क्या नेपाल में जेन-जी विरोध प्रदर्शन के मामले में पूर्व गृहमंत्री तलब किए गए हैं?
सारांश
Key Takeaways
- पूर्व गृह मंत्री रमेश लेखक को तलब किया गया है।
- पूर्व प्रधानमंत्री केपी ओली की भी पूछताछ की जा सकती है।
- आंदोलन में 77 लोगों की जान गई।
- आयोग मानवाधिकारों के उल्लंघन की जांच करेगा।
- आयोग का कार्यकाल बढ़ाया गया है।
काठमांडू, 23 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस) — नेपाल में जेन जी विरोध प्रदर्शनों की जांच कर रहे आयोग ने पूर्व गृहमंत्री को तलब किया है। आगामी दिनों में विभिन्न अधिकारियों को भी पूछताछ के लिए बुलाया जा सकता है, जिनमें पूर्व प्रधानमंत्री केपी ओली का नाम भी शामिल है।
मंगलवार को, आयोग ने पूर्व गृह मंत्री रमेश लेखक को आंदोलन के दौरान उनकी भूमिका के बारे में बयान देने के लिए बुलाया। सरकारी अनुमानों के अनुसार, देश में 77 लोगों की जान गई और 84.45 बिलियन नेपाली रुपए की संपत्ति का नुकसान हुआ।
जब 8 सितंबर को जेन-जी आंदोलन शुरू हुआ, तो के. पी. शर्मा ओली के नेतृत्व वाली सरकार में लेखक गृह मंत्री पद पर थे। पुलिस की फायरिंग में बड़ी संख्या में लोगों की मौत होने के बाद, उन्होंने उसी दिन इस्तीफा दे दिया था।
आयोग के अध्यक्ष गौरी बहादुर कार्की ने राष्ट्र प्रेस को बताया, "हमने लेखक को पत्र लिखकर शुक्रवार को आयोग के सामने पेश होकर अपना बयान दर्ज कराने के लिए कहा है।"
जांच निकाय ने 8 और 9 सितंबर को हुई घटनाओं में कथित तौर पर शामिल अधिकतर लोगों के बयान पहले ही दर्ज कर लिए हैं। अब यह अंतिम कदम के तौर पर लेखक और पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के बयान दर्ज करने की तैयारी कर रहा है।
कार्की ने कहा, "पूर्व प्रधानमंत्री ओली को कब बुलाया जाएगा, इस पर अभी कोई फैसला नहीं लिया गया है।"
ओली लगातार आयोग की कार्यशैली को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं। उन पर पक्षपात का आरोप लगाया जा रहा है। उन्होंने कहा है कि वह अपना बयान दर्ज कराने के लिए आयोग के सामने पेश नहीं होंगे।
इस हफ्ते स्थानीय हिमालयन टेलीविजन को दिए एक इंटरव्यू में, पूर्व प्रधानमंत्री ने बार-बार कहा कि वह अपना बयान दर्ज कराने के लिए आयोग नहीं जाएंगे, यह दावा करते हुए कि आयोग ने पहले ही अपने निष्कर्षों की घोषणा कर दी है। उन्होंने पूछा, "मौजूदा प्रधानमंत्री और आयोग के अध्यक्ष ने मेरा नाम लिया है, यह कहते हुए कि मेरे साथ ऐसा-वैसा किया जाना चाहिए। जब उन्होंने पहले ही नतीजे का ऐलान कर दिया है तो मैं आखिर बयान देने क्यों जाऊं?"
एक ओर ओली आयोग की आलोचना कर रहे हैं, तो दूसरी ओर, सरकार ने 10 दिसंबर को जेन-जी के गुटों संग एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसने आयोग के काम के दायरे को बढ़ा दिया है।
समझौते के अनुसार, आयोग लोगों के आंदोलन के दौरान अत्यधिक बल के इस्तेमाल के परिणामस्वरूप मानवाधिकारों के उल्लंघन, जिसमें गैर-न्यायिक हत्याएं भी शामिल हैं, की निष्पक्ष जांच करेगा, सच्चाई और तथ्यों का पता लगाएगा, और यह सिफारिश करेगा कि आपराधिक जवाबदेही सुनिश्चित की जाए।
जांच और छानबीन के आधार पर, अगर कोई व्यक्ति हत्या या गंभीर अपराधों में शामिल नहीं पाया जाता है, जो किसी क्रिमिनल गैंग द्वारा प्लान बनाकर या संगठित तरीके से किए गए हों, तो आयोग सरकार से सिफारिश कर सकता है कि ऐसे व्यक्ति को तुरंत हिरासत से रिहा कर दिया जाए और उनके खिलाफ दायर केस वापस ले लिए जाएं।
पुलिस ने सरकारी और निजी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाते वक्त देखे गए कई प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया, जिसके बाद जेन-जी ग्रुप्स ने इन गिरफ्तारियों का विरोध किया। हालांकि, इससे ओली और उनकी पार्टी, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (यूनिफाइड मार्क्सिस्ट-लेनिनिस्ट) को मौजूदा सरकार पर आपराधिक जांच के लिए उन्हें टारगेट करने का आरोप लगाने का एक और मौका मिल गया है। आरोप है कि उन्हें (ओली) को तो निशाना बनाया जा रहा है लेकिन तोड़फोड़ करने वालों को बिना किसी कार्रवाई के छोड़ दिया जा रहा है।
आयोग, जिसका कार्यकाल पिछले हफ्ते एक महीने के लिए बढ़ाया गया था, गृह मंत्रालय के अधिकारियों, सुरक्षा अधिकारियों और कार्रवाई से जुड़े अन्य लोगों के बयान रिकॉर्ड कर रहा है।
आयोग के अध्यक्ष कार्की ने कहा, "फिलहाल, हम मौजूदा इंस्पेक्टर जनरल ऑफ पुलिस, दान बहादुर कार्की का बयान रिकॉर्ड कर रहे हैं, जो उस समय काठमांडू वैली पुलिस ऑफिस के प्रमुख थे। हमने नेपाल सेना के अधिकारियों के बयान भी ले लिए हैं।"