क्या यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के पूर्व शाखा प्रबंधक को बैंक धोखाधड़ी मामले में सजा सुनाई गई?

सारांश
Key Takeaways
- मनोज श्रीवास्तव को बैंक धोखाधड़ी के मामले में चार साल की कैद की सजा हुई।
- सीबीआई ने इस मामले की जांच 14 दिसंबर 2010 को शुरू की थी।
- बैंक को आर्थिक हानि पहुँचाने के लिए फर्जी दस्तावेजों का उपयोग किया गया था।
- यह मामला 15 वर्षों बाद अपने निष्कर्ष पर पहुँच गया।
- अदालत ने दोष स्वीकारोक्ति के आधार पर सजा का निर्णय लिया।
गाजियाबाद, 18 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) की विशेष अदालत ने बैंक धोखाधड़ी के मामले में यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के पूर्व शाखा प्रबंधक को सजा सुनाई है। गाजियाबाद की अदालत ने शनिवार को यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, लघु उद्योग शाखा (नोएडा) के शाखा प्रबंधक मनोज श्रीवास्तव को इस मामले में चार वर्ष की कैद और 30 हजार रुपए के जुर्माने की सजा दी।
सीबीआई द्वारा दर्ज की गई एफआईआर के अनुसार, यह मामला वर्ष 2007 से 2009 के बीच का है। इस अवधि में मनोज श्रीवास्तव यूनियन बैंक ऑफ इंडिया की एसएसआई शाखा, नोएडा में कार्यरत थे। उन पर आरोप था कि उन्होंने अपने आधिकारिक पद का दुरुपयोग करते हुए, अन्य व्यक्तियों के साथ मिलकर फर्जी और जाली दस्तावेजों के आधार पर ऋण स्वीकृत किए और वितरित किए, जिससे बैंक को आर्थिक हानि हुई।
इस मामले में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने 14 दिसंबर 2010 को मनोज श्रीवास्तव और अन्य के खिलाफ मामला दर्ज किया। सीबीआई ने जांच पूरी करने के बाद 29 सितंबर 2012 को अदालत में आरोप पत्र प्रस्तुत किया।
आरोपी मनोज श्रीवास्तव ने मुकदमे की सुनवाई के दौरान विशेष न्यायाधीश (सीबीआई भ्रष्टाचार निरोधक) की अदालत में दोष स्वीकार करने की याचिका (गिल्टी प्ली) दायर की। उन्होंने अदालत के समक्ष अपने अपराध को स्वीकार किया।
अदालत ने शनिवार को अपने निर्णय में आरोपी की दोष स्वीकारोक्ति को ध्यान में रखते हुए उसे दोषी ठहराया और चार वर्ष के कठोर कारावास के साथ 30 हजार रुपए का जुर्माना लगाने का आदेश दिया। यह मामला लगभग 15 वर्षों बाद अपने निष्कर्ष पर पहुंचा है।
इससे पहले, सीबीआई ने जम्मू में एक सेक्शन अधिकारी को 80 हजार रुपए की रिश्वत के मामले में गिरफ्तार किया था। यह अधिकारी जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख फाइनेंस कॉर्पोरेशन (जेकेएलएफसी) के कानूनी विभाग में तैनात था।