क्या औरंगाबाद विधानसभा का समीकरण 2020 में कांग्रेस की जीत के बाद बदल गया है?

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क्या औरंगाबाद विधानसभा का समीकरण 2020 में कांग्रेस की जीत के बाद बदल गया है?

सारांश

दक्षिणी बिहार का औरंगाबाद विधानसभा क्षेत्र ऐतिहासिक और राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। 2020 में कांग्रेस ने महज 2,243 वोटों के अंतर से जीत हासिल की, जिससे यह सिद्ध हुआ कि यह सीट अब किसी एक दल का गढ़ नहीं रह गई है। 2024 के चुनावों में नए समीकरण देखने को मिल सकते हैं।

Key Takeaways

  • औरंगाबाद की सीट अब किसी एक दल का गढ़ नहीं है।
  • कांग्रेस ने 2020 में बहुत कम अंतर से जीत हासिल की।
  • राजद के अभय कुशवाहा ने इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  • यहाँ की कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था भविष्य में रोजगार के नए अवसर प्रदान कर सकती है।
  • स्थानीय मुद्दों का समाधान राजनीतिक दलों के लिए चुनौती बन गया है।

पटना, 30 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। दक्षिणी बिहार का औरंगाबाद केवल एक जिला मुख्यालय नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा क्षेत्र है, जो सदियों की ऐतिहासिक विरासत और आधुनिक राजनीतिक उठापटक को अपने में समेटे हुए है। 2020 के विधानसभा चुनाव में महज 2,243 वोटों के अंतर ने यह सिद्ध कर दिया कि यह सीट अब किसी एक राजनीतिक दल का 'पक्का गढ़' नहीं रह गई है।

औरंगाबाद विधानसभा सीट को लंबे समय से राजपूत मतदाताओं का मजबूत आधार माना जाता रहा है। कुल मतदाताओं में 22 प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी रखने वाला यह समुदाय हमेशा से राजपूत उम्मीदवारों का समर्थन करता रहा है।

1951 में सीट की स्थापना के बाद, शुरुआती चुनावों में कांग्रेस का दबदबा रहा, जिसने आठ बार जीत हासिल की, जबकि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने चार बार जीत दर्ज कर अपनी मजबूत उपस्थिति स्थापित की।

2000 में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की जीत ने इस राजनीतिक समीकरण को बदल दिया। यह पहला अवसर था जब किसी गैर-राजपूत उम्मीदवार ने जीत हासिल की। हाल ही में, 2024 के लोकसभा चुनाव में, राजद के अभय कुशवाहा इस सीट से जीतने वाले पहले गैर-राजपूत और पहले राजद सांसद बने, जो इस बात का संकेत है कि अब केवल जाति नहीं, बल्कि दलगत गठबंधन और उम्मीदवार की छवि भी निर्णायक भूमिका निभा रही है।

2020 के विधानसभा चुनाव ने औरंगाबाद को एक हाई-प्रोफाइल और कांटे की टक्कर वाली सीट बना दिया। इंडियन नेशनल कांग्रेस के उम्मीदवार आनंद शंकर सिंह ने भाजपा के चार बार के विधायक रामाधार सिंह को काफी कम अंतर से मात दी।

2015 में भी आनंद शंकर सिंह ने जीत दर्ज की थी, लेकिन 2020 में जीत का अंतर बहुत कम होने से यह संकेत मिलता है कि कांग्रेस की पकड़ मजबूत होने के बावजूद, भाजपा एक प्रबल दावेदार बनी हुई है।

औरंगाबाद की राजनीति को प्रभावित करने वाले प्रमुख मुद्दे ग्रामीण विकास से जुड़े हैं, जिनमें सड़क, बिजली, पानी और सिंचाई शामिल हैं। इसके अलावा, ग्रामीण स्वास्थ्य और शिक्षा की खराब स्थिति, बेरोजगारी और पलायन, तथा कानून-व्यवस्था भी स्थानीय एजेंडे में शीर्ष पर रहते हैं।

दशकों से औरंगाबाद ने नक्सली गतिविधियों का दंश भी झेला है। हालांकि, बीते पांच वर्षों में बिहार में माओवादी घटनाओं में गिरावट आई है। राज्य सरकार ने 2025 के अंत तक इस उग्रवाद को पूरी तरह खत्म करने का लक्ष्य रखा है।

औरंगाबाद विधानसभा, औरंगाबाद लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है, जिसमें कुल छह विधानसभा सीटें हैं। इस विधानसभा क्षेत्र की जनसांख्यिकी भी काफी विविध है। यहां 21.64 प्रतिशत अनुसूचित जातियां और लगभग 19 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं। 2020 के चुनाव में 3,17,947 पंजीकृत मतदाताओं में से 53.49 प्रतिशत ने मतदान किया था।

आज, इस क्षेत्र की पहचान इसकी कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था से है। अदरी नदी यहां से बहती है, जबकि सोन नदी इसकी पश्चिमी सीमा को छूती है। बार-बार सूखे की चुनौती के बावजूद, किसान यहां चावल, गेहूं, दालें और सरसों जैसी मुख्य फसलें उगाते हैं। पारंपरिक कलाओं, जैसे कालीन बुनाई और पीतल शिल्प काफी प्रसिद्ध हैं। नवीनगर सुपर थर्मल पावर प्लांट ने औद्योगिक विकास को नई गति दी है, जिसने रोजगार के नए द्वार खोले हैं। स्ट्रॉबेरी की खेती की अप्रत्याशित सफलता ने भी किसानों को आय का एक नया स्रोत दिया है।

Point of View

औरंगाबाद की राजनीतिक तस्वीर में जाति और पार्टी के समीकरणों के अलावा मुद्दों की भूमिका भी महत्वपूर्ण है। यहाँ के मतदाता अब केवल पारंपरिक धारणाओं से नहीं बंधे हैं, बल्कि विकास और बदलाव की ओर भी देख रहे हैं।
NationPress
31/12/2025

Frequently Asked Questions

औरंगाबाद विधानसभा सीट का इतिहास क्या है?
औरंगाबाद विधानसभा सीट की स्थापना 1951 में हुई थी और तब से यह विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच संघर्ष का मैदान बनी हुई है।
2020 के चुनावों में कौन जीते थे?
2020 के विधानसभा चुनावों में इंडियन नेशनल कांग्रेस के उम्मीदवार आनंद शंकर सिंह ने जीत हासिल की थी।
औरंगाबाद की प्रमुख समस्याएँ क्या हैं?
यहाँ की प्रमुख समस्याओं में सड़क, बिजली, पानी, स्वास्थ्य सेवाएँ, और बेरोजगारी शामिल हैं।
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