क्या पीओके संकट के बीच सरकार ने प्रदर्शनकारियों को बातचीत का न्योता दिया?

सारांश
Key Takeaways
- पीओके में प्रदर्शनकारियों की संख्या बढ़ रही है।
- सरकार ने बातचीत का न्योता दिया है।
- बाहरी ताकतों को दोष देना एक पुरानी नीति है।
- स्थानीय लोगों की आवाज़ों का महत्व है।
- सुरक्षा बलों की कार्रवाई ने स्थिति को और बिगाड़ा।
इस्लामाबाद, 2 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में हालात दिनों-दिन बिगड़ते जा रहे हैं। हालिया रिपोर्टों के अनुसार, सुरक्षा बलों की गोलीबारी में कई प्रदर्शनकारियों की जान चली गई है। पीओके के मुख्य सचिव ने जम्मू-कश्मीर संयुक्त अवामी एक्शन कमेटी (जेकेएसीसी) के नेताओं को बातचीत के लिए आमंत्रित करने का एक नोटिस जारी किया है, जबकि सरकार इस स्थिति के लिए 'बाहरी ताकतों' को जिम्मेदार ठहरा रही है।
जेकेएएसी के केंद्रीय नेता शौकत नवाज मीर के आह्वान पर, पीओके के विभिन्न शहरों और कस्बों से कार्यकर्ताओं और समर्थकों ने 1 अक्टूबर को मुजफ्फराबाद की ओर एक बड़ा मार्च निकाला।
कोटली क्षेत्र पूरी तरह से बंद रहा। सरकारी बलों ने सभी प्रमुख रास्तों को अवरुद्ध कर दिया, जिससे जेकेएएसी कार्यकर्ता वहीं धरने पर बैठ गए।
धीरकोट में, रावलकोट और बाग से लगभग 2,000 जेकेएएसी कार्यकर्ताओं का एक काफिला मुजफ्फराबाद की ओर बढ़ा। लेकिन धीरकोट पहुंचने पर पुलिस ने उन पर गोलीबारी कर दी। झड़पों के दौरान चार नागरिकों की मौत हो गई और लगभग 16 लोग, जिनमें स्थानीय पुलिसकर्मी भी शामिल थे, घायल हुए।
इसी प्रकार, मुजफ्फराबाद में, धीरकोट में हुई मौतों के विरोध में लाल चौक पर लगभग 2,000 लोगों ने धरना दिया। बाद में इसे मुजफ्फराबाद बाईपास पर स्थानांतरित कर दिया गया। रिपोर्टों में कहा गया है कि पाकिस्तानी सुरक्षा बलों ने हवाई फायरिंग और आंसू गैस के गोले छोड़े। वहां भी दो नागरिकों की मौत की खबर है।
ददयाल में, चकसवारी और इस्लामगढ़ से मुजफ्फराबाद की ओर मार्च कर रहे जेकेएएसी कार्यकर्ताओं के एक काफिले पर पुलिस ने गोलीबारी की, जिसमें दो लोग मारे गए और लगभग दस अन्य घायल हो गए।
पीओके में मृतकों की संख्या 12 को पार कर गई है। पीओके सरकार के मुख्य सचिव ने जेकेएएसी नेताओं को बातचीत के लिए आमंत्रित किया है, लेकिन चेतावनी भी दी है कि अगर विरोध प्रदर्शन खत्म नहीं हुए तो कठोर कार्रवाई की जाएगी।
दिलचस्प है कि लंदन स्थित जेकेएएसी कार्यकर्ताओं ने भी 2 अक्टूबर को लंदन में पाकिस्तान उच्चायोग के सामने प्रदर्शन की योजना बनाई है।
यह विडंबना है कि पाकिस्तान समर्थक सोशल मीडिया प्लेटफार्म इन स्थानीय प्रदर्शनों को प्रभावित जनसंख्या के साथ समझौता करने के बजाय, बाहरी एजेंसियों की करतूत बता रहे हैं।
अपने आंतरिक संकट के लिए बाहरी ताकतों को दोष देने का यह विमर्श नया नहीं है। पाकिस्तानी हुक्मरान अपनी हर आंतरिक समस्या के लिए बाहरी ताकतों को जिम्मेदार ठहराते आए हैं।
तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) को इंटर-सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस (आईएसपीआर) बार-बार "भारत प्रायोजित" बताता है, जबकि बलूचिस्तान में सशस्त्र विद्रोह को "फितना-अल-हिंदुस्तान" के नाम से प्रचारित किया जाता है। यह बाहरी तत्वों को दोष देकर जवाबदेही से बचने की एक रणनीति है।