क्या अर्टाबल्लाभा मोहंती साहित्य, समाज और चेतना के सूत्रधार थे जिन्होंने उड़िया साहित्य को दी पहचान?

सारांश
Key Takeaways
- उड़िया साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान
- सामाजिक चेतना को जागृत करने वाले विचार
- आधुनिक दृष्टिकोण प्रदान करने वाली रचनाएं
- सांस्कृतिक गौरव को बढ़ावा देने वाले साहित्य
- नई पीढ़ी के लेखकों के लिए प्रेरणा का स्रोत
नई दिल्ली, 29 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। अर्टाबल्लाभा मोहंती एक अद्वितीय साहित्यकार थे, जिन्होंने अपनी लेखनी के माध्यम से उड़िया साहित्य को न केवल समृद्ध किया बल्कि सामाजिक चेतना को भी जागृत किया। उनकी रचनाएं आज भी उड़िया साहित्य के स्वर्णिम इतिहास का अभिन्न हिस्सा बनी हुई हैं।
अर्टाबल्लाभा मोहंती का जन्म 30 जुलाई 1887 को ओडिशा के कटक में हुआ। उनकी शिक्षा एक ऐसे वातावरण में हुई जहां साहित्य और संस्कृति को महत्वपूर्ण माना जाता था। उन्होंने अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद साहित्यिक और शैक्षणिक क्षेत्र में कदम रखा।
मोहंती न केवल एक लेखक थे, बल्कि एक प्रखर चिंतक और शिक्षाविद् भी थे, जिन्होंने उड़िया भाषा और साहित्य के विकास के लिए काफी योगदान दिया। उन्होंने कविता, निबंध, और व्यंग्य साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किए। उनकी रचनाओं में सामाजिक कुरीतियों, मानवीय संवेदनाओं, और उड़िया संस्कृति का अद्भुत चित्रण देखने को मिलता है।
मोहंती ने अपने साहित्य के माध्यम से उड़िया समाज में जागरूकता फैलाने का प्रयास किया। उनकी रचनाओं में सामाजिक सुधार, शिक्षा, और सांस्कृतिक गौरव को बढ़ावा देने का संदेश प्रमुखता से मिलता है। मोहंती ने उड़िया साहित्य को एक आधुनिक दृष्टिकोण प्रदान करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे यह समकालीन विषयों के साथ प्रासंगिक बना रहा।
ब्रिटिश सरकार ने एक शिक्षाविद् और विद्वान के रूप में उनकी सेवाओं की सराहना की और उन्हें 1931 में राय साहिब और 1943 में राय बहादुर की उपाधि दी। इसके अलावा, उनके साहित्यिक और सामाजिक योगदान के लिए भारत सरकार ने 1960 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया।
अर्टाबल्लाभा मोहंती का निधन 1969 में हुआ। उनकी रचनाएं आज भी उड़िया साहित्य में जीवित हैं और नई पीढ़ी के लेखकों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी हुई हैं। उनकी विद्वता, व्यंग्य की गहराई, और सामाजिक दृष्टिकोण ने उन्हें उड़िया साहित्य के इतिहास में अमर बना दिया है।