क्या भगवा आतंकवाद का प्रतीक हो सकता है? : सुरेश्वरानंद महाराज

सारांश
Key Takeaways
- साधु-संतों का उद्देश्य सभी को सुख देना है।
- भगवा को आतंकवाद का प्रतीक नहीं माना जा सकता।
- यह निर्णय लंबे कष्ट के बाद आया है।
- भगवा हमेशा शांति का प्रतीक है।
- धर्म के नाम पर भेदभाव करने वाले स्वयं संदिग्ध हो सकते हैं।
उज्जैन, 31 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। मालेगांव ब्लास्ट केस में एनआईए की विशेष अदालत के निर्णय से सभी आरोपियों को बरी किए जाने के बाद उज्जैन में साधु-संतों के बीच खुशी का माहौल था। साधु-संतों ने मिठाइयाँ बांटकर एक-दूसरे को बधाई दी।
सुरेश्वरानंद महाराज ने राष्ट्र प्रेस से बातचीत में मालेगांव ब्लास्ट केस के अदालती निर्णय पर अपनी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने स्पष्ट कहा कि भगवा धारण करने वाले साधु-संतों का उद्देश्य सभी को सुखी करना और दुखों का निवारण करना होता है। उनका दावा था कि भगवा आतंकवाद का प्रतीक नहीं हो सकता और इस मामले में भगवा को बदनाम करने की साजिश की गई थी।
उनके अनुसार, यह निर्णय उन लोगों के लिए उत्तर है, जो धर्म के नाम पर सनातनियों को प्रताड़ित करते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि 17 वर्षों की लंबी कानूनी प्रक्रिया में आरोपियों को अत्यधिक कष्ट सहना पड़ा, और यह फैसला उन्हें बरी करता है, लेकिन उनके कष्ट की भरपाई संभव नहीं है। उन्होंने भगवा को देश की सुरक्षा और रक्षा से जोड़कर इस निर्णय का स्वागत किया।
महंत विशाल दास ने खुशी व्यक्त करते हुए कहा कि इस निर्णय ने साधु-संतों और भगवा पर लगे घिनौने आरोपों से मुक्ति दिलाई है। उन्होंने भगवा को राष्ट्र और शांति का प्रतीक बताया और इसे एक मार्ग प्रशस्त करने वाला निर्णय कहा। उनके अनुसार, भगवा हमेशा शांति का प्रतीक रहा है।
महंत सत्यानंद ने अदालत के निर्णय का स्वागत करते हुए कहा कि यह निर्णय भगवा और सनातन संस्कृति पर लगाए गए झूठे आरोपों को खारिज करता है। उनका कहना था कि भगवा को आतंकवादी ठहराने की साजिश करने वाले स्वयं आतंकवादी गतिविधियों से जुड़े हो सकते हैं। भगवा सनातन धर्म और राष्ट्रवाद का प्रतीक है, जो समाज को एकजुट करने और सनातन संस्कृति के संरक्षण में सहायक है। उन्होंने इस निर्णय को सत्य की विजय और साधु-संतों की भूमि भारत की सनातन परंपरा की जीत बताया, जो आदि और अनंत से परे है।