क्यों 'बैंडिट क्वीन' नवाजुद्दीन सिद्दीकी के लिए खास है?

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क्यों 'बैंडिट क्वीन' नवाजुद्दीन सिद्दीकी के लिए खास है?

सारांश

नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने हाल ही में 'आईएफपी' में अपने अभिनय के अनुभव और थिएटर की भूमिका पर चर्चा की। उन्होंने अपनी पसंदीदा फिल्म 'बैंडिट क्वीन' के महत्व को भी साझा किया। इस सत्र में थिएटर और फिल्म के बीच के अंतर को समझाया गया।

Key Takeaways

  • नवाजुद्दीन सिद्दीकी का थिएटर के प्रति गहरा प्रेम।
  • 'बैंडिट क्वीन' की महत्वपूर्ण भूमिका।
  • थिएटर और फिल्म के बीच का अंतर।
  • अभिनय के माध्यम से आत्म-समझना।
  • भारतीय थिएटर के विविध रूपों का अनुभव।

मुंबई, 2 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। इंडियन फिल्म प्रोजेक्ट (आईएफपी) हर वर्ष कला, फिल्ममेकर्स और क्रिएटर्स को एक मंच पर एकत्र करता है। यह आयोजन केवल फिल्में तक सीमित नहीं है, बल्कि कला, थिएटर, संगीत और साहित्य जैसी विभिन्न रचनात्मक गतिविधियों को भी बढ़ावा देता है। इस साल, दर्शकों की बढ़ती संख्या ने इस आयोजन को विशेष बना दिया।

इस बार 'आईएफपी' का सबसे चर्चित सत्र 'बिहाइंड द सीन: मैं एक्टर नहीं हूं' था, जिसमें बॉलीवुड अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दीकी और फिल्ममेकर-लेखक आदित्य कृपलानी ने मंच साझा किया। जब ये दोनों कलाकार मंच पर आए, तो दर्शकों ने जोरदार तालियों के साथ उनका स्वागत किया। इस सत्र में नवाजुद्दीन ने अभिनय के अनुभव, थिएटर और फिल्मों में काम करने के दृष्टिकोण और करियर की चुनौतियों के बारे में चर्चा की।

नवाजुद्दीन ने पहले फिल्मों और थिएटर के बीच के भिन्नताओं पर चर्चा की। उन्होंने कहा, "फिल्मों में कैमरा आपकी हरकतों और छोटे-छोटे व्यवहार को कैद करता है, जबकि थिएटर में आपको अपनी हर भावना और क्रिया को पूर्णता से व्यक्त करना पड़ता है। उदाहरण के लिए, यदि आप हाथ में गिलास पकड़े हैं और उसे हिलाते हैं, तो फिल्म में कैमरा केवल उस क्रिया को दिखाता है, लेकिन स्टेज पर आपको उसे बोलकर और प्रदर्शित करके पूरी तरह से निभाना होता है।"

उन्होंने आगे कहा, "इसी कारण मैंने हमेशा थिएटर को अपने लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना है।"

अभिनेता ने यह भी कहा, "थिएटर केवल अभिनय का माध्यम नहीं है, बल्कि यह अपने आप को समझने और अपनी सीमाओं को पहचानने का एक तरीका भी है। भारत में थिएटर के कई अलग-अलग रूप हैं और हर कलाकार को इन सभी रूपों का अनुभव करना चाहिए। यह अनुभव ही कलाकारों को अधिक संवेदनशील और वास्तविक बनाता है, जो उनके अभिनय में स्पष्ट दिखाई देता है।"

इस अवसर पर नवाजुद्दीन ने अपनी पसंदीदा फिल्मों में से एक 'बैंडिट क्वीन' के बारे में भी चर्चा की। उन्होंने कहा, "यह फिल्म मेरे लिए बेहद खास है, क्योंकि इस फिल्म के अधिकांश कलाकार थिएटर से आए थे।"

फिल्म 'बैंडिट क्वीन' 1994 में रिलीज हुई थी। यह फूलन देवी के जीवन पर आधारित थी। इस फिल्म का निर्देशन शेखर कपूर ने किया था और इसमें सीमा बिस्वास ने मुख्य भूमिका निभाई थी। यह फिल्म माला सेन की किताब 'इंडियाज बैंडिट क्वीन: द ट्रू स्टोरी ऑफ फूलन देवी' पर आधारित थी।

Point of View

बल्कि थिएटर और फिल्म के बीच की गहरी समझ को भी उजागर करता है। यह दर्शाता है कि कैसे एक अभिनेता अपने अनुभवों से सीखता है और कैसे यह उनके अभिनय को प्रभावित करता है।
NationPress
13/12/2025

Frequently Asked Questions

नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने 'बैंडिट क्वीन' के बारे में क्या कहा?
उन्होंने बताया कि यह फिल्म उनके लिए खास है क्योंकि इसके अधिकांश कलाकार थिएटर से आए थे।
'आईएफपी' का महत्व क्या है?
'आईएफपी' कला, थिएटर, संगीत और साहित्य को बढ़ावा देने वाला एक प्रमुख आयोजन है।
फिल्म और थिएटर में क्या अंतर है?
फिल्म में कैमरा केवल क्रियाओं को कैद करता है, जबकि थिएटर में हर भावना और क्रिया को पूर्णता से व्यक्त करना पड़ता है।
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