क्या पेसा कानून के अधिसूचित होने तक बालू घाट और लघु खनिज आवंटन पर रोक बरकरार रहेगी?

सारांश
Key Takeaways
- झारखंड हाईकोर्ट ने बालू घाटों के आवंटन पर रोक बरकरार रखी है।
- पेसा कानून के अधिसूचना के बिना कोई नीलामी नहीं होगी।
- राज्य सरकार को पेसा नियमावली तैयार करने का आदेश दिया गया है।
रांची, २४ सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। झारखंड हाईकोर्ट ने राज्य में बालू घाटों और लघु खनन क्षेत्रों के आवंटन पर लगाई गई रोक हटाने की याचिका को अस्वीकृत कर दिया है।
चीफ जस्टिस तरलोक सिंह चौहान और जस्टिस राजेश शंकर की बेंच ने बुधवार को स्पष्ट किया कि जब तक राज्य सरकार पेसा (पंचायत एक्सटेंशन टू शेड्यूल्ड एरिया एक्ट), १९९६ को अधिसूचित नहीं करती, तब तक कोर्ट इसकी अनुमति नहीं देगा। हालांकि, कोर्ट ने बालू घाटों की नीलामी और आवंटन पर रोक हटाने के लिए राज्य सरकार की ओर से दायर हस्तक्षेप याचिका को स्वीकार कर लिया और याचिकाकर्ता को नोटिस जारी किया है।
मामले की अगली सुनवाई ९ अक्टूबर को होगी। हाईकोर्ट की बेंच ने कहा कि सरकार ने अभी तक पेसा, १९९६ की नियमावली बनाने और अधिसूचित करने की अपनी जिम्मेदारी पूरी नहीं की है।
चीफ जस्टिस ने कहा, “आप नियम अधिसूचित करें, उसके बाद ही हम नीलामी की अनुमति देंगे।” इस दौरान सरकार की ओर से एडवोकेट जनरल राजीव रंजन ने कोर्ट को बताया कि नियमावली लागू करने के लिए ड्राफ्ट तैयार किया गया है और इस पर विभिन्न विभागों से मंतव्य मांगा गया है। विभागों के मंतव्य मिलने के बाद इसे कैबिनेट में भेजा जाएगा और इसके बाद एक महीने में पेसा नियमावली लागू कर दी जाएगी।
इस पर कोर्ट ने पूछा कि जिन विभागों के अधिकारियों ने ड्राफ्ट नियमों पर तय समय सीमा के भीतर मंतव्य नहीं दिया, उनके खिलाफ क्या कार्रवाई की गई है? कोर्ट ने कहा कि हमारी चिंता इस बात की है कि सरकार पेसा नियमावली कब अधिसूचित करती है और लागू करती है, सरकार ड्राफ्ट बनाने के लिए क्या कर रही है, यह हमारे विचार का मूल प्रश्न ही नहीं है।
ज्ञात हो कि इससे पहले ९ सितंबर को झारखंड हाईकोर्ट ने आदिवासी बुद्धिजीवी मंच की ओर से दायर अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य में पेसा कानून लागू होने तक बालू घाट सहित सभी प्रकार के लघु खनिजों की नीलामी पर रोक लगा दी थी।
सुनवाई के दौरान उपस्थित पंचायती राज विभाग के प्रधान सचिव मनोज कुमार के जवाब पर भी कोर्ट ने असंतोष जताया था। कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि राज्य सरकार ७३वें संविधान संशोधन की मंशा को कमजोर कर रही है। अनुसूचित जनजातीय क्षेत्रों में भूमि और प्राकृतिक संसाधनों पर अधिकार स्थानीय निकायों को मिलने चाहिए, लेकिन सरकार नियमावली लागू करने में लगातार टालमटोल कर रही है।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अजीत कुमार ने तर्क किया कि राज्य सरकार जानबूझकर पेसा नियमावली को अधिसूचित करने में देरी कर रही है। हाईकोर्ट ने जुलाई, २०२४ में एक जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद झारखंड सरकार को दो माह के भीतर राज्य में पेसा नियमावली अधिसूचित करने का आदेश दिया था।
कोर्ट ने कहा था कि संविधान के ७३वें संशोधन के उद्देश्यों के अनुरूप तथा पेसा कानून के प्रावधान के अनुसार पेसा नियमावली बना कर लागू किया जाये।