क्या 'पंचम दा' सिर्फ संगीत के दिग्गज थे या एक मिलनसार इंसान भी?

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क्या 'पंचम दा' सिर्फ संगीत के दिग्गज थे या एक मिलनसार इंसान भी?

सारांश

राहुल देव बर्मन, जिन्हें प्यार से 'पंचम दा' कहा जाता है, एक अद्वितीय संगीतकार थे। उनके संगीत ने कई पीढ़ियों को प्रभावित किया। उनका मिलनसार स्वभाव और इंसानियत ने उन्हें सभी के दिलों में एक खास स्थान दिलाया। सचिन पिलगांवकर का अनुभव इस बात का प्रमाण है कि कैसे 'पंचम दा' ने लोगों को सहज महसूस कराया।

Key Takeaways

  • आर.डी. बर्मन का जन्म 27 जून 1939 को हुआ था।
  • उनका असली नाम राहुल देव बर्मन था।
  • उन्होंने 1961 में फिल्म 'सोलवा साल' से करियर की शुरुआत की।
  • सचिन पिलगांवकर ने पंचम दा की दयालुता का अनुभव किया।
  • उनका संगीत कई हिट फिल्मों में शामिल है।

मुंबई, 26 जून (राष्ट्र प्रेस)। संगीत की दुनिया में क्रांति लाने वाले राहुल देव बर्मन किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। उन्हें लोग प्यार से 'पंचम दा' कहकर बुलाते थे। उनकी तैयार की गई धुनों ने कई पीढ़ियों को झूमने पर मजबूर किया है। वह न केवल अपने संगीत से, बल्कि मधुर स्वभाव से भी लोगों को अपना बना लेते थे। अभिनेता सचिन पिलगांवकर ने एक किस्सा सुनाते हुए बताया कि कैसे 'पंचम दा' ने उन्हें सहज और खास महसूस कराया था, सिर्फ इसलिए कि सचिन उनके पिता का भी नाम था।

सचिन पिलगांवकर ने बताया कि 'बालिका-वधू' फिल्म को लेकर जब वह पहली बार 'पंचम दा' से मिले थे, तब वह उनके स्वभाव से अनजान थे। इस कारण, वह उस समय थोड़ा घबराए हुए थे। लेकिन जब 'पंचम दा' ने उनसे बात की, तो माहौल पूरी तरह बदल गया।

अभिनेता ने बताया, ''मेरी घबराहट को दूर करने के लिए उन्होंने मुझसे कहा कि वह कभी भी मुझसे नाराज नहीं हो सकते, क्योंकि मेरा और उनके पिताजी का नाम एक ही है। यह बात सुनकर मेरा डर कुछ कम हुआ और मैंने खुलकर बात करनी शुरू कर दी।''

बता दें कि आर.डी. बर्मन के पिता का नाम सचिन देव बर्मन है।

सचिन ने आगे बताया कि पंचम दा ने उन्हें अपने कंपाउंड में टहलने के लिए बुलाया और उनके बोलने-चलने के अंदाज पर ध्यान दिया। इसके बाद उन्होंने एक प्यारी सी धुन, 'बड़े अच्छे लगते हैं...' गुनगुनाई। यह पल उनके लिए बेहद खास था, क्योंकि इससे उन्हें महसूस हुआ कि 'पंचम दा' सिर्फ एक महान संगीतकार ही नहीं, बल्कि एक दयालु इंसान भी हैं।

आर.डी. बर्मन का जन्म 27 जून 1939 को कोलकाता में हुआ था। बचपन से ही उनका संगीत में गहरा लगाव था। उन्होंने अपने पिता एस.डी. बर्मन की तरह संगीत को ही अपनी जिंदगी बना ली। उस्ताद अली अकबर खान, पंडित समता प्रसाद और सलिल चौधरी ने उन्हें संगीत सिखाया।

आर.डी. बर्मन ने अपने करियर की शुरुआत 1961 में फिल्म 'सोलवा साल' से की, लेकिन उनकी पहली हिट फिल्म 1966 में आई 'तीसरी मंजिल' थी। इसके गाने लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हुए। इसके बाद उन्होंने 'पड़ोसन', 'प्रेम पुजारी', 'यादों की बारात', 'दीवार', 'खेल खेल में', 'वारंट', 'आंधी', 'खुशबू', 'धरम करम', और 'शोले' जैसी कई हिट फिल्मों में संगीत दिया।

आर.डी. बर्मन क्लासिकल संगीत के साथ-साथ नई और अलग तरह की धुनें भी बनाने में माहिर थे।

Point of View

मैं यह कह सकता हूं कि आर.डी. बर्मन का योगदान भारतीय संगीत में बेमिसाल है। उनका संगीत न केवल मनोरंजन का साधन था, बल्कि समाज को एकजुट करने का भी एक माध्यम था। उनकी दयालुता और सहानुभूति ने उन्हें एक आदर्श इंसान बनाया। ऐसे संगीतकारों का होना हमारे देश के लिए गर्व की बात है।
NationPress
20/07/2025

Frequently Asked Questions

आर.डी. बर्मन का असली नाम क्या था?
आर.डी. बर्मन का असली नाम राहुल देव बर्मन था।
पंचम दा का जन्म कब हुआ था?
पंचम दा का जन्म 27 जून 1939 को हुआ था।
सचिन पिलगांवकर ने पंचम दा के बारे में क्या कहा?
सचिन पिलगांवकर ने बताया कि पंचम दा ने उन्हें सहज और खास महसूस कराया।
आर.डी. बर्मन ने किस फिल्म से अपने करियर की शुरुआत की थी?
आर.डी. बर्मन ने अपने करियर की शुरुआत 1961 में फिल्म 'सोलवा साल' से की थी।
पंचम दा को किस नाम से जाना जाता था?
पंचम दा को प्यार से 'पंचम दा' कहा जाता था।