क्या बेगम अख्तर: मल्लिका-ए-गजल ने अपने दर्द को गज़लों में बयां किया?

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क्या बेगम अख्तर: मल्लिका-ए-गजल ने अपने दर्द को गज़लों में बयां किया?

सारांश

क्या बेगम अख्तर ने अपने जीवन के दर्द को गज़लों में बयां किया? आइए जानते हैं उनकी अनकही कहानियों और अद्भुत गायकी के बारे में। उनकी गज़लें आज भी दिल को छू जाती हैं।

Key Takeaways

  • बेगम अख्तर की गज़लें आज भी लोगों को भावुक करती हैं।
  • उनकी आवाज़ में गहराई और दर्द का अनुभव होता है।
  • उन्होंने अपने जीवन के अनुभवों को अपनी गज़लों में बखूबी बयां किया।
  • बेगम अख्तर का संगीत प्रेम आज भी जीवित है।
  • उनकी गज़लें सुनकर दर्शक कई बार सन्नाटे में खो जाते थे।

नई दिल्ली, 29 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। आंखों से बहते आंसू अक्सर यह दर्शाते हैं कि गायक ने अपनी संगीत से सामने वाले के दिल में एक खास जगह बना ली है। गाने वाले तो बहुत हैं, लेकिन ऐसा कौन होगा जो मोहब्बत के दर्द को अपनी गायकी से इतनी गहराई से समझा सके। हम यहां मल्लिका-ए-गजल के नाम से प्रसिद्ध बेगम अख्तर की चर्चा कर रहे हैं, जिनकी गज़लें और गीत करोड़ों दिलों में जीवित हैं।

बेगम अख्तर 30 अक्टूबर 1974 को इस दुनिया को अलविदा कह गई थीं। लोग उन्हें मल्लिका-ए-गजल कहते हैं, लेकिन वास्तव में उन्होंने उस दर्द को जिया और समझा जो जीवन ने उन्हें दिया। इसीलिए जब वे मंच पर ‘ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया’ गाती थीं, तो दर्शकों की आंखों से आंसू बहने लगते थे। सभी कहते, “वाह, गज़ल की मल्लिका, क्या अद्भुत गाया।”

वे गज़ल की दुनिया में एक अनोखा नाम थीं, जिनकी आवाज सुनकर दिल की गहराइयों से आंसू बह निकलते हैं।

7 अक्टूबर 1914 को फैजाबाद में जन्मी अख्तरी बाई फैजाबादी, जिन्हें बाद में बेगम अख्तर के नाम से जाना गया, उनकी गज़लों में आज भी संगीत प्रेमी खो जाते हैं। उनकी एक आइकॉनिक गज़लऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया’ की याद हमें सोचने पर मजबूर कर देती है कि क्या मोहब्बत का यह दर्द कभी कम होता है।

बेगम अख्तर के बारे में उर्दू के महान शायर कैफी आजमी ने कहा था, 'गज़ल के दो मायने होते हैं - पहला गज़ल और दूसरा बेगम अख्तर।'

बेगम अख्तर की आवाज मखमली और जादुई थी। उनका पूरा जीवन दुखों में गुजरा। उनके दुख इतने गहरे थे कि वे उनकी आवाज का अभिन्न हिस्सा बन गए।

उनकी एक शिष्या बताती हैं कि जब भी उनका जिक्र आता है, तो हमें लखनऊ से फैजाबाद की ओर यात्रा करनी पड़ती है। बेगम अख्तर ने कम उम्र में ही संगीत सीखने में रुचि दिखाई। मात्र 14 साल की उम्र में वे एक गायिका के रूप में उभरीं। फिल्म ‘जलसा घर’ में उन्होंने गायिका की।

साल 1945 में उन्होंने बैरिस्टर इश्तियाक अहमद अब्बासी से विवाह किया। मां के देहांत ने उन्हें गहरा धक्का पहुंचाया। लंबे समय तक वे गायकी से दूर रहीं, लेकिन पति के कहने पर जब दोबारा गाना शुरू किया तो फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

बेगम अख्तर की एक बड़ी विशेषता थी शायरी का बेहतरीन चयन। वे जो भी गाती थीं, उसे बड़ी एहतियात से चुनती थीं। केवल वही शायरी गाती थीं जो उनके भीतर तक उतर जाती थी, ताकि शायर के दिल की बात सुनने वालों के दिल तक पहुंच सके।

फिल्म स्टार नाना पाटेकर ने एक बार उनके बारे में कहा कि एक कॉन्सर्ट में जब बेगम गा रही थीं और गाना खत्म हुआ तो दर्शक दीर्घा में सन्नाटा छा गया। कोई ताली नहीं बजी। हमेशा जोरदार तालियां बजती थीं।

जब किसी ने पूछा तो बेगम ने मुस्कुराते हुए कहा, 'इसी सन्नाटे के लिए हम जीते हैं। सामने वाला भूल गया कि उसे ताली भी बजानी है।'

'ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया' के पीछे की कहानी भी थोड़ी फिल्मी है। कहा जाता है कि करीब 75 साल पहले, जब बेगम अख्तर मुंबई से लखनऊ लौट रही थीं, तो रेलवे स्टेशन पर एक शायर उनसे मिले। शायर ने अपनी शायरी को आवाज देने की गुजारिश की। उन्होंने एक कागज का टुकड़ा बेगम को थमा दिया। बेगम ने उसे लिया और पर्स में रख लिया।

भोपाल रेलवे स्टेशन के पास चलती ट्रेन में उस गज़ल का ख्याल आया। बेगम ने हारमोनियम पर सुर बैठाना शुरू कर दिया।

शायरी की आखिरी पंक्ति में शायर का तखल्लुस था, 'जब हुआ जिक्र जमाने में मोहब्बत का शकील मुझको अपने दिल-ए-नाकाम पे रोना आया।' वो शायर थे शकील बदायुनी

दुनिया से अलविदा कहने से पहले यही गज़ल बेगम अख्तर का आखिरी पैगाम बन गई।

बड़े-बड़े इतिहासकार उन्हें याद कर बताते हैं कि वह आज के दौर के गज़ल गायकों की तुलना में बिल्कुल विपरीत थीं। शायद उन्होंने जो गाया, वह कुदरत ही उनसे चाहती थी।

Point of View

बल्कि उन्होंने संगीत की दुनिया में एक अमिट छाप छोड़ी है। राष्ट्रीय दृष्टिकोण से, उनकी कला हमें याद दिलाती है कि संगीत में गहराई और भावनाओं का कितना महत्वपूर्ण स्थान है।
NationPress
29/10/2025

Frequently Asked Questions

बेगम अख्तर की प्रसिद्ध गज़ल कौन सी है?
उनकी प्रसिद्ध गज़ल 'ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया' है, जो आज भी लोगों के दिलों में बसी हुई है।
बेगम अख्तर का असली नाम क्या था?
उनका असली नाम अख्तरी बाई फैजाबादी था।
बेगम अख्तर ने कब अंतिम सांस ली?
वे 30 अक्टूबर 1974 को इस दुनिया से चली गई थीं।
किस शायर ने बेगम अख्तर की गज़लों पर टिप्पणी की थी?
उर्दू के अजीम शायर कैफी आजमी ने बेगम अख्तर के बारे में कहा था कि गज़ल के दो मायने होते हैं - पहला गज़ल और दूसरा बेगम अख्तर।
बेगम अख्तर ने गाना कब शुरू किया?
उन्होंने मात्र 14 साल की उम्र में गायिका के रूप में अपने करियर की शुरुआत की।