क्या शेखर कपूर ने नुसरत अली से जुड़ा 'बैंडिट क्वीन' का किस्सा सुनाया?

सारांश
Key Takeaways
- नुसरत फतेह अली खान की संवेदनशीलता का अद्भुत उदाहरण।
- शेखर कपूर की फिल्म निर्माण में रचनात्मकता का महत्व।
- बेहमई नरसंहार के दृश्य का गहरा प्रभाव।
- आधुनिक कला में भावनाओं का स्थान।
- संगीत और फिल्म के बीच का गहरा रिश्ता।
मुंबई, 27 जून (राष्ट्र प्रेस)। फिल्म निर्माता शेखर कपूर ने अपनी फिल्म 'बैंडिट क्वीन' की शूटिंग के दौरान एक दिलचस्प किस्सा साझा किया। उन्होंने अपने सोशल मीडिया पर बताया कि दिवंगत गायक नुसरत फतेह अली खान की एक अनोखी मांग थी। यह घटना उस समय की है जब संगीत के दिग्गज आर.डी. बर्मन का निधन हो चुका था।
शेखर कपूर ने इस खास पल को इंस्टाग्राम पर साझा करते हुए कहा कि उस समय नुसरत की आवाज में गहरा दर्द था।
शेखर ने कहा, "'बैंडिट क्वीन' के लिए बैकग्राउंड स्कोर किया जा रहा था। यह दृश्य बेहमई नरसंहार और उसके बाद के दृश्यों का था, जहाँ कई चिताएं जल रही थीं और महिलाओं की करुण आवाजें गूंज रही थीं। इस दौरान, नुसरत ने मुझसे एक अजीब सी मांग की। उन्होंने कहा कि शेखर जी, आप अपनी फिल्म देखिए और मैं आपकी आंखों में देखकर गाऊंगा।"
शेखर ने लिखा, "जब माइक चालू हुआ, तो नुसरत मेरी आंखों में उतर गए थे, जैसे कि वे मेरी आत्मा को पढ़ रहे हों। उन्हें पता था कि मेरा आर.डी. बर्मन के साथ गहरा रिश्ता था। मेरी पहली फिल्म 'मासूम' का संगीत उन्होंने ही तैयार किया था। नुसरत की आवाज और उनकी नजरों ने मुझे बांध लिया। उनकी आवाज मुझे ईश्वर के करीब ले गई, जो मेरे लिए बेहद खास था।"
उन्होंने सुझाव दिया कि अगर कोई 'बैंडिट क्वीन' दोबारा देखे, तो बेहमई नरसंहार के बाद के दृश्यों में नुसरत का संगीत सुनना न भूले, जो दर्शकों को एक गहरे अनुभव में ले जाएगा।
शेखर ने कहा, "नुसरत के साथ काम करना ऐसा था। मैं फिल्में इसलिए बनाता हूँ ताकि जन्म और मृत्यु के बीच की उस जगह को तलाश सकूँ, जहाँ रचनात्मकता बसती है।"
नुसरत फतेह अली खान का 16 अगस्त 1997 को दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था।