क्या रघुवीर सहाय का साहित्य अकेलेपन से अर्जित संवेदना और समाज के प्रति अडिग प्रतिबद्धता का प्रतीक है?
सारांश
Key Takeaways
- रघुवीर सहाय का साहित्य समाज की समस्याओं को उजागर करता है।
- उनकी रचनाएँ आम आदमी की आवाज बनती हैं।
- अकेलेपन ने उन्हें संवेदनशीलता दी।
- उन्होंने कई लेखकों को सहारा दिया।
- उनकी विरासत आज भी जीवित है।
नई दिल्ली, 8 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। रघुवीर सहाय एक अद्वितीय साहित्यकार थे जिनका साहित्य पर अधिकार अद्वितीय था। इन्होंने अपनी लेखनी से साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। रघुवीर सहाय को एक कवि के रूप में मान्यता मिली, लेकिन एक कहानीकार के रूप में उन्हें उतनी पहचान नहीं मिली।
9 दिसंबर 1929 को लखनऊ में जन्मे रघुवीर सहाय की लोकप्रियता उनके चाहने वालों में उनकी कविताओं के माध्यम से परिलक्षित होती है। उनकी रचनाओं में राजनीति, आम आदमी और स्त्री चेतना पर विचार किया गया।
विनय दुबे ने लिखा था, "रघुवीर सहाय मेरे प्रिय कवियों में से हैं, जिन्हें मैं खास पल में पढ़ता हूं। उनकी कविताओं में गरीबों की आवाज और सामान्य भारतीय जन की सोच का समावेश है।"
रघुवीर सहाय का बचपन कठिनाईयों से भरा था। मां तारा देवी का निधन और पिता हरदेव सहाय का निधन ने उन्हें अकेला कर दिया, लेकिन इस अकेलेपन ने उन्हें तोड़ने के बजाय संवेदनशीलता दी, जो उनकी रचनाओं में झलकती है।
उनके दादा लक्ष्मी सहाय ने उन्हें नैतिकता का पाठ पढ़ाया। उनकी स्पष्टता कभी-कभी चुभती थी, लेकिन समाज के प्रति उनका प्रेम अटूट था।
1946 में मैट्रिक के साथ रघुवीर ने अपनी पहली कविता 'कामना' लिखी। 1951 में 'दूसरा सप्तक' के प्रकाशन से उनकी कविताओं ने साहित्य में हलचल मचाई।
रघुवीर सहाय ने प्रतीक में सहायक संपादक के रूप में काम किया और बाद में आकाशवाणी से जुड़े।
1955 में उनका विवाह विमलेश्वरी से हुआ और उन्होंने कई लेखकों को सहारा दिया। रघुवीर सहाय का स्वभाव दयालु और संघर्षशील लोगों के प्रति अपनापन रखने वाला था।
उनका निधन 30 दिसंबर 1990 को दिल्ली में हुआ, लेकिन उनकी विरासत आज भी जीवित है।