क्या अनंत वासुदेव मंदिर में प्राचीन पद्धति से महाप्रसाद का निर्माण होता है?
सारांश
Key Takeaways
- अनंत वासुदेव मंदिर ओडिशा का एक प्रमुख धार्मिक स्थल है।
- यहां का महाप्रसाद प्राचीन पद्धति से तैयार किया जाता है।
- महाभारत से जुड़ी धार्मिक मान्यताएं यहां की पूजा का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।
- मंदिर की वास्तुकला अद्वितीय और प्राचीन है।
- यह मंदिर भक्तों को गहरी भक्ति भावना से जोड़ता है।
भुवनेश्वर, 19 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। भगवान विष्णु को समर्पित देश भर में कई अद्भुत मंदिर हैं, जो उनके विभिन्न रूपों का प्रतिनिधित्व करते हैं। ओडिशा के भुवनेश्वर में स्थित अनंत वासुदेव मंदिर भगवान विष्णु के प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है, जहां का प्रसाद श्री जगन्नाथ मंदिर की भांति पवित्र माना जाता है। इस मंदिर की रसोई में महाप्रसाद को प्राचीन पद्धति से और पूर्ण आस्था के साथ तैयार किया जाता है।
भुवनेश्वर में बिंदु सरोवर झील के किनारे स्थित यह अनंत वासुदेव मंदिर अपनी अनोखी वास्तुकला और इतिहास के लिए प्रसिद्ध है।
महाप्रसाद की परंपरा कुछ चुनिंदा मंदिरों में ही पाई जाती है, जिसमें अनंत वासुदेव मंदिर शामिल है। पहले पुजारी भगवान अनंत वासुदेव को फलों का भोग अर्पित करते हैं और फिर 56 भोगों से एक विशेष प्रसाद तैयार करते हैं, जिसे मिट्टी के बर्तन में उपलों की आग पर पकाया जाता है।
महाप्रसाद में चावल, विभिन्न सब्जियां, नारियल, दालें और मसाले शामिल होते हैं, लेकिन लहसुन, प्याज और टमाटर का उपयोग नहीं किया जाता है। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। इस पवित्र प्रसाद का भोग पहले भगवान को समर्पित किया जाता है और फिर भक्तों में वितरित किया जाता है।
मंदिर में भगवान विष्णु की प्रतिमा भी अद्वितीय है। प्रतिमा के दाएं हाथ में सुदर्शन चक्र है। कहा जाता है कि महाभारत युद्ध के दौरान भगवान श्रीकृष्ण ने शस्त्र न उठाने का संकल्प लिया था, लेकिन अर्जुन की रक्षा के लिए उन्होंने सुदर्शन चक्र धारण किया था। अनंत वासुदेव मंदिर में भगवान विष्णु इसी रूप में विराजमान हैं और उग्रता व दया दोनों के प्रतीक हैं।
मंदिर की वास्तुकला और शैली प्राचीन है। इसका गोपुरम बहुत विशाल है, जिसमें कई देवी-देवताओं की मूर्तियां अंकित हैं। शिखर पर सुंदर कलाकृतियां भी बनी हैं। इसे देखकर भक्तिभाव में डूब जाना स्वाभाविक है।
मंदिर के गर्भगृह में भगवान विष्णु के साथ-साथ भगवान बलराम और देवी सुभद्रा की पूजा होती है। इसे दूसरा जगन्नाथ मंदिर भी कहा जाता है, क्योंकि दोनों मंदिरों में महाप्रसाद बनाने की परंपरा आज भी कायम है।