क्या बसवराज राजगुरु ने 'हिंदुस्तानी संगीत' को नई ऊँचाई दी?

सारांश
Key Takeaways
- पंडित बसवराज राजगुरु का जन्म 24 अगस्त 1917 को हुआ था।
- उन्होंने कई महान गुरुओं से संगीत सीखा।
- उनकी गायकी में किराना, ग्वालियर और आगरा घरानों की विशेषताएं थीं।
- उन्हें 1975 में पद्मश्री और 1991 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।
- बसवराज राजगुरु ने अपने जीवन में संगीत को नई ऊंचाई दी।
नई दिल्ली, 23 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में कुछ ऐसी महान हस्तियां रही हैं, जिन्होंने अपनी कला से न केवल संगीत की दुनिया को समृद्ध किया, बल्कि इसे नई ऊंचाइयों पर पहुंचाने का कार्य किया। उनमें से एक हैं पंडित बसवराज राजगुरु, जो एक प्रतिभाशाली शास्त्रीय गायक थे। उनकी गायकी में किराना, ग्वालियर और आगरा घरानों की विशेषताओं का अद्वितीय समन्वय देखने को मिलता है, जिसने उन्हें संगीत प्रेमियों के बीच अमर बना दिया।
'हिंदुस्तानी संगीत के राजा' के नाम से मशहूर पंडित बसवराज राजगुरु का जन्म 24 अगस्त 1917 को उत्तर कर्नाटक के धारवाड में हुआ था। वे विद्वानों, ज्योतिषियों और संगीतकारों के परिवार से संबंध रखते थे, जिससे उनकी संगीत में रुचि बढ़ी। उनके पिता, महंतस्वामी, कर्नाटक के एक प्रसिद्ध संगीतकार थे, जिन्होंने बसवराज को कम उम्र में ही संगीत की शिक्षा देना आरंभ किया।
बसवराज को बचपन से ही संगीत के प्रति गहरा लगाव था। कहा जाता है कि 11 साल की उम्र में वे नाटक मंडली में शामिल हुए और बाल नट के रूप में गायन शुरू किया। जब उनकी उम्र 13 साल थी, तो उनके सिर से पिता का साया उठ गया, लेकिन इसके बावजूद उनकी संगीत शिक्षा में कोई बाधा नहीं आई और उनके चाचा ने उनकी संगीत शिक्षा को आगे बढ़ाने में मदद की।
1936 में पंचाक्षरी गवई ने बसवराज को अपने शिष्य के रूप में स्वीकार किया। उनके मार्गदर्शन में बसवराज ने संगीत की बारीकियां सीखी। अपने गुरु के निधन के बाद भी बसवराज ने अपनी संगीत साधना को जारी रखा और उन्होंने कई महान गुरुओं से संगीत सीखा, जिनमें सवाई गंधर्व, सुरेशबाबू माने, उस्ताद वहीद खान और उस्ताद लतीफ खान शामिल थे।
बसवराज की गायकी में किराना, ग्वालियर, और आगरा घरानों की विशेषताएं स्पष्ट रूप से देखने को मिलती थीं। उनकी शैली में किराना घराने की मधुरता, ग्वालियर का रागमाधुर्य, और आगरा की बोल-तान की विशेषता थी। कहा जाता है कि बसवराज लगभग आठ से अधिक भाषाओं में गा सकते थे, जो उनके संगीत के प्रति प्रेम को दर्शाता है। इस कारण 1940
पंडित बसवराज राजगुरु अपनी संगीत साधना और समारोहों के प्रति इतने समर्पित थे कि वे छोटी-छोटी बातों का भी ध्यान रखते थे। संगीत समारोहों के लिए यात्रा करते समय वे धारवाड़ से पीने का पानी साथ लाने का खास ख्याल रखते थे ताकि उनकी सेहत और गायन पर कोई असर न पड़े।
इसके अलावा, 1947
इस सुरसाधक को 1975 में पद्मश्री और 1991 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। 21 जुलाई 1991