क्या परिणीति चोपड़ा सिर्फ एक बैंकर बनना चाहती थीं?

सारांश
Key Takeaways
- परिणीति चोपड़ा का सफर एक साधारण लड़की से एक प्रसिद्ध अभिनेत्री बनने तक का है।
- किस्मत ने उन्हें इन्वेस्टमेंट बैंकर से अभिनेत्री बना दिया।
- उनकी सादगी और मेहनत ने उन्हें बॉलीवुड में पहचान दिलाई।
- परिणीति का मानना है कि सपने देखना और उन्हें पूरा करने के लिए मेहनत करना आवश्यक है।
- वह समाज के महत्वपूर्ण मुद्दों पर सक्रियता से बात करती हैं।
मुंबई, 21 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। पंजाबी परिवार से ताल्लुक रखने वाली वो लड़की जो अंबाला की सड़कों पर अपने सपनों को साकार करने का प्रयास कर रही थी, आज बॉलीवुड की सबसे प्रिय हीरोइन बन चुकी है, जिसका नाम है परिणीति चोपड़ा।
22 अक्टूबर 1988 को अंबाला के एक मध्यमवर्गीय पंजाबी परिवार में जन्मी परिणीति चोपड़ा ने कभी नहीं सोचा था कि वह सिल्वर स्क्रीन की रानी बनेंगी। अंबाला से स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद, उन्होंने लंदन के मैनचेस्टर बिजनेस स्कूल से मार्केटिंग में डिग्री हासिल की। उनका सपना एक इन्वेस्टमेंट बैंकर बनने का था, लेकिन किस्मत ने उन्हें फिल्म उद्योग में ले आई।
यश राज फिल्म्स में पब्लिसिटी असिस्टेंट के रूप में नौकरी मिली, और यहीं से उनकी फिल्मी यात्रा की शुरुआत हुई। 2011 में फिल्म 'लेडीज़ वर्सेज रिकी बहल' ने उन्हें रातोंरात स्टार बना दिया। इसके बाद 'इश्कजादे', 'शुद्ध देसी रोमांस', 'हंसी तो फंसी' और 'नमस्ते इंग्लैंड' जैसी फिल्मों ने साबित किया कि परिणीति हर किरदार में अद्वितीय हैं। रोमांटिक, कॉमेडी, एक्शन - वे सभी में पारंगत हैं! परिणीति की असली पहचान उनकी सादगी है। वह एक फिटनेस फ्रीक हैं, जो योग और नृत्य से अपने दिन की शुरुआत करती हैं। सोशल मीडिया पर वह पर्यावरण, महिला सशक्तिकरण, और मेंटल हेल्थ के मुद्दों पर चर्चा करती हैं।
परिणीति चोपड़ा का बॉलीवुड में कदम रखना महज एक करियर की कहानी नहीं है; यह किस्मत का एक अद्भुत मोड़ है जिसने एक सुव्यवस्थित जीवन योजना को बदल दिया। जहां हजारों युवा अभिनेता बनने का सपना देखते हैं, वहीं परिणीति की नजरें लंदन के वित्तीय बाजार पर थीं।
एक इन्वेस्टमेंट बैंकर बनने के सपने से लेकर राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता अभिनेत्री बनने तक का यह सफर भारतीय फिल्म जगत की सबसे प्रेरणादायक कहानियों में से एक है।
परिणीति का प्रारंभिक जीवन मुंबई के फिल्मी सेटों से बहुत दूर था। उन्होंने फाइनेंस और इकोनॉमिक्स में त्रैतीय ऑनर्स की डिग्री प्राप्त की। उनका उद्देश्य एक बड़ी इन्वेस्टमेंट बैंकर बनना था। कहानी में बड़ा मोड़ 2009 में आया, जब वैश्विक आर्थिक मंदी ने बैंकिंग क्षेत्र में रोजगार के दरवाजे बंद कर दिए।
अपने सपनों को टूटते देख, परिणीति भारत लौटीं और अपनी कजिन, प्रियंका चोपड़ा की मदद से यश राज फिल्म्स (वाईआरएफ) के मार्केटिंग और जनसंपर्क (पीआर) विभाग में इंटर्नशिप शुरू की। यहां से उनके करियर की एक नई कहानी शुरू होती है।
परिणीति ने एक बार एक इंटरव्यू में स्वीकार किया था कि उन्हें अभिनय से खास लगाव नहीं था; वह इसे मेकअप और दिखावे का काम मानती थीं। उनकी पहली फिल्म की सह-कलाकार अनुष्का शर्मा भी यहीं थीं।
वाईआरएफ में काम करते हुए, स्टूडियो के कास्टिंग डायरेक्टर ने मजाक में उन्हें एक डमी ऑडिशन देने को कहा। परिणीति ने इसे खेल समझा और फिल्म 'जब वी मेट' में करीना कपूर के किरदार 'गीत' के कुछ संवाद रिकॉर्ड करवा दिए।
यह अनौपचारिक ऑडिशन टेप वाईआरएफ प्रमुख आदित्य चोपड़ा तक पहुंचा। उन्होंने परिणीति की स्वाभाविक ऊर्जा और अभिनय प्रतिभा से प्रभावित होकर उन्हें तुरंत मार्केटिंग विभाग से हटाकर अभिनय के लिए तीन-फिल्म का करार देने का प्रस्ताव दिया। उन्होंने कहा कि वह पीआर में समय बर्बाद कर रही हैं और उनका स्थान कैमरे के सामने है। इसके बाद, 2011 में फिल्म ‘लेडीज़ वर्सेज रिकी बहल’ में सहायक भूमिका के साथ धमाकेदार शुरुआत की और सर्वश्रेष्ठ नवोदित अभिनेत्री का फिल्मफेयर पुरस्कार जीता। अगले ही वर्ष 2012 में, उन्हें उनकी मुख्य भूमिका वाली फिल्म 'इश्कजादे' के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार- स्पेशल मेंशन मिला। बाकी तो इतिहास है।