क्या माइग्रेन से तनाव तक, सिर के रोगों का सर्वोत्तम उपचार नस्य कर्म है? जानें सही विधि और समय
सारांश
Key Takeaways
- नस्य कर्म माइग्रेन और तनाव के लिए एक प्रभावी उपचार है।
- यह मानसिक शांति और एकाग्रता को बढ़ाने में सहायक है।
- सही समय और विधि का पालन करना आवश्यक है।
- यह आयुर्वेदिक उपचार सुरक्षित और प्रभावी है।
- बिना विशेषज्ञ सलाह के इसे कुछ स्थितियों में नहीं करना चाहिए।
नई दिल्ली, 13 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। कार्य का बोझ या अनियमित दिनचर्या शारीरिक और मानसिक समस्याओं का कारण बनती जा रही हैं। इस समय में, अधिकांश लोग तनाव, माइग्रेन और अन्य सिर के रोगों का शिकार हो जाते हैं। आयुर्वेद इन सिर के रोगों का सबसे अच्छा उपचार नस्य कर्म को मानता है।
आयुर्वेद के पंचकर्म में शामिल नस्य कर्म का उल्लेख चरक संहिता, सुश्रुत संहिता और अष्टांग हृदयम जैसे प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। ये ग्रंथ इसे दैनिक दिनचर्या में शामिल करने की सलाह देते हैं।
नस्य में नाक के माध्यम से विशेष औषधीय तेल, घी या काढ़े की बूंदें डाली जाती हैं, जो सीधे मस्तिष्क, सिर, गला, आंख, कान और स्नायु तंत्र पर प्रभाव डालती हैं। आयुर्वेद कहता है, "नासा हि शिरसो द्वारम्या" यानी नाक सिर का मुख्य द्वार है। नस्य इतना प्रभावी इसलिए है क्योंकि नाक की नसें सीधे ब्रेन से जुड़ी होती हैं।
नस्य कर्म कुछ ही मिनटों में असर दिखाना शुरू कर देता है। यह कफ को पिघलाकर बाहर निकालता है, जिससे सिर का भारीपन, नाक बंद होना और माथे की जकड़न कम होती है। नस्य प्राण वायु को संतुलित करता है, जिससे मानसिक शांति, एकाग्रता और स्मरण शक्ति में वृद्धि होती है। इसे यूथ थेरेपी भी कहा जाता है क्योंकि इससे चेहरे पर प्राकृतिक निखार आता है।
नस्य कर्म से एक-दो नहीं, बल्कि कई लाभ होते हैं। यह माइग्रेन और सिरदर्द में राहत प्रदान करता है। औषधीय तेल नसों को शांत कर तनाव हार्मोन को कम करता है। कफ पिघलकर नाक का मार्ग साफ करता है, जिससे साइनस और एलर्जी में आराम मिलता है। मस्तिष्क की नसें रिलैक्स होती हैं, मन शांत रहता है। तनाव, चिंता और अनिद्रा की समस्या दूर होती है। शिरो-धातु मजबूत होती है, जड़ें पोषण पाती हैं, जिससे बाल मजबूत होते हैं। सिर-चेहरे के अंगों की कार्यक्षमता में वृद्धि होती है। आंखों की रोशनी और आवाज में सुधार होता है। ब्रेन में ऑक्सीजन सप्लाई बेहतर होती है, जिससे याददाश्त तेज और फोकस बढ़ता है।
आयुर्वेदाचार्य बताते हैं कि नस्य कर्म में कौन-कौन से तेल उपयोगी होते हैं। अणु तेल माइग्रेन-तनाव, षडबिंदु तेल नाक बंद-बाल, ब्राह्मी घृत याददाश्त के लिए, तिल तेल दैनिक उपयोग, और लहसुन सिद्ध तेल भारी कफ के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं।
एक्सपर्ट नस्य कर्म की सही विधि और समय भी बताते हैं। नस्य का सही समय सुबह 6 से 9 बजे या शाम 4 से 6 बजे के बीच होता है। इसके लिए सबसे पहले नाक-चेहरे पर गुनगुना तिल तेल से मालिश करें। 1-2 मिनट गर्म भाप लें। पीठ के बल लेटकर सिर ऊपर की ओर करें। इसके बाद हर नथुने में 2-2 बूंदें तेल डालें। इस दौरान मुंह से सांस लें, अतिरिक्त कफ बाहर निकालें और लगभग 15 मिनट आराम करें।
नस्य न केवल नाक बल्कि पूरे मस्तिष्क, भावनाओं और चेहरे का संतुलन बनाए रखता है। योग, आयुर्वेद और आधुनिक न्यूरो रिसर्च में इसे सुरक्षित और प्रभावी माना गया है। हालांकि, आयुर्वेदाचार्य भोजन के तुरंत बाद, स्नान से पहले, तेज सर्दी-जुकाम, बुखार या गर्भावस्था में बिना विशेषज्ञ सलाह के न करने की सलाह देते हैं।