क्या शैलेंद्र ने 'जीना यहां, मरना यहां' गाने में एक फिल्म की नाकामी का दर्द उजागर किया?

Click to start listening
क्या शैलेंद्र ने 'जीना यहां, मरना यहां' गाने में एक फिल्म की नाकामी का दर्द उजागर किया?

सारांश

शैलेंद्र, हिंदी सिनेमा के महान गीतकार, ने 'जीना यहां, मरना यहां' गाने में अपने जीवन के दर्द को बयां किया। इस गाने की कहानी और शैलेंद्र के संघर्षों के बारे में जानें।

Key Takeaways

  • शैलेंद्र का जीवन संघर्ष उनके गीतों में झलकता है।
  • जीना यहां, मरना यहां गाना एक गहरी भावनात्मक अभिव्यक्ति है।
  • शैलेंद्र ने राज कपूर के साथ मिलकर कई यादगार गाने लिखे।
  • फिल्म तीसरी कसम की असफलता ने शैलेंद्र को गहरे सदमे में डाल दिया।
  • उनके गीत समाज की सच्चाइयों को उजागर करते हैं।

मुंबई, 29 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। शैलेंद्र हिंदी सिनेमा के स्वर्ण युग के सबसे सम्मानित गीतकारों में से एक माने जाते हैं। उनका जन्म 30 अगस्त 1923 को रावलपिंडी (जो अब पाकिस्तान में है) में हुआ था। साधारण पारिवारिक पृष्ठभूमि से आने वाले शैलेंद्र ने अपनी गहरी सोच, सरल लेकिन प्रभावी शब्दों और भावनाओं से भरे गीतों के जरिए फिल्मी दुनिया पर एक अमिट छाप छोड़ी।

उन्होंने राज कपूर के साथ मिलकर कई यादगार गीतों की रचना की, जिनमें "आवारा हूं," "मेरा जूता है जापानी," और "दिल का हाल सुने दिलवाला" जैसे सदाबहार गाने शामिल हैं। शैलेंद्र के गीत आम आदमी की संवेदनाओं से गहराई से जुड़े होते थे, यही कारण है कि उनके लिखे शब्द हर तबके के लोगों के दिलों को छू जाते थे।

फिल्म उद्योग में शैलेंद्र को उन गीतकारों में गिना जाता है जिन्होंने कविता को गानों में ढाला और जिंदगी की सच्चाइयों को बेहद सहजता से शब्दों में उतारा। उनका पूरा नाम शंकरदास केसरीलाल शैलेंद्र था।

आज हम उनके एक सदाबहार गाने "जीना यहां, मरना यहां" की चर्चा करेंगे। इसे उन्होंने राज कपूर के लिए लिखा था। इस गाने की एक दिलचस्प कहानी है। इसमें जो दर्द है, वह असल में शैलेंद्र ने अपने जीवन में अनुभव किया था।

भारतीय सिनेमा के इतिहास में सबसे प्रतिष्ठित गीतों में से एक, "जीना यहां मरना यहां," 1970 की फिल्म "मेरा नाम जोकर" से है। इसे शैलेंद्र ने एक फिल्म की असफलता के बाद लिखा था। इसका उल्लेख किताब "गीतों का जादूगर: शैलेंद्र" में किया गया है, जिसे ब्रज भूषण तिवारी ने लिखा है।

असल में, 1966 में शैलेंद्र ने अपनी पहली और आखिरी फिल्म "तीसरी कसम" का निर्माण किया था। उन्हें इस फिल्म से बड़ी उम्मीदें थीं, लेकिन यह बॉक्स-ऑफिस पर बुरी तरह फ्लॉप हो गई। फिल्म ने भले ही राष्ट्रीय पुरस्कार जीता हो, पर इसकी व्यावसायिक विफलता ने शैलेंद्र को आर्थिक और भावनात्मक रूप से तोड़ दिया। वे भारी कर्ज में डूब गए और गहरे सदमे में थे।

