कर मुंबई की राह पकड़ी। हावड़ा रेलवे स्टेशन से यात्रा प्रारंभ की और 22 घंटे बाद दादर स्टेशन पर पहुंचे। मुंबई की सड़कों, स्टूडियो और संगीत निर्देशकों के कार्यालय उनके लिए नई दुनिया के दरवाजे खोले। अंधेरी वेस्ट में उन्होंने ठिकाना बनाया और अपने सपनों की खोज शुरू की। प्रारंभिक संघर्षों के बाद, एक फोन कॉल ने उनकी जिंदगी बदल दी। संगीत निर्देशक कल्याणजी ने उन्हें वर्ल्ड टूर का अवसर प्रदान किया। मार्च 1993 में उनके पासपोर्ट पर पहली बार ठप्पा लगा और उनके सपनों का सफर प्रारंभ हुआ।
इसके बाद बॉलीवुड ने उन्हें अपनाना शुरू किया। बप्पी लहरी, अनु मलिक, साजिद-वाजिद और ए.आर. रहमान जैसे दिग्गजों के साथ काम करने का मौका मिला। फिल्में और हिट गाने उनके करियर की सीढ़ियां बन गए। 'मुमकिन ही नहीं तुमसे प्यार हो जाए', 'दिल ने दिल को पुकारा', और 'हटा सावन की घटा' जैसे गाने उनकी आवाज की ताकत साबित कर गए।
सिर्फ संगीत ही नहीं, बाबुल सुप्रियो ने राजनीति की दुनिया में भी कदम रखा। बाबा रामदेव के कहने पर उन्होंने बंगाल के आसनसोल सीट से चुनाव लड़ा और सफलता प्राप्त की। इसके बाद केंद्रीय मंत्री की कुर्सी तक का सफर उनके लिए खुल गया।