क्या हम सभी को गरीबी उन्मूलन के लिए आगे आना चाहिए?

सारांश
Key Takeaways
- गरीबी केवल धन की कमी नहीं है।
- यह मानवाधिकारों का उल्लंघन है।
- सामाजिक दृष्टिकोण में बदलाव की आवश्यकता है।
- हमें सामाजिक न्याय के लिए एकजुट होना चाहिए।
- गरीबों के साथ एकजुटता दिखाना महत्वपूर्ण है।
नई दिल्ली, १६ अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। हर वर्ष १७ अक्टूबर को पूरी दुनिया अंतरराष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन दिवस मनाती है। इस दिन का उद्देश्य यह है कि हम सभी को यह याद दिलाया जाए कि गरीबी केवल धन की कमी नहीं है, बल्कि यह इंसान की गरिमा, अधिकार और अवसरों से जुड़ी एक गहरी समस्या है।
विशेषकर विकासशील देशों में आज भी करोड़ों लोग ऐसे हैं, जो दो वक्त की रोटी, साफ पानी और शिक्षा जैसी बुनियादी आवश्यकताओं से वंचित हैं।
इस दिन की शुरुआत १७ अक्टूबर १९८७ को हुई थी, जब पेरिस के ट्रोकाडेरो में करीब एक लाख लोग एकत्र हुए थे। इन लोगों ने गरीबी, हिंसा और भूख से पीड़ित लोगों को सम्मान देने और यह घोषित करने के लिए एकजुटता दिखाई कि गरीबी मानवाधिकारों का उल्लंघन है।
बाद में, १९९२ में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने इसे आधिकारिक तौर पर मान्यता दी और तय किया कि हर साल यह दिन गरीबों के साथ एकजुटता और गरीबी मिटाने के संकल्प के रूप में मनाया जाएगा।
गरीबी में जी रहे लोग अक्सर कई तरह के छिपे हुए अत्याचार झेलते हैं। उन्हें समाज में कमतर समझा जाता है, उनके पहनावे, बोलचाल या रहने की जगह को लेकर मजाक उड़ाया जाता है। कई बार उन्हें उनकी हालत के लिए खुद जिम्मेदार ठहराया जाता है, जिससे वे और भी ज्यादा अलग-थलग हो जाते हैं।
यही सामाजिक दुर्व्यवहार आगे चलकर संस्थागत दुर्व्यवहार बन जाता है, जब नीतियों और व्यवस्थाओं में पक्षपात दिखता है और गरीबों को शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास या न्याय तक बराबर पहुंच नहीं मिलती।
गरीबी उन्मूलन दिवस हमें यही सोचने पर मजबूर करती है कि गरीबी खत्म करने के लिए हमें सिर्फ आर्थिक नीतियों पर नहीं, बल्कि समाज के नजरिए और सरकारी ढांचे में मौजूद असमानता को भी बदलना होगा।
अगर हम सच में एक न्यायपूर्ण और शांतिपूर्ण समाज चाहते हैं, तो हमें हर उस व्यक्ति के साथ खड़ा होना होगा, जिसे समाज ने पीछे छोड़ दिया है।