क्या सन्नाटे ने शासन को बदल दिया और चेकोस्लोवाकिया ने एक नया मोड़ लिया? 'वेल्वेट क्रांति' ने सबको चौंका दिया
सारांश
Key Takeaways
- 1989: एक क्रांतिकारी वर्ष
- वेल्वेट क्रांति: शांतिपूर्ण परिवर्तन
- वक्लाव हैवल: आंदोलन का चेहरा
- शांति की लहर: देशभर में फैलती हुई
- चेक और स्लोवाक: अलग होने के बावजूद एकता
नई दिल्ली, 16 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। 1989 का वर्ष पूर्वी यूरोप के लिए एक अद्भुत जागरण का प्रतीक बना। बर्लिन की दीवार के गिरने के साथ-साथ, सोवियत संघ का प्रभाव कमजोर हुआ और लोगों के मन में दशकों से दबा लोकतंत्र का सपना फिर से जाग उठा। इसी समय, चेकोस्लोवाकिया में एक अद्वितीय क्रांति का आगाज़ हुआ। यह कोई सामान्य क्रांति नहीं थी; इसमें न तो बंदूकें चलीं, न ही खून बहा। यह थी मखमली-नरम क्रांति, जो इतनी शक्तिशाली थी कि उसने पूरे शासन को पलट दिया।
17 नवंबर 1989 की शाम, प्राग की गलियों में हजारों छात्र मोमबत्तियों के साथ निकले। उनके हाथों में फूल थे, आंखों में आशा और दिलों में केवल एक ही आवाज थी – आजादी। वे किसी तख्तापलट की योजना नहीं बना रहे थे, बस चाहते थे कि उनकी आवाज सुनी जाए। लेकिन तानाशाही शासन के लिए यह खामोशी भी असहनीय साबित हुई। पुलिस ने लाठियां चलाईं, भीड़ तितर-बितर हुई, लेकिन डर नहीं टूटा। अगले दिन वही भीड़ और भी बड़ी हो गई।
धीरे-धीरे यह शांति की लहर पूरे देश में फैल गई। लोग अपने घरों की खिड़कियों से चम्मच और पतीले बजाने लगे। यह उनका प्रतिरोध था। हर आवाज में एक संदेश छिपा था— “अब बहुत हुआ।” लेखक, कलाकार और आम नागरिक सब एकजुट हो गए। इस आंदोलन का चेहरा बने वक्लाव हैवल, जो एक बार जेल में बंद नाटककार थे। उनकी बातें सरल थीं, “सच्चाई और प्रेम ही झूठ और नफरत पर जीत पाएंगे।”
कुछ ही हफ्तों में, कम्युनिस्ट शासन ध्वस्त हो गया। सत्ता को शांति से जनता को लौटा दिया गया। दिसंबर तक, हावेल राष्ट्रपति बने—एक ऐसा राष्ट्रपति जिसने कभी बंदूक नहीं उठाई, केवल कलम उठाई थी। दुनिया ने इसे ‘वेल्वेट रेवोल्यूशन’ का नाम दिया, क्योंकि यह परिवर्तन उतना ही नरम और सुंदर था, जितनी किसी मखमल की सतह।
लेकिन इतिहास यहीं नहीं रुका। नई आजादी के साथ एक नया सवाल उठा। अब यह देश किस दिशा में जाएगा? चेक और स्लोवाक जनता के बीच मतभेद धीरे-धीरे गहराने लगे। चेक क्षेत्र आर्थिक रूप से मजबूत था, जबकि स्लोवाकिया को ऐसा प्रतीत होता था कि वह पीछे छूट गया है। तनाव था, पर नफरत नहीं। दोनों आगे बढ़ना चाहते थे, बस अपने तरीके से।
1992 में नेताओं ने निर्णय लिया कि अब रास्ते अलग करने का समय आ गया है लेकिन यह अलगाव भी उतना ही शांत होगा, जितना उनका जन्म। 1 जनवरी 1993 की आधी रात को, बिना किसी गोली, युद्ध या हिंसा के, चेकोस्लोवाकिया ने दो नए देशों में बंटने का फैसला किया। ये थे चेक गणराज्य और स्लोवाकिया। इसे इतिहास ने ‘वेल्वेट डिवोर्स’ का नाम दिया, यानी ‘मखमली तलाक’।
दुनिया ने यह अद्वितीय दृश्य देखा कि एक देश शांति से जन्मा और शांति से बंट गया। न कोई संघर्ष, न कोई दुश्मनी। केवल दो नई पहचानें और एक साझा गर्व कि उन्होंने सभ्यता का सबसे सुंदर अध्याय लिखा।