क्या सिटिंग इज द न्यू स्मोकिंग है: लंबे समय तक बैठे रहने के खतरों पर नए शोध
सारांश
Key Takeaways
- लंबे समय तक बैठना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
- शारीरिक निष्क्रियता से गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ता है।
- हर 30-40 मिनट में हलचल आवश्यक है।
- 'स्टैंडिंग डेस्क' और 'एक्टिव चेयर' जैसे विकल्प मददगार हो सकते हैं।
- आधुनिक जीवनशैली में सक्रियता को बढ़ावा देना जरूरी है।
नई दिल्ली, 5 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। आधुनिक जीवन की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि हम जितना विकास कर रहे हैं, उतना ही अधिक आरामतलब होते जा रहे हैं। चलकर काम करने के बजाय, अधिकांश कार्य स्क्रीन के सामने किए जा रहे हैं, यात्रा गाड़ियों में की जा रही है, और आरामदायक कुर्सियों पर बिताई जा रही है। इसका नतीजा यह है कि 'लंबे समय तक बैठे रहना' आज एक नई स्वास्थ्य समस्या बन चुकी है। पिछले कुछ वर्षों में कई अध्ययन हुए हैं, जिन्होंने यह साबित किया है कि लंबे समय तक बैठना केवल एक आदत नहीं है, बल्कि यह धीरे-धीरे शरीर के लिए उतना ही हानिकारक होता जा रहा है जितना धूम्रपान। इसी कारण वैज्ञानिकों ने इसे नाम दिया है 'सिटिंग इज द न्यू स्मोकिंग।
अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन और हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के अनुसंधान बताते हैं कि जो लोग दिन में 8 घंटे से अधिक समय बैठकर बिताते हैं, उनमें हृदय रोग, मोटापा, डायबिटीज और यहां तक कि कैंसर जैसी बीमारियों का जोखिम 20 से 40 फीसदी तक बढ़ जाता है। बैठने से मेटाबॉलिज्म धीमा होता है, रक्त संचार प्रभावित होता है और मांसपेशियां निष्क्रिय हो जाती हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, लगातार बैठने से शरीर का इन्सुलिन स्तर भी असंतुलित होता है, जिससे शुगर स्तर और वजन दोनों पर असर पड़ता है।
2023 में प्रकाशित एक ब्रिटिश मेडिकल जर्नल की रिपोर्ट में पाया गया कि लंबे समय तक बैठने वाले व्यक्तियों में समय से पहले मृत्यु का खतरा उन लोगों की तुलना में 50 फीसदी अधिक होता है जो दिन में नियमित रूप से चलते या खड़े रहते हैं। विशेष बात यह है कि एक घंटे जिम जाने से यह नुकसान पूरी तरह समाप्त नहीं होता। इसका कारण यह है कि शरीर को हर कुछ घंटों में हलचल की आवश्यकता होती है, न कि दिन के किसी एक हिस्से में व्यायाम की।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) भी चेतावनी दे चुका है कि दुनिया भर में हर साल लगभग 50 लाख मौतें 'शारीरिक निष्क्रियता' से जुड़ी होती हैं, जिनमें सबसे बड़ा योगदान लंबे समय तक बैठने की आदत का है। यह निष्क्रियता अब केवल बुजुर्गों या ऑफिस कर्मचारियों तक सीमित नहीं रही बल्कि बच्चे और किशोर भी ऑनलाइन कक्षाओं और गेमिंग के कारण इसी खतरे में आ गए हैं।
विशेषज्ञों का सुझाव है कि हर 30 से 40 मिनट में उठकर 3–5 मिनट टहलना, सीढ़ियां चढ़ना या हल्की स्ट्रेचिंग करना शरीर के लिए अत्यंत आवश्यक है। इसके अलावा, 'स्टैंडिंग डेस्क' और 'एक्टिव चेयर' जैसी नई कार्यशैली की तकनीकें भी तेजी से लोकप्रिय हो रही हैं।
लंबे समय तक बैठे रहना किसी एक दिन का नुकसान नहीं दिखाता, लेकिन धीरे-धीरे यह शरीर की हर प्रणाली पर प्रभाव डालता है। जैसे धूम्रपान धीरे-धीरे फेफड़ों को कमजोर करता है, वैसे ही निष्क्रियता पूरे शरीर की कार्यप्रणाली को धीमा कर देती है। आज की दुनिया में जहां 'वर्क फ्रॉम डेस्क' सामान्य हो चुका है, वहां यह समझना और भी महत्वपूर्ण है कि चलना, खड़ा रहना और सक्रिय रहना कोई शौक नहीं बल्कि एक आवश्यकता है।