क्या आज है संताली विजय दिवस? 80 लाख लोगों की भाषा संसद तक गूंज रही है
सारांश
Key Takeaways
- संताली विजय दिवस 22 दिसंबर को मनाया जाता है।
- संताली भाषा को 2003 में संविधान में शामिल किया गया।
- यह 80 लाख से अधिक लोगों की मातृभाषा है।
- संताली की लिपि 'ओल चिकी' है।
- झारखंड में संताली शिक्षा के लिए कई कदम उठाए गए हैं।
रांची, २२ दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। संताली भाषा को लिखने, बोलने और पढ़ने वाले देश-विदेश में फैले लगभग ८० लाख से अधिक लोगों के लिए २२ दिसंबर एक महत्वपूर्ण दिन है। दशकों से चलती आ रही मांग और लंबे आंदोलनों के परिणामस्वरूप, वर्ष २००३ में इसी दिन संताली को भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया, और तभी से इस दिन को संताली विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है।
झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और असम के अलावा बांग्लादेश, नेपाल और भूटान के कई आदिवासी क्षेत्रों की मुख्य भाषा संताली अब केवल गांवों तक सीमित नहीं है। अब इसकी गूंज देश की संसद में भी सुनाई देती है। इस वर्ष से लोकसभा की कार्यवाही का अनुवाद संताली में शुरू हो चुका है।
इस पहल से संताली भाषा बोलने वाले लोगों को संसद की कार्यवाही अपनी मातृभाषा में समझने की सुविधा मिली है। संताली भाषा ऑस्ट्रोएशियाटिक भाषा परिवार की मुंडा शाखा से संबंधित है और यह हो और मुंडारी से निकटता रखती है। इसकी विशिष्ट पहचान इसकी स्वदेशी ‘ओल चिकी’ लिपि है, जिसे १९२५ में पंडित रघुनाथ मुर्मू ने विकसित किया। संताली भाषा झारखंड और पश्चिम बंगाल में दूसरी आधिकारिक भाषा का दर्जा रखती है।
संताल समुदाय स्वयं को ‘होर’ या ‘होर होपोन’ यानी मानवजाति का पुत्र कहता है और अपनी भाषा को ‘होर रोर’ के नाम से जानता है। क्षेत्रीय स्तर पर इसके अलग-अलग नाम भी प्रचलित हैं। कहीं इसे जांगली या पहाड़िया कहा जाता है, तो कहीं ठर या पारसी के नाम से जाना जाता है। हाल के वर्षों में भाषा और लिपि के संरक्षण के लिए सामाजिक स्तर पर भी प्रयास तेज हुए हैं।
आदिवासी सोशियो-एजुकेशनल एंड कल्चरल एसोसिएशन (आसेका) द्वारा झारखंड में लगभग १०० गांवों में ‘ओल इतुन आसड़ा’ स्कूल चलाए जा रहे हैं, जहां निःशुल्क शिक्षा प्रदान की जा रही है। आसेका के सचिव शंकर सोरेन का कहना है कि भाषा का संरक्षण समाज की साझा जिम्मेदारी है। संताली अनुवादक मंगल माझी के अनुसार अब केजी से पीजी तक, यहां तक कि तकनीकी विषयों की पुस्तकें भी संताली में तैयार की जा रही हैं। झारखंड सरकार ने भी राज्य के १०८० स्कूलों में संताली सहित पांच जनजातीय भाषाओं में पढ़ाई की व्यवस्था की है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इन भाषाओं के लिए नियमित शिक्षकों की नियुक्ति का भी ऐलान किया है।