क्या हैं हौसले बुलंद, बेमिसाल एवरेस्ट फतह करने वालीं अरुणिमा सिन्हा की कहानी?

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क्या हैं हौसले बुलंद, बेमिसाल एवरेस्ट फतह करने वालीं अरुणिमा सिन्हा की कहानी?

सारांश

अरुणिमा सिन्हा की प्रेरणादायक यात्रा एक सच्चे साहस की कहानी है। जानिए कैसे उन्होंने अपने दर्द को ताकत बना कर एवरेस्ट पर चढ़ाई की। यह कहानी है उन लोगों के लिए जो मुश्किलों में हार नहीं मानते।

Key Takeaways

  • दृढ़ निश्चय
  • साहस
  • आत्मविश्वास
  • कठिनाइयों का सामना
  • प्रेरणा स्रोत

नई दिल्ली, 19 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली भारतीय दिव्यांग खिलाड़ी अरुणिमा सिन्हा का 20 जुलाई को जन्मदिन है। अरुणिमा सिन्हा की कहानी केवल एक पर्वतारोही की विजय गाथा नहीं है, बल्कि यह दृढ़ निश्चय, साहस और आत्मविश्वास की एक ऐसी अद्भुत मिसाल है, जो हम सभी को यह सिखाती है कि हालात चाहे कितने भी कठिन क्यों न हों, अगर इरादे मजबूत हों तो कोई भी लक्ष्य नामुमकिन नहीं होता। उन्होंने अपनी सबसे बड़ी कमजोरी को अपनी सबसे बड़ी ताकत बना लिया और दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी को फतह किया। आज अरुणिमा लाखों लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।

अरुणिमा सिन्हा का जन्म 20 जुलाई 1989 को उत्तर प्रदेश के अंबेडकरनगर जिले के पंडाटोला मोहल्ले में हुआ था। बचपन से ही उन्हें खेल-कूद में गहरी रुचि रही और वह राष्ट्रीय स्तर पर वॉलीबॉल की खिलाड़ी थीं। लेकिन, अरुणिमा की जिंदगी में एक दर्दनाक मोड़ तब आया जब अप्रैल 2011 में वह लखनऊ से दिल्ली की यात्रा कर रही थीं। एक सोने की चेन के लिए कुछ बदमाशों ने उन्हें चलती ट्रेन से फेंक दिया।

इस हादसे में उनके दोनों पैर बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए थे और डॉक्टरों को मजबूरन उनका एक पैर काटना पड़ा। उनकी जगह कृत्रिम पैर लगाया गया। इस दर्दनाक हादसे ने अरुणिमा का हौसला तोड़ने के बजाय उन्हें और मजबूत कर दिया। कुछ ही महीनों में जब उनकी तबीयत में सुधार हुआ, तो उन्होंने एक ऐसा निर्णय लिया जिसने पूरी दुनिया को चौंका दिया। उन्होंने माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई करने का संकल्प लिया।

सिर्फ दो साल के भीतर, 2013 में अरुणिमा सिन्हा ने दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई कर इतिहास रच दिया। वह दुनिया की पहली दिव्यांग महिला बनीं, जिसने एवरेस्ट फतह किया। इस कठिन यात्रा के दौरान उनके कृत्रिम पैर से खून बहता रहा, वे बार-बार गिरीं, लेकिन हर बार उठीं और आगे बढ़ती रहीं।

अरुणिमा का सफर यहीं नहीं रुका। एवरेस्ट के बाद उन्होंने पांच अन्य महाद्वीपों की सर्वोच्च चोटियों में शामिल माउंट किलिमंजारो (अफ्रीका), माउंट कोजिअस्को (ऑस्ट्रेलिया), माउंट अकोंकागुआ (दक्षिण अमेरिका), कार्स्टेन्ज पिरामिड (इंडोनेशिया) और माउंट एल्ब्रुस (यूरोप) पर भी चढ़ाई की। यही नहीं, उन्होंने अंटार्कटिका के सबसे ऊंचे शिखर माउंट विन्सन पर भी तिरंगा फहराया। अरुणिमा सिन्हा का यह पूरा सफर उनके धैर्य, दृढ़ता और विश्वास की कहानी को दर्शाता है।

Point of View

मेरा नजरिया है कि अरुणिमा सिन्हा की कहानी न केवल एक व्यक्तिगत विजय है, बल्कि यह समाज के लिए भी एक प्रेरणा है। यह हमें सिखाता है कि संघर्ष और आत्मविश्वास से हम किसी भी चुनौती का सामना कर सकते हैं। पूरे देश को उनकी उपलब्धियों पर गर्व है।
NationPress
19/07/2025

Frequently Asked Questions

अरुणिमा सिन्हा ने कब एवरेस्ट फतह किया?
अरुणिमा सिन्हा ने 2013 में माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई कर इतिहास रच दिया।
अरुणिमा का जन्म कब हुआ?
अरुणिमा सिन्हा का जन्म 20 जुलाई 1989 को हुआ।
वे किस खेल की खिलाड़ी थीं?
वे एक राष्ट्रीय स्तर की वॉलीबॉल खिलाड़ी थीं।
उन्होंने कितनी चोटियों पर चढ़ाई की है?
उन्होंने पांच अन्य महाद्वीपों की चोटियों पर भी चढ़ाई की है।
क्या अरुणिमा दिव्यांग हैं?
जी हां, वे एक दिव्यांग खिलाड़ी हैं, जिन्होंने अपने हौसले से सभी बाधाओं को पार किया।