क्या संयुक्त राष्ट्र दिव्यांग लोगों के प्रति सोच में बदलाव की आवश्यकता पर जोर दे रहा है?

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क्या संयुक्त राष्ट्र दिव्यांग लोगों के प्रति सोच में बदलाव की आवश्यकता पर जोर दे रहा है?

सारांश

संयुक्त राष्ट्र के जाइल्स ड्यूली ने दिव्यांग व्यक्तियों की स्थिति पर बात करते हुए कहा कि हमें उनकी सोच में बदलाव लाने की आवश्यकता है। उन्होंने बताया कि दिव्यांगों को बोझ समझने की प्रवृत्ति से समाज में रुकावटें आती हैं। यह एक महत्वपूर्ण संदेश है कि हमें समाज में समानता और सशक्तिकरण की दिशा में काम करने की आवश्यकता है।

Key Takeaways

  • दिव्यांग व्यक्तियों के प्रति सोच में बदलाव की आवश्यकता है।
  • दिव्यांगता को प्रेरणा की कहानी के रूप में प्रस्तुत करना गलत है।
  • हमें समान अवसर प्रदान करने के लिए बाधाओं को दूर करना चाहिए।
  • दिव्यांग लोग समाज में बदलाव ला सकते हैं।
  • समाज में समावेशिता को बढ़ावा देना आवश्यक है।

संयुक्त राष्ट्र, 4 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। संयुक्त राष्ट्र के एक वैश्विक प्रतिनिधि ने दिव्यांग लोगों को सशक्त बनाने के लिए सोच में बदलाव की आवश्यकता पर बल दिया।

न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में बुधवार को आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में जाइल्स ड्यूली ने कहा कि तीन वर्षों तक दिव्यांग व्यक्तियों के यूएन ग्लोबल एडवोकेट के रूप में उनके अधिकारों की वकालत करने के बाद भी उन्हें यह अहसास हुआ कि उनकी आवाज़ वैश्विक स्तर पर नहीं पहुँच पाई। यह उनके कार्यकाल का अंतिम दिन था।

न्यूज एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के मुताबिक, इंटरनेशनल डे ऑफ़ पर्सन्स विद डिसेबिलिटीज पर उन्होंने कहा कि दिव्यांग लोगों के प्रति सोच के कारण सिस्टम विफल हो रहा है। दिव्यांगों को आज भी एक बोझ की तरह देखा जाता है, जो कि एक गंभीर समस्या है।

ड्यूली, जिन्होंने अफगानिस्तान में तीन अंग खोए थे, ने कहा कि दिव्यांगता को “प्रेरणा की कहानी” के रूप में प्रस्तुत करना गलत है।

अफगानिस्तान में अपने तीन हाथ-पैर खोने वाले ड्यूली ने कहा, “जब भी मुझे संयुक्त राष्ट्र या किसी संस्था में बोलने के लिए आमंत्रित किया जाता है, लोग कहते हैं कि एक प्रेरक भाषण दीजिए। लेकिन मेरा काम लोगों को प्रेरित करना नहीं है। मेरा काम सच्चाई बताना है और सच्चाई यह है कि दिव्यांग लोगों के हालात आज भी बदले नहीं हैं।”

उन्होंने कहा कि खिलाड़ी या पर्वतारोहियों की प्रेरक कहानियाँ अच्छी लगती हैं, लेकिन वे अधिकतर लोगों की हकीकत नहीं हैं। वास्तव में, ऐसे लोग तभी आगे बढ़ पाते हैं जब उनके सामने की रुकावटें हटाई जाती हैं।

ड्यूली ने कहा कि हमें दिव्यांगों को न तो दयालुता का पात्र समझना चाहिए और न ही उन्हें प्रेरणा के रूप में देखना चाहिए।

उन्होंने आगे कहा, “हमें यह समझना चाहिए कि समाज ने ही उनके रास्ते में बाधाएँ खड़ी की हैं। हमारा काम है इन बाधाओं को हटाना और उन्हें खुद को सशक्त करने का अवसर देना।”

इंटरनेशनल डे के लिए एक संदेश में संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेस ने कहा कि दिव्यांग व्यक्तियों को समाज में पूरी तरह से शामिल करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।

उन्होंने कहा, “दिव्यांग लोग समाज में बदलाव ला रहे हैं, नवाचार का नेतृत्व कर रहे हैं, नीतियों को प्रभावित कर रहे हैं और न्याय की मांग कर रहे हैं। लेकिन अक्सर उन्हें निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में शामिल नहीं किया जाता। दिव्यांग व्यक्तियों को शामिल किए बिना स्थायी विकास संभव नहीं है।”

गुटेरेस ने बताया कि आज भी भेदभाव, गरीबी और असुलभ सेवाएँ जैसे अनेक रुकावटें दुनिया के एक अरब से अधिक दिव्यांग लोगों की भागीदारी को रोकती हैं।

Point of View

हमें यह समझना चाहिए कि दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा करना केवल एक नैतिक दायित्व नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज की प्रगति के लिए आवश्यक है। अगर हम उन्हें उचित अवसर नहीं देंगे, तो विकास की प्रक्रिया अधूरी रह जाएगी। हमें एक समावेशी समाज का निर्माण करना होगा, जहाँ हर व्यक्ति को समान अवसर मिले।
NationPress
09/12/2025

Frequently Asked Questions

संयुक्त राष्ट्र दिव्यांग लोगों के अधिकारों की रक्षा कैसे कर रहा है?
संयुक्त राष्ट्र दिव्यांग लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए कई कार्यक्रम और पहलों की शुरुआत कर रहा है, जिसमें उनके अधिकारों के प्रति जागरूकता फैलाना शामिल है।
दिव्यांग व्यक्तियों को समाज में कैसे शामिल किया जा सकता है?
दिव्यांग व्यक्तियों को समाज में शामिल करने के लिए हमें उनकी आवश्यकताओं को समझना होगा और सभी क्षेत्रों में उनके लिए समान अवसर प्रदान करने होंगे।
दिव्यांगता को कैसे समझा जाना चाहिए?
दिव्यांगता को केवल एक शारीरिक स्थिति के रूप में नहीं, बल्कि एक सामाजिक मुद्दे के रूप में समझा जाना चाहिए, जिसे हम सभी को मिलकर सुलझाना है।
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