क्या बायसी विधानसभा चुनाव में बाढ़ और विकास की चुनौतियाँ जीत को प्रभावित करेंगी?

सारांश
Key Takeaways
- बाढ़ एक प्रमुख चुनौती है जो विकास को रोक रही है।
- पलायन यहाँ की एक गंभीर समस्या है।
- राजनीतिक समीकरणों में हिंदू और मुस्लिम मतदाताओं की भूमिका महत्वपूर्ण है।
- पिछले चुनावों में कई बार सत्ता का समीकरण बदला है।
- आगामी चुनाव में सिर्फ मुद्दों पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
पटना, 8 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। बिहार की राजनीति में सीमांचल का पूर्णिया जिला स्थित बायसी विधानसभा सीट एक विशेष पहचान रखती है। यह पूरी तरह से ग्रामीण क्षेत्र है और कनकई एवं परमान नदी से घिरा हुआ है। हर साल मानसून में आने वाली बाढ़ यहाँ की सबसे बड़ी चुनौती बनती है, जिसने दशकों से स्थानीय विकास को बाधित कर रखा है।
यहाँ के लोगों की मुख्य पहचान पलायन, बेरोजगारी, और खेती-किसानी पर निर्भर आजीविका है। बाढ़ का दंश झेलते हुए बायसी की जनता अब भी समाधान की खोज में है। इस क्षेत्र ने अब तक तरक्की की कोई तस्वीर नहीं देखी है, और पलायन भी यहाँ की एक प्रमुख समस्या बनी हुई है।
यह सीट बिहार की मुस्लिम बहुल सीटों में से एक मानी जाती है, लेकिन यहाँ के हिंदू मतदाता हार-जीत का पासा पलटने की ताकत रखते हैं। आमतौर पर सभी दल मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारते हैं, जिससे मुस्लिम वोटों का बंटवारा होता है और इस स्थिति में हिंदू वोट निर्णायक बन जाते हैं।
राजनीतिक इतिहास पर नजर डालें तो पिछले पाँच चुनावों में सत्ता का समीकरण कई बार बदला है। फरवरी 2005 में आरजेडी के अब्दुल सुबहान, अक्टूबर 2005 में निर्दलीय सैयद रुकनुद्दीन, 2010 में बीजेपी के संतोष कुमार, 2015 में फिर अब्दुल सुबहान (आरजेडी), और 2020 में एआईएमआईएम के सैयद रुकनुद्दीन ने जीत दर्ज की। रुकनुद्दीन 2020 में एआईएमआईएम के टिकट पर विजयी रहे, लेकिन 2022 में उन्होंने पार्टी छोड़कर आरजेडी का दामन थाम लिया। पिछले चुनाव में 12 उम्मीदवार मैदान में थे, लेकिन तीन को छोड़कर सभी की जमानत जब्त हो गई थी।
बायसी विधानसभा सीट का इतिहास बेहद विविध रहा है। 1951 और 1957 में कांग्रेस के अब्दुल अहद मोहम्मद नूर लगातार दो बार विधायक बने। 1962 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के हसीबउर रहमान ने जीत हासिल की और वे भी दो बार विधायक रहे। अब्दुस सुबहान इस सीट से पाँच बार विधायक रहे, जिन्होंने आखिरी बार 2015 में आरजेडी के टिकट पर जीत दर्ज की।
पार्टीवार देखें तो कांग्रेस ने चार बार, आरजेडी ने तीन बार और निर्दलीय उम्मीदवारों ने दो बार जीत हासिल की। प्रजा सोशलिस्ट पार्टी, जनता दल, लोकदल, एआईएमआईएम और बीजेपी ने एक-एक बार जीत दर्ज की, लेकिन जेडीयू को अब तक इस सीट पर जीत नहीं मिली है।
2024 के आंकड़ों के अनुसार (ईसीआई), अमौर विधानसभा क्षेत्र की अनुमानित जनसंख्या 545249 है, जिनमें 280052 पुरुष और 265197 महिलाएं शामिल हैं। इस सीट पर कुल 324576 मतदाता हैं, जिनमें 168179 पुरुष, 156384 महिलाएं और 13 थर्ड जेंडर हैं।
2025 के चुनाव में यहाँ मुकाबला रोचक होने वाला है। एक ओर आरजेडी के साथ सैयद रुकनुद्दीन का अनुभव और पहचान होगी, तो दूसरी ओर बीजेपी, कांग्रेस और एआईएमआईएम जैसे दल अपने-अपने समीकरण साधने का प्रयास करेंगे। मुस्लिम वोटों का बंटवारा और हिंदू मतदाताओं की भूमिका यहाँ फिर से निर्णायक बन सकती है। जनता के मन में बाढ़, पलायन और विकास जैसे मुद्दे अब भी जीवित हैं, और यही तय करेगा कि इस बार बायसी में बाजी किसके हाथ लगेगी।