क्या जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी नेता अब्दुल गनी भट का 90 साल की आयु में निधन हो गया?

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क्या जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी नेता अब्दुल गनी भट का 90 साल की आयु में निधन हो गया?

सारांश

हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर अब्दुल गनी भट का निधन, जम्मू-कश्मीर की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले नेता। उनकी ज़िंदगी की कहानी और राजनीतिक यात्रा पर एक नज़र।

Key Takeaways

  • अब्दुल गनी भट का निधन जम्मू-कश्मीर की राजनीति में एक महत्वपूर्ण क्षण है।
  • उन्होंने मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट की स्थापना की थी।
  • उनकी शिक्षा और राजनीतिक यात्रा ने कश्मीर में प्रभाव डाला।
  • भट की उम्र 90 वर्ष थी और उन्होंने एक लंबा जीवन जिया।
  • उनकी सोच और विचार आज भी प्रासंगिक हैं।

श्रीनगर, 17 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के पूर्व अध्यक्ष और अलगाववादी नेता प्रोफेसर अब्दुल गनी भट का बुधवार को सोपोर के बोटिंगू गांव स्थित उनके निवास पर निधन हो गया। पारिवारिक सूत्रों ने पुष्टि की है कि बारामूला जिले के सोपोर क्षेत्र के बोटिंगू गांव के निवासी प्रोफेसर भट ने शाम को अंतिम सांस ली। वह पिछले कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे और उनकी उम्र 90 वर्ष थी।

प्रोफेसर भट जम्मू-कश्मीर की अलगाववादी राजनीति में एक महत्वपूर्ण हस्ती रहे। परिवार के अनुसार, उनके जनाजे की नमाज के बारे में सूचना बाद में दी जाएगी।

1935 में उत्तरी कश्मीर के सोपोर के पास बोटिंगू गांव में जन्मे भट एक ऐसे परिवार में बड़े हुए, जहां शिक्षा को विशेष महत्व दिया जाता था। उन्होंने श्रीनगर के ऐतिहासिक एसपी कॉलेज से शिक्षा प्राप्त की, उसके बाद फारसी में स्नातकोत्तर की पढ़ाई की और बाद में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री हासिल की।

अपने गृह राज्य लौटने के बाद, उन्होंने पुंछ के सरकारी डिग्री कॉलेज में फारसी पढ़ाना शुरू किया। यह एक ऐसा करियर था जिसमें वे दो दशकों से अधिक समय तक सक्रिय रहे। इसके बाद उन्होंने राजनीति में कदम रखा।

1986 में उन्होंने मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट की सह-स्थापना की। बाद में 1993 में गठित अलगाववादी समूहों के गठबंधन, ऑल पार्टीज हुर्रियत कॉन्फ्रेंस (एपीएचसी) के अध्यक्ष बने और भारत सरकार द्वारा प्रतिबंधित राजनीतिक गुट, मुस्लिम कॉन्फ्रेंस, जम्मू और कश्मीर के अध्यक्ष भी रहे। जब तत्कालीन राज्यपाल जगमोहन ने राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों के लिए उनकी सेवाएँ समाप्त कर दीं, तब वे सोपोर के एक सरकारी कॉलेज में शिक्षक थे।

प्रोफेसर भट ने बाद में अलगाववादी राजनीति में सक्रिय रूप से भाग लिया और मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट के प्रमुख नेता रहे। यह विभिन्न अलगाववादी दलों का एक समूह था, जिसने 1987 के चुनाव में फारूक अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली नेशनल कॉन्फ्रेंस के खिलाफ चुनाव लड़ा था।

कहा जाता है कि 1987 के चुनावों में मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट के नेताओं को राज्य विधानसभा से बाहर रखने के लिए बड़े पैमाने पर धांधली की गई थी।

आमतौर पर यह माना जाता है कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया से असंतुष्ट होकर, 1987 के चुनावों में युवा चुनाव एजेंट और अलगाववादी नेताओं के समर्थक सबसे पहले सीमा पार कर गए और हथियारों के साथ वापस लौटे, ताकि 1989 में कश्मीर में सशस्त्र विद्रोह शुरू कर सकें। जनवरी 2011 को उन्होंने श्रीनगर में एक सेमिनार के दौरान कहा था कि हमारे अपने ही कुछ लोगों ने, हमारे अपनों ने ही कत्ल किया और कत्ल कराया है। उनके इस बयान के बाद पूरे कश्मीर में खलबली मच गई थी।

Point of View

हम प्रोफेसर अब्दुल गनी भट के योगदान को एक महत्वपूर्ण दृष्टिकोण से देखते हैं। उनकी राजनीतिक यात्रा ने जम्मू-कश्मीर की राजनीति में गहरा प्रभाव डाला। हालांकि उनके विचारों से सहमत होना कठिन हो सकता है, लेकिन उनकी उपस्थिति और विचारों ने एक चर्चा को जन्म दिया जो आज भी प्रासंगिक है।
NationPress
19/12/2025

Frequently Asked Questions

अब्दुल गनी भट का निधन कब हुआ?
उनका निधन 17 सितंबर को हुआ।
अब्दुल गनी भट की उम्र क्या थी?
उनकी उम्र 90 वर्ष थी।
भट ने किस कॉलेज से पढ़ाई की थी?
उन्होंने श्रीनगर के ऐतिहासिक एसपी कॉलेज से पढ़ाई की थी।
भट ने किस राजनीतिक दल की स्थापना की थी?
उन्होंने मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट की सह-स्थापना की थी।
भट का योगदान कश्मीर की राजनीति में क्या था?
उन्होंने अलगाववादी राजनीति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
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