क्या ईसीआई और भाजपा मतदाता सूची से लोगों के नाम काटकर वोट चुरा रही हैं?
सारांश
Key Takeaways
- भाजपा और ईसीआई पर गंभीर आरोप लगे हैं।
- लोकतंत्र की मजबूती के लिए वोटिंग अधिकारों का सम्मान आवश्यक है।
- अखिलेश यादव ने एसआईआर के कारण उत्पन्न चिंताओं पर प्रकाश डाला।
नई दिल्ली, 1 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। एसआईआर को लेकर विवाद खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। संसद के शीतकालीन सत्र के पहले दिन समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने ईसीआई और भाजपा पर बड़े पैमाने पर मतदाता सूची से नाम हटाने, गड़बड़ियों और वोट चोरी की कोशिशों का आरोप लगाया है।
अखिलेश यादव ने पत्रकारों से बातचीत में कहा, “देश की आजादी के बाद, हमें वोट डालने का अधिकार दिया गया था। जब से उत्तर प्रदेश के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की सीट कम आई है, भाजपा के अंदर बेचैनी है। लोकतंत्र तभी मजबूत होगा जब हमारे वोट देने के अधिकार का पूरी तरह सम्मान किया जाएगा और उसे छीना नहीं जाएगा। एसआईआर को लेकर चिंताएं अब हकीकत बन रही हैं। यदि किसी वोटर का वोट चला जाएगा, तो उसके सपने कैसे पूरे होंगे?”
उन्होंने कहा, “एक वोटर का सपना होता है कि उसका वोट गिना जाए। जब वे अपने वोट देने के अधिकार का पूरी तरह इस्तेमाल करते हैं, तो वे अपने सपने पूरे कर रहे होते हैं। यदि वे किसी से नाराज होते हैं, तो वे उसके खिलाफ वोट देते हैं, और यदि वे किसी का समर्थन करते हैं, तो वे उसके पक्ष में वोट देते हैं। लेकिन भाजपा सरकार यह अधिकार भी छीन रही है।”
अखिलेश यादव ने कहा कि संसद में भाजपा से मुकाबला कोई नहीं कर सकता है। हमें सूचना मिली है कि उत्तर प्रदेश में जिस भी बूथों से भाजपा हारी है, उस पर विशेष निगरानी की जा रही है। देश में एसआईआर वोट काटने के लिए कराया जा रहा है। इससे देश में वोट बढ़ने वाला नहीं है। भारतीय निर्वाचन आयोग अपने काम को नहीं कर रही है।
उन्होंने कहा कि बूथ लेवल ऑफिसर (बीएलओ) अपने परिवार वालों के साथ होते हैं। उनका पूरा परिवार उनकी मदद में लगा होता है। यदि नई पीढ़ी का कोई नौजवान है जो प्रौद्योगिकी समझता है, तो मैंने ऐसे भी केस देखे हैं कि बेंगलुरु में काम करने वाले किसी ने अपनी मां की मदद करने के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी।”
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा कि उनका काम सिर्फ एसआईआर के लिए फॉर्म भरना होता है। एसआईआर लागू होना चाहिए ताकि लोकतंत्र मजबूत हो, हर कोई मददगार बने, और किसी का वोट न जाए। यह जिम्मेदारी भारतीय निर्वाचन आयोग की है। लेकिन, भाजपा ने जानबूझकर ऐसी तारीखें चुनी हैं जो उस समय से मेल खाती हैं जब सबसे ज्यादा शादियां होती हैं।”