क्या बांग्लादेश चुनाव से पहले यूनुस और जमात में फूट से हिंसा भड़क सकती है?
सारांश
Key Takeaways
- बांग्लादेश में चुनावी माहौल तनावपूर्ण है।
- हिंसा की संभावना बढ़ रही है।
- यूनुस और जमात के बीच दरारें बढ़ रही हैं।
- बीएनपी चुनाव में बढ़त बनाए हुए है।
- चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष होने पर सवाल उठ रहे हैं।
नई दिल्ली, १ नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। शेख हसीना की सरकार के तख्तापलट के बाद बांग्लादेश में अगले साल चुनाव होने की तैयारी है, लेकिन क्या ये चुनाव पूरी तरह स्वतंत्र और निष्पक्ष होंगे, इस पर संशय बना हुआ है। इसकी मुख्य वजह यह है कि जो लोग हसीना सरकार का तख्तापलट करने में मुहम्मद यूनुस की मदद कर चुके थे, वे अब उनके खिलाफ नजर आ रहे हैं। बांग्लादेश में चुनाव से पहले अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो गई है।
चुनाव से पूर्व महत्वपूर्ण पदों पर अपने-अपने लोगों को बैठाने को लेकर अंतरिम सरकार और जमात-ए-इस्लामी के बीच दरार के संकेत स्पष्ट हो रहे हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि हालिया घटनाक्रम से यह साफ संकेत मिल रहा है कि चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष नहीं होंगे। आने वाले महीनों में स्थिति और बिगड़ने की आशंका है, और देश में एक बार फिर हिंसा भड़कने की पूरी संभावना है।
हाल ही में जमात ने ढाका यूनिवर्सिटी के चुनावों में भारी जीत हासिल की है, जिससे उसकी स्थिति और मजबूत हुई है। जमात अब छात्रों के बीच अपनी स्थिति को सुदृढ़ करने के लिए देशभर के सभी विश्वविद्यालयों में अपने लोगों को प्रमुख पदों पर नियुक्त कर रही है।
विशेषज्ञों का कहना है कि कोई भी पार्टी छात्रों को नजरअंदाज नहीं कर सकती, क्योंकि वे समझते हैं कि युवाओं के विरोध प्रदर्शनों ने न केवल बांग्लादेश में, बल्कि नेपाल में भी सत्ता परिवर्तन किया है।
जमात-ए-इस्लामी अपने वफादारों और सदस्यों को सरकारी संस्थानों में भी प्रमुख पदों पर नियुक्त कर रही है, जिससे कई लोगों में चिंता उत्पन्न हो रही है। कई का मानना है कि जमात चुनाव जीतने में असफल रहने पर भी सत्ता में बने रहना चाहेगी। दूसरी ओर, जमात ने मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली कार्यवाहक सरकार द्वारा प्रमुख संस्थानों में राजनीतिक रूप से वफादार लोगों की नियुक्ति पर चिंता व्यक्त की है।
लोक प्रशासन मंत्रालय में एक नए सचिव की नियुक्ति की गई है। जमात का कहना है कि वह व्यक्ति न केवल यूनुस के प्रति वफादार है, बल्कि उसका अतीत भी विवादास्पद रहा है। इससे यह भी चिंता बढ़ गई है कि सरकार में कम से कम चार से पांच सलाहकार प्रमुख प्रशासनिक नियुक्तियों को नियंत्रित कर रहे हैं, जिसका उद्देश्य प्रशासन को पक्षपाती बनाना है।
कोई भी एकमत नहीं है, और ये सारे कदम चुनाव नतीजों को नियंत्रित करने के इरादे से उठाए जा रहे हैं। बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के जमात के साथ गठबंधन तोड़ने के बाद बहुत कुछ बदल गया है। लगभग सभी जनमत सर्वेक्षणों से पता चलता है कि बीएनपी को बढ़त मिली है।
प्रतिबंध के कारण अवामी लीग के चुनाव से बाहर होने के कारण बीएनपी स्पष्ट रूप से आगे है, जबकि जमात दूसरे स्थान पर होगी। नवगठित नेशनल सिटीजन पार्टी (एनसीपी) को यूनुस का समर्थन प्राप्त है और अभी तक के सर्वेक्षणों से संकेत मिलता है कि यह पार्टी तीसरे स्थान पर रहेगी।
बीएनपी के आगे होने से यूनुस और जमात दोनों असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। दोनों यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि अगर वे सत्ता में नहीं भी हैं, तो कम से कम प्रमुख पदों पर बने रहकर प्रशासन को नियंत्रित कर सकें। यही कारण है कि दोनों पक्ष चुनावों से पहले अपने वफादारों को प्रमुख पदों पर नियुक्त करने की जल्दी में हैं।
बीएनपी और जमात पहले भी मिलकर सरकार बना चुके हैं। हालांकि इस बार गठबंधन लगभग नामुमकिन सा लग रहा है। जमात ने बीएनपी पर आरोप लगाया है कि वह साजिश रचकर चुनावों में बाधा डालने की कोशिश कर रही है ताकि भारत में बैठे लोगों को बांग्लादेश को अस्थिर करने का मौका मिल सके।
वहीं नई दिल्ली के अधिकारियों का कहना है कि यह आरोप निराधार है। नई दिल्ली हमेशा एक स्थिर बांग्लादेश की वकालत करता रहा है और चाहता है कि चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष हों। बीएनपी इस बात से असुरक्षित है कि यूनुस और जमात दोनों ही चुनावों में धांधली करने की कोशिश कर रहे हैं ताकि वे सत्ता में बने रहें।