क्या डीयू प्रोफेसर और कुमाऊं विश्वविद्यालय के कुलपति चुने गए इंडियन नेशनल साइंस अकेडमी के फेलो?

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क्या डीयू प्रोफेसर और कुमाऊं विश्वविद्यालय के कुलपति चुने गए इंडियन नेशनल साइंस अकेडमी के फेलो?

सारांश

दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर दीवान एस. रावत को इंडियन नेशनल साइंस एकेडमी द्वारा फेलो के रूप में चुना गया है। यह सम्मान उन्हें औषधीय रसायन के क्षेत्र में उनके उत्कृष्ट कार्य के लिए दिया गया है, खासकर पार्किन्सन रोग के उपचार में योगदान के लिए। जानिए उनकी उपलब्धियों और अनुसंधान पर!

Key Takeaways

  • प्रोफेसर दीवान एस. रावत को इंडियन नेशनल साइंस एकेडमी का फेलो चुना गया।
  • उन्होंने पार्किन्सन रोग के उपचार पर महत्वपूर्ण शोध किया है।
  • उनके नाम पर नौ पेटेंट हैं।
  • उनकी प्रयोगशाला ने मानव क्लीनिकल ट्रायल के पहले चरण को सफलतापूर्वक पूरा किया।
  • उन्होंने 28 शोधार्थियों का मार्गदर्शन किया है।

नई दिल्ली, 12 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। इंडियन नेशनल साइंस एकेडमी ने दिल्ली विश्वविद्यालय के वरिष्ठ रसायन विज्ञान प्रोफेसर और कुमाऊं विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर दीवान एस. रावत को फेलो (एफएनए) के रूप में चुना है। यह सम्मान भारतीय विज्ञान का सर्वोच्च सम्मान माना जाता है। इंडियन नेशनल साइंस एकेडमी के अनुसार, प्रोफेसर रावत को यह प्रतिष्ठा मुख्यतः औषधीय रसायन के क्षेत्र में उनके अद्वितीय योगदान के लिए दी गई है।

प्रोफेसर रावत को विशेष रूप से पार्किन्सन रोग के उपचार हेतु दवा विकास में किए गए उनके महत्वपूर्ण शोध के लिए यह सम्मान मिला है। अब तक, उन्होंने 175 से अधिक शोध पत्र प्रकाशित किए हैं और उनके नाम पर नौ पेटेंट भी हैं।

अपने करियर के प्रारंभिक चरण में, उन्होंने अमेरिका के इंडियाना विश्वविद्यालय और पर्ड्यू विश्वविद्यालय में पोस्ट डॉक्टोरल रिसर्च किया है।

प्रोफेसर रावत ने राष्ट्र प्रेस को बताया कि उनकी प्रयोगशाला द्वारा विकसित एक अणु ने मानव क्लीनिकल ट्रायल के प्रथम चरण को सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है। यह किसी भारतीय शैक्षणिक संस्थान द्वारा विकसित किया गया पहला मॉलिक्यूल है और इसे अमेरिकी यूएस एफडीए से स्वीकृति भी मिली है। 2003 में दिल्ली विश्वविद्यालय से जुड़ने से पहले, प्रोफेसर रावत मोहाली स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्यूटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च में सहायक प्रोफेसर रह चुके हैं। उत्तराखंड से वे दूसरे केमिस्ट्री प्रोफेसर हैं जिन्हें यह सम्मान प्राप्त हुआ है। इससे पहले, उनके पीएचडी मार्गदर्शक डॉ. डीएस भकुनी को 1979 में एफएनए का सम्मान मिला था।

प्रोफेसर रावत ने यह भी जानकारी दी कि उनकी प्रयोगशाला में विकसित दो अन्य अणु प्री-क्लीनिकल चरण में हैं। इनमें से एक ऑटोइम्यून रोगों के उपचार के लिए और दूसरा डिमेंशिया के लिए है। उनके शोध कार्य को अब तक 7,750 से अधिक बार उद्धृत किया गया है।

उन्होंने बताया कि वे अब तक 28 शोधार्थियों का मार्गदर्शन कर चुके हैं। कुलपति के रूप में, उन्होंने कुमाऊं विश्वविद्यालय में कई सुधारात्मक कदम उठाए हैं, जिनमें मेरु परियोजना के अंतर्गत विश्वविद्यालय के लिए 100 करोड़ रुपए की परियोजना प्राप्त करना, डीएसटी -पेयर ग्रांट और पटवडांगर में 26.4 एकड़ भूमि प्राप्त कराना शामिल है, जहाँ मेरु कैंपस स्थापित किया जाएगा।

उन्होंने कहा कि कुलपति होने के बावजूद, वे नियमित रूप से कक्षाएं भी ले रहे हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय में उन्होंने जुलाई 2003 में रीडर के रूप में कार्यभार संभाला और मार्च 2010 में प्रोफेसर बने। उन्होंने 1993 में कुमाऊं विश्वविद्यालय, नैनीताल से स्नातकोत्तर किया, जहाँ वे विश्वविद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्त कर सम्मानित हुए। इसके बाद, उन्होंने सेंट्रल ड्रग रिसर्च इंस्टीट्यूट, लखनऊ से औषधीय रसायन विज्ञान में पीएचडी की।

Point of View

बल्कि यह भारतीय विज्ञान और अनुसंधान के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर भी है। उनके शोध और नवाचारों ने न केवल देश में, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारत की वैज्ञानिक क्षमता को प्रदर्शित किया है।
NationPress
12/09/2025

Frequently Asked Questions

प्रोफेसर दीवान एस. रावत को यह सम्मान क्यों मिला?
उन्हें यह सम्मान औषधीय रसायन के क्षेत्र में उनके असाधारण योगदान के लिए दिया गया है, विशेष रूप से पार्किन्सन रोग के उपचार में उनके शोध के कारण।
प्रोफेसर रावत ने कितने शोध पत्र प्रकाशित किए हैं?
प्रोफेसर रावत ने अब तक 175 से अधिक शोध पत्र प्रकाशित किए हैं।
उन्होंने किस विश्वविद्यालय से पीएचडी की है?
उन्होंने सेंट्रल ड्रग रिसर्च इंस्टीट्यूट, लखनऊ से औषधीय रसायन विज्ञान में पीएचडी की है।