क्या महरौली से पैदल चलकर कलंदरों ने अजमेर में अद्भुत परंपरा निभाई?
सारांश
Key Takeaways
- कलंदरों का जुलूस हर साल उर्स के अवसर पर आयोजित होता है।
- यह परंपरा 850 साल पुरानी है।
- जुलूस में साहसिक करतब दिखाए जाते हैं।
- यह आयोजन भाईचारे का संदेश देता है।
- कलंदर हर साल पैदल चलकर आते हैं।
अजमेर, 21 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। सूफी संत हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती के 814वें उर्स के अवसर पर, अमन, चैन और भाईचारे का संदेश लेकर दिल्ली के महरौली से पैदल चलकर आए कलंदरों और मलंगों ने अजमेर में आस्था और परंपरा का एक अद्भुत दृश्य प्रस्तुत किया।
कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की दरगाह से छड़ियों के साथ प्रस्थान करते हुए कलंदरों का जत्था एक दिन पहले ही अजमेर पहुंचना प्रारंभ कर चुका था। उर्स की रौनक में कलंदरों ने छड़ियों का भव्य जुलूस निकालकर दरगाह ख्वाजा साहब में हाजिरी दी और देश में अमन-चैन तथा भाईचारे की दुआ मांगी।
कलंदरों का यह जुलूस गंज क्षेत्र से प्रारंभ होकर देहली गेट, धानमंडी और दरगाह बाजार होते हुए रोशनी से पहले दरगाह पहुंचा। जुलूस के दौरान, कलंदरों और मलंगों ने परंपरागत छड़ियों को हाथ में लेकर आश्चर्यजनक करतब दिखाए, जिन्हें देखने के लिए सड़क के दोनों ओर भारी भीड़ जुट गई। किसी कलंदर ने अपनी जुबान में नुकीली लोहे की छड़ घुसा ली, तो किसी ने गर्दन के आर-पार छड़ निकालकर श्रद्धालुओं को चौंका दिया। एक कलंदर ने तलवार से आंख की पुतली बाहर निकालने की कला भी प्रस्तुत की, वहीं कुछ ने चाबुक से अपने शरीर पर चोट पहुंचाने जैसे कठिन करतब भी दिखाए।
इन अद्भुत और साहसिक करतबों को देखकर हर कोई आश्चर्यचकित रह गया। जुलूस के दौरान जगह-जगह कलंदरों का पुष्प वर्षा के साथ स्वागत किया गया। जैसे ही जुलूस दरगाह के निजाम गेट पर पहुंचा, वहां खुद्दाम-ए-ख्वाजा ने पारंपरिक तरीके से कलंदरों और मलंगों का स्वागत किया। इसके बाद सभी कलंदरों ने अपनी छड़ियां दरगाह में पेश कीं और ख्वाजा गरीब नवाज की बारगाह में शांति, सौहार्द और भाईचारे की दुआएं मांगीं।
दिल्ली से पैदल चलकर आए एक कलंदर ने बताया कि वे हर साल ख्वाजा गरीब नवाज के सालाना उर्स में छड़ियां लेकर पैदल अजमेर आते हैं और उर्स में हाजिरी लगाते हैं। उन्होंने बताया कि यह परंपरा लगभग 850 साल पुरानी है, जिसका निर्वहन आज भी पूरी आस्था और श्रद्धा के साथ किया जा रहा है।
मान्यता है कि कलंदरों द्वारा दरगाह में छड़ियां पेश किए जाने के बाद ही उर्स की विधिवत शुरुआत मानी जाती है। इस बार भी हजारों की संख्या में पहुंचे कलंदरों ने इस प्राचीन परंपरा को निभाते हुए उर्स को रूहानी रंग में रंग दिया।