क्या पीओके से लेकर बलूचिस्तान तक पाकिस्तानी सेना के खिलाफ लोगों का गुस्सा उबल रहा है?

सारांश
Key Takeaways
- पीओके और बलूचिस्तान में बढ़ते विरोध प्रदर्शन।
- भ्रष्टाचार और कमीशनखोरी के खिलाफ जनता का गुस्सा।
- पाकिस्तानी सेना की स्थिति कमजोर होती जा रही है।
- सड़कों पर उतरी जनता की आवाज़।
- भविष्य में और संकट की संभावना।
नई दिल्ली, 30 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में चल रहे विरोध प्रदर्शन स्पष्ट संकेत दे रहे हैं कि बढ़ता भ्रष्टाचार पाकिस्तानी सेना की नींव को हिलाने लगा है।
सेना ने अपने भ्रष्ट अधिकारियों की रक्षा के लिए लंबे समय से इस मुद्दे को दबा रखा था, लेकिन अब आम जनता सड़कों पर उतर आई है और जवाब मांग रही है।
पाकिस्तानी सेना में व्याप्त भ्रष्टाचार का यह मुद्दा केवल पीओके तक सीमित नहीं है, बल्कि बलूचिस्तान तक भी इसका विस्तार हो चुका है।
इंटरनेट और फोन सेवाओं के बंद होने के बावजूद, पीओके में विरोध प्रदर्शनों की खबरें दुनिया भर में फैल गई हैं। पुलिस की गोलीबारी में कम से कम 2 लोग मारे गए और 22 अन्य घायल हुए हैं।
इन क्षेत्रों में विकास के मुद्दे तो हैं ही, लेकिन भारतीय अधिकारियों का कहना है कि पाकिस्तान की जनता अब भ्रष्टाचार से तंग आ चुकी है। सेना की सबसे बड़ी समस्या कमीशनखोरी है, चाहे वह हथियारों के सौदों से हो या विकास कार्यों से।
पाकिस्तानी सेना ने लंबे समय से सेवानिवृत्त अधिकारियों को बिचौलियों के रूप में नियुक्त कर रखा है ताकि कमीशन ले सकें। यह सब जनता की नजरों से छिपा हुआ था क्योंकि सेवानिवृत्त अधिकारी पर्दे के पीछे काम कर रहे थे।
बिना किसी संदेह के, सेना पाकिस्तान की सबसे शक्तिशाली संस्था है। आज, शहबाज शरीफ के रूप में उसके पास एक कठपुतली है, जिससे यह सब और भी आसान हो गया है।
2015 में, पाकिस्तान ने हैंगर-क्लास पनडुब्बी कार्यक्रम के तहत 5 अरब डॉलर के एक बड़े सौदे पर हस्ताक्षर किए। हालांकि, इस सौदे का विवरण अभी भी अस्पष्ट है और न तो संसद को और न ही जनता को इसकी जानकारी दी गई है।
पाकिस्तानी सेना सिर्फ रक्षा सौदों तक सीमित नहीं है, बल्कि भ्रष्टाचार आवास और जमीन के मामलों में भी फैला हुआ है। रक्षा आवास प्राधिकरण (डीएचए) जैसी योजनाओं ने सेना को देश का सबसे बड़ा प्रॉपर्टी डेवलपर बना दिया है।
डीएचए को विशेष कानूनी दर्जा प्राप्त है, जो इसे सरकारी निगरानी से बचाता है, जिससे सेना के अधिकारियों के लिए भ्रष्टाचार में लिप्त होना आसान हो गया है।
इन मुद्दों ने न केवल जनता को बल्कि सेना के भीतर एक वर्ग को भी परेशान किया है। भारतीय अधिकारियों का कहना है कि फील्ड मार्शल असीम मुनीर के कार्यकाल में भ्रष्टाचार अपने चरम पर था। हाल ही में, 'द गार्जियन्स ऑफ ऑनर' नामक पत्र ने सेना के भीतर की बेचैनी को उजागर किया है।
यह संकट पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के साथ गतिरोध और आईएसआई के पूर्व प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद के कोर्ट-मार्शल के कारण शुरू हुआ था।
हालांकि, आसिम मुनीर ने असहमति को दबा दिया, लेकिन अब उनका मुखौटा जनता के सामने उतर रहा है। पाकिस्तान की स्थिति पर एक खुफिया आकलन से पता चलता है कि बलूचिस्तान और पीओके में विरोध प्रदर्शन मुनीर के लिए एक निर्णायक मोड़ साबित हो सकते हैं।
इन क्षेत्रों में विरोध प्रदर्शनों में कमी के कोई संकेत नहीं हैं, और आने वाले दिनों में स्थिति और भी बिगड़ सकती है।
सेना को यह भी डर है कि ये मुद्दे, विशेष रूप से भ्रष्टाचार, राजनीतिक हस्तक्षेप और विकास, देश के बड़े शहरों तक फैल सकते हैं। सेना निस्संदेह भारी बल प्रयोग से असंतोष को दबाने का प्रयास करेगी।
हालांकि, वह बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका में हुई घटनाओं से सचेत है। इसके अलावा, उसे यह भी एहसास है कि बलूचिस्तान में उसे सबसे बुरा दौर झेलना पड़ रहा है।
ये स्पष्ट संकेत हैं कि सेना का प्रभाव धीरे-धीरे कम हो रहा है, और सेना को आने वाले कठिन दिनों के लिए तैयार रहना होगा।
-- राष्ट्र प्रेस
कनक/एएस