इसी मुश्किल समय में उनके करीबी दोस्त राज कपूर ने उनसे अपनी महत्वाकांक्षी फिल्म "मेरा नाम जोकर" के लिए एक गीत लिखने का अनुरोध किया। राज कपूर, जो शैलेंद्र के काव्यात्मक मन को अच्छी तरह समझते थे, एक ऐसा गीत चाहते थे जो फिल्म की आत्मा बने।

जब शैलेंद्र राज कपूर से मिलने आए, तो वे थके हुए और परेशान दिख रहे थे। राज कपूर ने उन्हें बिठाया और गाने की थीम समझाई। गाने को एक जोकर के जीवन के बारे में होना था, जिसे अपने अंदर के दर्द और दुख के बावजूद दर्शकों के लिए हमेशा मुस्कुराते रहना पड़ता है। यह गीत जीवन, मृत्यु और एक कलाकार के अस्तित्व के सच्चे अर्थ का सार होने वाला था।

शैलेंद्र ने चुपचाप सब कुछ सुना। राज कपूर ने देखा कि वे आज कुछ अधिक शांत थे। राज कपूर ने उन्हें गाने की शुरुआती लाइन दी: "जीना यहां मरना यहां।" शैलेंद्र, जो अब भी गहरी सोच में डूबे थे, इस लाइन को लेते हैं और एक ही प्रवाह में पूरा गाना लिख डालते हैं।

जब उन्होंने कागज राज कपूर को थमाया, तो राज कपूर चकित रह गए। ये सिर्फ शब्द नहीं थे, बल्कि एक टूटे हुए इंसान की आत्मा की गहरी अभिव्यक्ति थी। "कल खेल में हम हों न हों, गर्दिश में तारे रहेंगे सदा। भूलोगे तुम, भूलेंगे वो, पर हम तुम्हारे रहेंगे सदा। होंगे यहीं अपने निशां।"

‘जोकर’ के लिए लिखी गई इन पंक्तियों में शैलेंद्र ने अपने वास्तविक संघर्षों को भी बयां किया था। उन्होंने इसे अपने ही दर्द और निराशा की भावनात्मक अभिव्यक्ति के रूप में लिखा था। उन्होंने "तीसरी कसम" की असफलता और अपनी वित्तीय परेशानियों से मिली पीड़ा को इस सुंदर कविता में उड़ेल दिया था।

Point of View

यह कहना उचित होगा कि शैलेंद्र का काम भारतीय सिनेमा की धरोहर का अभिन्न हिस्सा है। उनके गीत न केवल मनोरंजन करते हैं, बल्कि समाज की गहरी सच्चाइयों को भी उजागर करते हैं।
NationPress
21/12/2025

Frequently Asked Questions

शैलेंद्र का जन्म कब हुआ था?
शैलेंद्र का जन्म 30 अगस्त 1923 को रावलपिंडी, पाकिस्तान में हुआ था।
'जीना यहां, मरना यहां' गाने की फिल्म कौन सी है?
'जीना यहां, मरना यहां' 1970 की फिल्म 'मेरा नाम जोकर' से है।
शैलेंद्र ने किस फिल्म का निर्माण किया था?
शैलेंद्र ने अपनी पहली और आखिरी फिल्म 'तीसरी कसम' का निर्माण किया था।
राज कपूर ने शैलेंद्र से क्या अनुरोध किया था?
राज कपूर ने शैलेंद्र से अपनी फिल्म 'मेरा नाम जोकर' के लिए एक गीत लिखने का अनुरोध किया था।
शैलेंद्र के प्रसिद्ध गीतों में कौन-कौन से शामिल हैं?
शैलेंद्र के प्रसिद्ध गीतों में 'आवारा हूं', 'मेरा जूता है जापानी' और 'दिल का हाल सुने दिलवाला' शामिल हैं।
Nation Press