क्या जैकी श्रॉफ ने साहिर लुधियानवी की पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि दी?
सारांश
Key Takeaways
- साहिर लुधियानवी का असली नाम अब्दुल हई था।
- उन्होंने अपने गीत सबसे पहले लिखे और फिर संगीतकारों से धुन बनाने को कहा।
- उन्हें कई सरकारी पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।
- जैकी श्रॉफ ने उन्हें श्रद्धांजलि देकर उनके योगदान को याद किया।
- साहिर की रचनाएं आज भी लोगों के दिलों में जीवित हैं।
मुंबई, 25 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। साहिर लुधियानवी, जिनके गीतों ने 'हमराज', 'वक्त', 'धूल का फूल', 'दाग', 'बहू बेगम', और 'आदमी' जैसी फिल्मों में लाखों दिलों को छू लिया, की पुण्यतिथि शनिवार को है। इस अवसर पर अभिनेता जैकी श्रॉफ ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।
अभिनेता ने अपने इंस्टाग्राम स्टोरीज पर साहिर की एक तस्वीर साझा की, जिसमें उन्होंने लिखा, "साहिर लुधियानवी जी की पुण्यतिथि पर हम उन्हें याद कर रहे हैं।"
साहिर लुधियानवी का जन्म अब्दुल हई के नाम से हुआ था। उन्होंने अपना नाम साहिर रखा, जिसका अर्थ है 'जादूगर', क्योंकि वे लुधियाना के निवासी थे। इसी कारण उन्होंने अपने नाम के साथ 'लुधियानवी' जोड़ा। साहिर का प्रारंभिक जीवन कई कठिनाइयों से भरा रहा, जो उनकी शायरी में स्पष्ट रूप से झलकता है।
उन्होंने हिंदी सिनेमा में एक प्रसिद्ध गीतकार के रूप में अपनी पहचान बनाई। उनके गीतों की विशेषता यह थी कि वे पहले गाने लिखते थे और फिर संगीतकारों से अनुरोध करते थे कि उनके गानों पर धुन बनाई जाए। यह तरीका उस समय के सामान्य प्रचलन के विपरीत था, लेकिन साहिर ने अपनी रचनाओं को प्राथमिकता दी। उनके इस दृष्टिकोण ने कई विवादों को जन्म दिया। उन्होंने प्रसिद्ध संगीतकार एस.डी. बर्मन के साथ 'प्यासा' और 'देवदास' जैसी फिल्मों में अद्भुत गीत दिए, लेकिन उनकी शर्त थी कि बर्मन उनके घर आकर हारमोनियम पर धुन बनाएं। साहिर ने एक अनोखी मांग भी रखी थी कि उन्हें गायिका लता मंगेशकर से एक रुपये अधिक मेहनताना दिया जाए।
साहिर लुधियानवी ने अपनी साहित्यिक और सांस्कृतिक उपलब्धियों के लिए कई पुरस्कार प्राप्त किए। उन्हें 1971 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया था, और 1972 में महाराष्ट्र सरकार ने उन्हें 'जस्टिस ऑफ पीस' पुरस्कार प्रदान किया। 1973 में उनकी नज्म 'आओ कि कोई ख्वाब बुनें' की सफलता के लिए उन्हें 'सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार' और महाराष्ट्र राज्य साहित्यिक पुरस्कार मिला। 8 मार्च 2013 को उनके जन्मदिन पर, भारतीय डाक विभाग ने उनकी याद में एक स्मारक डाक टिकट जारी किया।