क्या इम्युनिटी ड्रॉप कर्व से समझा जा सकता है कि शरीर मौसम, उम्र और तनाव के समय क्यों कमजोर हो जाता है?
Key Takeaways
- इम्युनिटी ड्रॉप कर्व
- सर्दियों में इम्युनिटी कमजोर होती है।
- उम्र बढ़ने से टी सेल्स की संख्या में कमी आती है।
- खानपान का इम्युनिटी पर बड़ा प्रभाव होता है।
- इम्यून बूस्ट फेज रिकवरी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
नई दिल्ली, 19 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। इम्युनिटी को अक्सर एक सीधी रेखा की तरह समझा जाता है, जिसमें या तो मजबूत या कमजोर होता है। लेकिन वैज्ञानिक अनुसंधान के अनुसार, हमारी रोग-प्रतिरोधक क्षमता वास्तव में एक कर्व (घुमावदार) की तरह कार्य करती है, जिसमें समय, मौसम, उम्र, तनाव, नींद और संक्रमण के दबाव के साथ अचानक ‘डिप्स’ आते हैं। इस पैटर्न को वैज्ञानिक जगत में ‘इम्युनिटी ड्रॉप कर्व’ के नाम से जाना जाता है।
2021 में नेचर रिव्यूज इम्युनोलॉजी में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कभी भी स्थिर नहीं रहती; यह लगातार ऊपर-नीचे होती रहती है और कभी-कभी अचानक गिर भी जाती है। इसी कारण से समान वातावरण में रहने वाले दो लोग एक ही वायरस से अलग-अलग प्रभावित होते हैं।
'इम्युनिटी ड्रॉप कर्व' को मौसम के अनुसार देखें तो यह सबसे स्पष्ट रूप से सर्दियों में दिखाई देता है। हार्वर्ड मेडिकल स्कूल की 2020 की खोज बताती है कि ठंड बढ़ने से शरीर में विटामिन डी का स्तर गिरता है, नाक की म्यूकोसा परत कमजोर होती है और वायरस हवा में अधिक समय तक सक्रिय रहते हैं। इससे हमारी इम्युनिटी की कर्व नीचे की ओर झुकने लगती है। यही वजह है कि फ्लू, वायरल फीवर और सर्दी-जुकाम के मामले नवंबर से फरवरी के बीच कई देशों में अपने चरम पर पहुंच जाते हैं।
उम्र भी इस कर्व का एक बड़ा घटक है, जैसा कि स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी की 2019 में की गई स्टडी में पता चला है। इस अध्ययन से ज्ञात होता है कि 40 की उम्र के बाद टी सेल्स इम्यून कोशिकाएं धीमी हो जाती हैं और 60 के बाद यह गिरावट तेज हो जाती है। इसका अर्थ है कि उम्र बढ़ने के साथ कर्व की ‘डाउनवर्ड स्लोप’ अधिक बार और अधिक गहरी दिखाई देती है। यही कारण है कि बड़े लोग एक वायरस के प्रभाव में अधिक जल्दी आते हैं जबकि युवा जल्दी रिकवर कर लेते हैं।
दिलचस्प है कि इम्युनिटी ड्रॉप कर्व केवल प्राकृतिक कारणों से नहीं बनता—यह हमारी जीवनशैली के माइक्रो-फैक्टर्स से भी प्रभावित होता है। एक अध्ययन में पाया गया है कि खाद्य पदार्थों में सल्फर-समृद्ध सब्जियों, हाई-फाइबर और एंटीऑक्सिडेंट की कमी आंतों के माइक्रोबायोम को कमजोर कर देती है। चूंकि लगभग 70 फीसदी इम्युनिटी आंत से नियंत्रित होती है, इसलिए खानपान में छोटी गलतियां भी कर्व में डिप ला सकती हैं।
संक्रमण का दबाव इस कर्व को हमेशा बदलता रहता है। जब शरीर पहली बार किसी वायरस से लड़ता है, तो कर्व गहराई तक गिरता है, लेकिन रिकवरी के साथ यह अचानक ऊपर उठ जाता है—इसे इम्यून बूस्ट फेज कहा जाता है। यही पैटर्न कोविड-19 में स्पष्ट रूप से देखा गया, जहां हल्के संक्रमण के बाद भी कुछ सप्ताह तक प्रतिरोधक क्षमता अस्थिर बनी रही।