क्या राधिका आप्टे और ममता शर्मा का सफर है बेबाक बोल और बिंदास हुनर?

सारांश
Key Takeaways
- खुद पर विश्वास करना आवश्यक है।
- संघर्ष हमेशा सफलता की ओर ले जाता है।
- अपनी आवाज को पहचानें और उसे साझा करें।
- रूढ़िवादी सोच को चुनौती देना महत्वपूर्ण है।
- सफलता के लिए साहस की आवश्यकता होती है।
मुंबई, 6 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। फिल्म और संगीत की दुनिया में हर कलाकार का सफर अलग होता है। कुछ को जल्द ही सफलता मिलती है, जबकि अन्य को कड़े संघर्षों से गुजरना पड़ता है। ऐसे में कुछ कलाकार अपनी कला और व्यक्तित्व से लोगों का दिल जीतते हैं। राधिका आप्टे और ममता शर्मा ऐसे ही दो नाम हैं। इन्होंने अपने-अपने क्षेत्रों में पहचान बनाई है, लेकिन उनके bindaas अंदाज और आजाद ख्याल ने उन्हें और भी विशिष्ट बना दिया।
राधिका को उनके बोल्ड और निडर अंदाज के लिए जाना जाता है, जबकि ममता ने अपनी अनोखी आवाज से म्यूजिक इंडस्ट्री में खास जगह बनाई है। दोनों ने रूढ़िवादी सोच को तोड़कर अपना मुकाम हासिल किया।
राधिका आप्टे का जन्म 7 सितंबर 1985 को तमिलनाडु के वेल्लोर में एक मराठी परिवार में हुआ। उनके पिता डॉ. चारुदत्त आप्टे एक न्यूरोसर्जन हैं। राधिका ने पुणे के फर्ग्युसन कॉलेज से गणित और अर्थशास्त्र में पढ़ाई की। बचपन से उनका रुझान अभिनय की ओर था। उन्होंने थिएटर से अपने करियर की शुरुआत की और बाद में फिल्मों में कदम रखा। उनकी पहली फिल्म 2005 की 'वाह! लाइफ हो तो ऐसी!' थी। इसके बाद उन्होंने बंगाली फिल्म 'अंतहीन' में मुख्य भूमिका निभाई। लेकिन उन्हें असली पहचान 2015 के बाद मिली जब उन्होंने 'बदलापुर', 'हंटर' और 'मांझी- द माउंटेन मैन' जैसी फिल्मों में अहम किरदार निभाए।
उन्होंने खुद को कभी बॉलीवुड में सीमित नहीं रखा। राधिका ने दक्षिण भारतीय, बंगाली और मराठी फिल्मों के साथ-साथ इंटरनेशनल प्रोजेक्ट्स में भी काम किया। नेटफ्लिक्स की 'लस्ट स्टोरीज', 'सेक्रेड गेम्स' और 'घोल' में उनके अभिनय ने उन्हें इंटरनेशनल एमी अवॉर्ड्स के लिए नामांकित किया, जिससे वह ऐसा करने वाली पहली भारतीय अभिनेत्री बनीं।
राधिका की खासियत यह है कि वह महिला अधिकारों और समाज की खोखली मान्यताओं पर खुलकर बात करती हैं। इसी कारण उन्हें 'ओटीटी की पोस्टर चाइल्ड' कहा जाता है। उन्होंने 'फोबिया', 'अंधाधुन', 'पैडमैन', 'रात अकेली है', और 'सिस्टर मिडनाइट' जैसी फिल्मों में दमदार भूमिकाएं निभाईं और कई पुरस्कार जीते। 2016 में 'सूखा' के लिए उन्हें लॉस एंजेल्स फिल्म फेस्टिवल में बेस्ट एक्ट्रेस का अवॉर्ड मिला।
अब बात करें ममता शर्मा की, तो उनका जन्म मध्य प्रदेश के ग्वालियर में हुआ। बचपन से ही उन्हें गाने का शौक था। उन्होंने संगीत की शिक्षा ली और शादी-ब्याह जैसे आयोजनों में गाना शुरू किया। ममता का जीवन बदल गया जब उन्हें 2010 में सलमान खान की फिल्म 'दबंग' में 'मुन्नी बदनाम हुई' गाने का मौका मिला। इस गाने ने उन्हें रातों-रात स्टार बना दिया। उनकी आवाज में जो दम और मस्ती थी, वह लोगों को भा गई। इसके बाद 'फेविकोल से', 'आ रे प्रीतम प्यारे', और 'टिंकू जिया' जैसे कई हिट गानों ने उनकी पहचान को और मजबूत किया।
ममता की खास बात यह है कि उन्होंने हमेशा जोश और नटखटपन से भरे अंदाज में गाना गाया। कई बार लोगों ने उनके गायन को 'आइटम नंबर सिंगिंग' कहकर कमतर आंकने की कोशिश की, लेकिन ममता ने इसे अपनी ताकत बना लिया। एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि उन्हें गर्व है कि उनकी आवाज से लोग थिरकते हैं। ममता का आत्मविश्वास और मंच पर उनका खुला अंदाज उन्हें दूसरों से अलग बनाता है। 'मुन्नी बदनाम' के लिए उन्हें फिल्मफेयर बेस्ट प्लेबैक सिंगर का अवॉर्ड मिला और इसके बाद भी कई बार उन्हें नॉमिनेशन मिले।
इन दोनों कलाकारों का सफर भले ही अलग हो, लेकिन खुद पर भरोसा और अपने मन की बात कहने का साहस इन्हें जोड़ता है।