क्या मदन सिंह चौहान छत्तीसगढ़ी लोक संगीत के सच्चे प्रतीक हैं? 2020 में पद्मश्री से हुए सम्मानित

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क्या मदन सिंह चौहान छत्तीसगढ़ी लोक संगीत के सच्चे प्रतीक हैं? 2020 में पद्मश्री से हुए सम्मानित

सारांश

मदान सिंह चौहान, छत्तीसगढ़ के लोक संगीत के महानायक, ने अपनी मधुर आवाज़ से संस्कृति को दुनिया में पहुँचाया। उन्हें 2020 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया। इस लेख में हम उनकी यात्रा और योगदान को देखेंगे।

Key Takeaways

  • मदन सिंह चौहान ने छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति को वैश्विक स्तर पर पहुँचाया।
  • उन्होंने कई बाधाओं का सामना करते हुए संगीत में महारत हासिल की।
  • उनकी आवाज़ में लोक संगीत की गहराई है।
  • वह एक सम्मानित संगीत शिक्षक हैं, जिन्होंने सैकड़ों शिष्यों को प्रशिक्षित किया है।
  • 2020 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया।

नई दिल्ली, 14 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। छत्तीसगढ़ अपनी लोक संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है। संगीत संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। छत्तीसगढ़ के लोक संगीत में मदान सिंह चौहान का नाम श्रद्धा और सम्मान के साथ लिया जाता है। उन्होंने राज्य की परंपरा और संस्कृति को अपनी मधुर आवाज में देश-विदेश में फैलाया है। उन्हें स्नेहपूर्वक गुरुजी भी कहा जाता है।

मदन सिंह चौहान का जन्म 15 अक्टूबर 1947 को रायपुर में हुआ। संगीत की साधना की शुरुआत बचपन में ही हुई। चौहान को गरीबी के कारण संगीत के क्षेत्र में कई बाधाओं का सामना करना पड़ा। उन्होंने बचपन में ढोलक बजाना शुरू किया, लेकिन उसकी शुरुआत टिन के पीपे से की। ढोलक खरीदने के लिए पैसे उनके पास नहीं थे। पंडित कन्हैयालाल भट्ट के मार्गदर्शन में उन्होंने तबला वादन में दक्षता प्राप्त की। प्रारंभ में ढोलक, फिर तबला और अंततः गायन में उन्होंने महारत हासिल की।

वे तबला वादन के साथ-साथ गज़ल और लोक संगीत गाते हैं। उनकी आवाज़ में वह जादू है जो श्रोताओं को लोक से जोड़ता है। छत्तीसगढ़ के लोकगीत जैसे पंडवानी या करमा से प्रेरित होकर वे आधुनिक सूफी संगीत को नया आयाम देते हैं। छत्तीसगढ़ी लोक शैली को शास्त्रीय संगीत के साथ जोड़ते हैं, जहाँ सूफी की रहस्यमय धुनें लोक की सरलता के साथ मिलती हैं। उनके गीतों में प्रेम, वियोग और आध्यात्मिकता का मिश्रण है, जो श्रोताओं के दिल को छूता है। वे भजन, गज़ल, सूफी और लोक शैली को अपने सुर में सजाते हैं। कबीर की याद में गाया गया 'आज मोरे घर साहिब आए' जैसे उनके गीत बहुत प्रसिद्ध हैं।

चौहान एक प्रसिद्ध संगीत शिक्षक भी हैं। रायपुर में उनसे प्रशिक्षित सैकड़ों शिष्य देश-विदेश में छत्तीसगढ़ का नाम रोशन कर रहे हैं।

मदन सिंह चौहान की आजीवन संगीत साधना और छत्तीसगढ़ लोक संगीत में उनके असाधारण योगदान के लिए 2020 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया। उन्हें सम्मानित करते समय तब के राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने कहा था, 'छत्तीसगढ़िया सब ले बढ़िया।'

78 वर्ष की आयु में भी मदन सिंह चौहान संगीत के क्षेत्र में सक्रिय हैं और गायन, वादन के साथ ही युवा पीढ़ी को लोक संगीत से जोड़ने और प्रशिक्षित करने का कार्य निरंतर कर रहे हैं।

Point of View

बल्कि यह भारतीय लोक संगीत की समृद्धि का प्रतीक भी है। उनकी साधना और शिक्षण से कई युवा प्रेरित हो रहे हैं, जो देश में संगीत की नई लहर पैदा कर रहे हैं।
NationPress
14/10/2025

Frequently Asked Questions

मदन सिंह चौहान को कब पद्मश्री मिला?
मदन सिंह चौहान को 2020 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया।
मदन सिंह चौहान की प्रमुख शैली क्या है?
वे छत्तीसगढ़ी लोक संगीत, गज़ल और सूफी संगीत में माहिर हैं।
उनका जन्म कब हुआ था?
उनका जन्म 15 अक्टूबर 1947 को रायपुर में हुआ।
क्या मदन सिंह चौहान केवल गायन करते हैं?
नहीं, वे तबला वादन और संगीत शिक्षा भी देते हैं।
कौन से प्रमुख गीतों के लिए वे जाने जाते हैं?
वे 'आज मोरे घर साहिब आए' जैसे गीतों के लिए प्रसिद्ध हैं।