क्या स्टीव मैक्वीन एक 'कूल' बादशाह थे, जो अपनी ही रफ्तार में खो गए?
सारांश
Key Takeaways
- स्टीव मैक्वीन का जीवन संघर्ष और शोहरत का अनूठा मिश्रण था।
- बचपन के कठिनाईयों ने उनके अभिनय को गहराई दी।
- उनकी तेज़ रफ्तार में जीने की चाह ने उन्हें एक विशेष पहचान दी।
- सुख-दुख के बावजूद, उन्होंने कभी हार नहीं मानी।
- उनका जीवन हमें प्रेरणा देता है कि हम अपने जुनून का पीछा करें।
नई दिल्ली, 6 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। हॉलीवुड में ‘द किंग ऑफ कूल’ के नाम से मशहूर स्टीव मैक्वीन का जीवन एक अनूठी कहानी है। 1960 और 70 के दशक में जब भी किसी बागी नायक की छवि बनी, दर्शक समझ जाते थे कि वह स्टीव मैक्वीन ही हैं। उनकी आंखों में एक अद्वितीय आकर्षण और चाल में एक आत्मविश्वास था। लेकिन यह चमक उनके भीतर के अंधकार को छिपा नहीं सकी। 7 नवंबर 1980 को, मात्र पचास वर्ष की आयु में, यह सुपरस्टार अपने द्वारा बनाए गए मार्ग पर, बिना किसी समझौते के, दुनिया से विदा हो गया।
स्टीव का बचपन किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं था। उनके पिता ने जन्म के कुछ ही महीनों बाद छोड़ दिया और मां ने शराब की लत में डूबकर उन्हें अकेला छोड़ दिया। छोटी उम्र में स्टीव को अनाथालय और सुधार गृह में रहना पड़ा, जहां हिंसा और अकेलापन उनके साथी बन गए। यही दर्द उनके अभिनय की गहराई का कारण बना। 2011 में मार्क इलियट द्वारा लिखी गई ‘स्टीव मैक्वीन: अ बायोग्राफी’ में उनकी ज़िंदगी के संघर्ष को बखूबी दर्शाया गया है।
किशोरावस्था में उन्होंने अमेरिकी मरीन कोर्प्स में भर्ती होकर अनुशासन सीखा, परंतु उनके अंदर का विद्रोही कभी नहीं गया। हॉलीवुड में कदम रखने के बाद उन्होंने ‘द ग्रेट एस्केप’, ‘बुलिट’, ‘द मैग्नीफिसेंट सेवन’, और ‘पैपिलॉन’ जैसी फिल्मों के जरिए साबित कर दिया कि एक सितारा भी व्यवस्था से अलग रहकर अपनी पहचान बना सकता है।
परंतु शोहरत के साथ-साथ स्टीव के भीतर का खालीपन बढ़ता गया। उन्हें तेज़ कारों, मोटरसाइकिलों और रेसिंग का बेहद शौक था। वे अक्सर कहा करते थे, “अगर मैं किसी चीज़ को पूरी रफ्तार में नहीं जी रहा, तो मैं जी नहीं रहा।” यह जुनून धीरे-धीरे उनकी जीवनशैली बन गया। शराब, सिगरेट और नशे ने उनके शरीर को कमजोर करना शुरू कर दिया। 1979 में उन्हें फेफड़ों का कैंसर हुआ — मेसोथेलियोमा, जो आमतौर पर एस्बेस्टस के संपर्क में आने से होता है। डॉक्टरों ने उन्हें आराम करने की सलाह दी, लेकिन उन्होंने हार मानने से इनकार किया।
आखिरी दिनों में स्टीव ने पारंपरिक इलाज को छोड़कर मेक्सिको का रुख किया, जहां उन्होंने वैकल्पिक उपचार अपनाया। वहां उन्होंने सर्जरी भी करवाई, लेकिन उनका शरीर अब साथ नहीं दे रहा था। 7 नवंबर 1980 की सुबह, ऑपरेशन के कुछ घंटों बाद उनका दिल थम गया। उनके चाहने वालों के लिए यह एक बड़ा झटका था। एक ऐसा व्यक्ति जो हमेशा सीमाओं को तोड़ता रहा, मृत्यु से भी समझौता नहीं कर सका।