क्या चीन साने ताकाइची की अन्यमनस्कता को स्वीकार करेगा?
सारांश
Key Takeaways
- चीन ने साने ताकाइची की टिप्पणियों का सख्त विरोध किया।
- जापान के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय की आलोचना बढ़ रही है।
- 1972 के संयुक्त बयान का संदर्भ महत्वपूर्ण है।
- थाईवान का मुद्दा एशिया की भू-राजनीति में महत्वपूर्ण है।
- जापान को अपने कानूनी दायित्वों का पालन करना चाहिए।
बीजिंग, 4 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन च्येन ने एक नियमित प्रेस वार्ता का संचालन किया, जिसमें एक पत्रकार ने पूछा कि मीडिया में आई रिपोर्ट के अनुसार, जापानी प्रधानमंत्री साने ताकाइची ने 3 दिसंबर को सीनेट के पूर्ण सत्र के दौरान चीन-जापान संयुक्त बयान का उल्लेख करते हुए कहा कि वे चीन सरकार के इस पक्ष की समझ और सम्मान करती हैं कि थाईवान चीन का एक अभिन्न अंग है। इस पर चीन की क्या प्रतिक्रिया है।
लिन च्येन ने उत्तर दिया कि संबंधित रिपोर्टें सही नहीं हैं। साने ताकाइची ने केवल यह कहा कि थाईवान मुद्दे पर जापान का मूल रुख 1972 के चीन-जापान संयुक्त बयान के अनुसार है। इस रुख में कोई बदलाव नहीं आया है।
लिन च्येन ने स्पष्ट किया कि चीन का रुख स्पष्ट है और जापान से आत्मनिरीक्षण कर गलती सुधारने और साने ताकाइची की गलत बात को वापस लेने का अनुरोध किया गया है। ऐतिहासिक दस्तावेजों में सैद्धांतिक प्रश्न स्पष्ट रूप से लिखित हैं। चीन इसे कतई स्वीकार नहीं करता है।
प्रवक्ता ने आगे कहा कि साने ताकाइची ने कहा कि थाईवान मुद्दे पर जापान का मूल रुख 1972 के चीन-जापान संयुक्त बयान की तरह है, तो क्या वे सही और संपूर्ण रूप से उस बयान का उल्लेख कर सकती हैं? क्यों जापान जानबूझकर अपने वादे और कानूनी दायित्वों को नहीं बताना चाहता?
इसका कारण क्या है? जापान को चीन और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को एक स्पष्ट उत्तर देना चाहिए।
(साभार- चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)