चीन ने पीएम मोदी का एससीओ शिखर सम्मेलन में स्वागत किया, क्या यह एकता और मित्रता का प्रतीक है?

सारांश
Key Takeaways
- एससीओ शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी की भागीदारी।
- तिआनजिन सम्मेलन एकजुटता और मित्रता का प्रतीक।
- भारत-चीन संबंधों में सुधार की संभावनाएं।
- 20 से अधिक देशों के नेताओं की उपस्थिति।
- एससीओ का गठन 2001 में हुआ था।
बीजिंग, 8 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। चीन ने शुक्रवार को यह घोषणा की कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए स्वागत करता है, जो कि इस महीने के अंत में तिआनजिन शहर में आयोजित होने जा रहा है।
चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गुओ जियाकुन ने बीजिंग में आयोजित एक नियमित प्रेस ब्रीफिंग के दौरान कहा, "चीन प्रधानमंत्री मोदी का तिआनजिन एससीओ शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए आने का स्वागत करता है। हमें यकीन है कि सभी पक्षों के सामूहिक प्रयासों से तिआनजिन शिखर सम्मेलन एकजुटता, मित्रता और महत्वपूर्ण परिणामों के साथ संपन्न होगा। एससीओ एक नए उच्च गुणवत्ता विकास के चरण में प्रवेश करेगा, जिसमें अधिक एकता, समन्वय और उत्पादकता होगी।"
उन्होंने बताया कि "चीन 31 अगस्त से 1 सितंबर तक तिआनजिन में एससीओ शिखर सम्मेलन की मेज़बानी करेगा। इस आयोजन में एससीओ के सभी सदस्य देशों सहित 20 से अधिक देशों के नेता और 10 अंतरराष्ट्रीय संगठनों के प्रमुख भाग लेंगे। यह एससीओ के गठन के बाद का सबसे बड़ा शिखर सम्मेलन होगा।"
रिपोर्टों के अनुसार, प्रधानमंत्री मोदी 31 अगस्त से 1 सितंबर के बीच होने वाले एससीओ शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए चीन की यात्रा करेंगे। यह 2020 में गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प के बाद उनका पहला चीन दौरा होगा, जिसने भारत-चीन संबंधों को गंभीर रूप से प्रभावित किया था।
प्रधानमंत्री मोदी इससे पहले 2019 में चीन गए थे। इसके अलावा, उन्होंने 2024 में रूस के कजान में आयोजित ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की थी।
भारत और चीन के बीच चार साल से चल रहे सीमा गतिरोध को समाप्त करने की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है, जब दोनों देशों ने लगभग 3500 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर गश्त के लिए समझौता किया।
जुलाई में, विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने तिआनजिन में आयोजित एससीओ विदेश मंत्रियों की परिषद की बैठक में भाग लेने के लिए चीन का दौरा किया। इस दौरान उन्होंने अपने चीनी समकक्ष वांग यी से मुलाकात की और सभी विदेश मंत्रियों के साथ राष्ट्रपति शी जिनपिंग से भी भेंट की।
जून में, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एससीओ रक्षा मंत्रियों की बैठक में भाग लेने के लिए चीन का दौरा किया था। भारत ने उस बैठक की संयुक्त घोषणा का समर्थन करने से इनकार किया था, क्योंकि उसमें आतंकवाद से संबंधित चिंताओं को शामिल नहीं किया गया था। भारत का कहना था कि दस्तावेज में आतंकवाद के मुद्दे को शामिल किया जाना चाहिए था।
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल ने भी बीजिंग में आयोजित एससीओ सदस्य देशों के सुरक्षा परिषद सचिवों की 20वीं बैठक में हिस्सा लिया था। इस दौरान उन्होंने आतंकवाद के खिलाफ दोहरे मापदंड को समाप्त करने और यूएन द्वारा प्रतिबंधित आतंकवादी संगठनों जैसे लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद को समाप्त करने की आवश्यकता पर बल दिया।
गौरतलब है कि एससीओ एक स्थायी अंतर-सरकारी अंतरराष्ट्रीय संगठन है, जिसकी स्थापना 15 जून 2001 को शंघाई में की गई थी। इसके सदस्य देशों में भारत, चीन, रूस, पाकिस्तान, ईरान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान और बेलारूस शामिल हैं।