क्या 2025 में ग्लोबल साउथ का कद बढ़ा? भारत ने वैश्विक शक्ति संतुलन में निभाया अहम किरदार
सारांश
Key Takeaways
- भारत ने ग्लोबल साउथ की कूटनीति में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
- भारत का विकास मॉडल और तकनीकी सहयोग अन्य देशों के लिए प्रेरणा है।
- जलवायु कूटनीति में भारत की नेतृत्वकारी भूमिका महत्वपूर्ण है।
- ग्लोबल साउथ का उभार भारत के नेतृत्व और कूटनीतिक पूंजी से बढ़ा है।
- भारत ने अपनी कूटनीति को विकास-समर्थक और परिणाम-केंद्रित बनाया है।
नई दिल्ली, 8 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। वर्ष 2025 ग्लोबल साउथ की कूटनीति के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ, और इस उभार के केंद्र में भारत की भूमिका सबसे प्रमुख रूप से उभरकर सामने आई। पिछले एक दशक में भारत ने जिस प्रकार वैश्विक शक्ति-संतुलन में अपनी स्थिति स्थापित की है, वह अब केवल आर्थिक विस्तार या जनसंख्या के आकार का परिणाम नहीं है, बल्कि यह एक रणनीतिक कूटनीति, दक्षिण–दक्षिण सहयोग और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में सुधार की सक्रिय मांगों का संयोजन है।
जब दुनिया पारंपरिक महाशक्तियों की प्रतिस्पर्धा से जूझ रही थी, भारत ने खुद को उस पुल के रूप में स्थापित किया है जो विकसित और विकासशील देशों के बीच संवाद, विश्वास और विमर्श का आधार तैयार करता है।
2025 में जब ब्रिक्स का विस्तार हुआ और रियो दी जिनेरियो में इसके 11+ देशों वाले स्वरूप का उदय हुआ, भारत ने अपने राष्ट्रीय हितों को व्यापक वैश्विक दक्षिण की आकांक्षाओं के साथ जोड़ा। नई दिल्ली का यह मानना है कि आईएमएफ, डब्ल्यूटीओ, यूएन सुरक्षा परिषद जैसे संस्थानों में सच्चे सुधार तभी संभव हैं जब प्रतिनिधित्व जनसंख्या, आर्थिक योगदान और भू-राजनीतिक वास्तविकताओं के आधार पर निर्धारित किया जाए।
भारत के दृष्टिकोण का केंद्रीय तत्व यह है कि मौजूदा वैश्विक ढांचा 1945 की शक्ति-व्यवस्था का प्रतिबिंब है, जबकि 2025 की दुनिया एक नए आर्थिक भूगोल और राजनीतिक गतिशीलता पर आधारित है। इसलिए भारत लगातार कोटा बढ़ाने, वोटिंग शेयर और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता की मांग करता रहा है, जिसे ग्लोबल साउथ की सामूहिक आवाज के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
भारत की भूमिका इसलिए भी अद्वितीय है कि वह केवल बदलाव की मांग नहीं करता, बल्कि अपने घरेलू विकास अनुभवों के माध्यम से अपने मॉडल को प्रस्तुत करता है। डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर (यूपीआई, आधार आधारित सेवाएं, कोविन मॉडल) को भारत ने वैश्विक सार्वजनिक वस्तुओं की अवधारणा से जोड़कर ग्लोबल साउथ को तकनीकी समानता और स्वायत्तता का मार्ग प्रदान किया है। अफ्रीका, दक्षिण-पूर्व एशिया और लैटिन अमेरिका के कई देशों ने 2025 में भारत से डिजिटल सहयोग और तकनीकी साझेदारी के समझौते किए, जिससे भारत की कूटनीति केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि विकास-समर्थक और परिणाम-केंद्रित बन गई।
भारत ने 2025 में जलवायु कूटनीति को भी ग्लोबल साउथ के दृष्टिकोण से पुनर्परिभाषित किया। वैश्विक मंचों पर भारत ने बार-बार इस तथ्य को रेखांकित किया कि विकासशील देशों से नेट-जीरो या उत्सर्जन कटौती के कठोर लक्ष्य तभी अपेक्षित हो सकते हैं जब उन्हें वित्त, तकनीक और ऊर्जा संक्रमण में वास्तविक सहयोग प्राप्त हो। भारत की यह स्थिति व्यापक दक्षिणी विश्व के हितों से मेल खाती है, क्योंकि ऊर्जा सुरक्षा और विकास के बीच संतुलन बनाना ग्लोबल साउथ का साझा संघर्ष है। सीओपी मंचों पर भारत की यह नीति प्रतिरोध नहीं, बल्कि समाधान खोजने वाली नेतृत्वकारी भूमिका के रूप में उभरी।
एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि ग्लोबल साउथ की राजनीति अब केवल कूटनीति तक सीमित नहीं रही, बल्कि आर्थिक समूहबद्धता और नई वित्तीय व्यवस्थाओं के निर्माण की दिशा में भी कदम बढ़ाए गए हैं। भारत ने कई परियोजनाओं को प्राथमिकता देने का आग्रह किया, ताकि दक्षिणी देशों के बुनियादी ढांचे, स्वास्थ्य और शिक्षा में सीधे निवेश हो सके। यह वह क्षेत्र है जहां भारत पश्चिमी आर्थिक संस्थानों की तुलना में अधिक लचीला, समानता-आधारित और भरोसेमंद साझेदार के रूप में देखा जाता है।
भारत की कूटनीतिक सफलता का एक और महत्वपूर्ण तत्व यह रहा कि वह ग्लोबल साउथ को एकजुट करने के साथ-साथ पश्चिमी देशों से भी मजबूत संवाद बनाए रखता है। भारत की विदेश नीति का यह संतुलित मॉडल, स्ट्रैटजिक ऑटोनॉमी (सामरिक स्वायत्तता) 2025 में और अधिक स्पष्ट रूप से सामने आया, जहां भारत न तो किसी ब्लॉक का अधीन हिस्सा बना और न ही टकराव की राजनीति का हिस्सा। इसके बजाय, उसने एक व्यावहारिक, बहुपक्षीय और साझा-हित आधारित नेतृत्व का प्रदर्शन किया।
ग्लोबल साउथ का उभार वास्तव में भारत के नेतृत्व, नैरेटिव-निर्माण, विकास मॉडल और कूटनीतिक पूंजी की वजह से तेजी से बढ़ा है। ब्राज़ील, नाइजीरिया, इंडोनेशिया और दक्षिण अफ्रीका जैसे देश भी इसमें सक्रिय हैं, लेकिन भारत का आकार, स्थिरता, तकनीकी क्षमता और वैश्विक प्रतिष्ठा उसे इस परिवर्तन का अग्रदूत बनाती है।